रायपुर । पंद्रह सालों तक सत्ता में रहने के बाद पांच साल विपक्ष में रही भाजपा छत्तीसगढ़ में अपनी वापसी के लिए बेचैन है। जीत की चाह इस कदर है कि इसके लिए भाजपा ने अपने ही बनाए कायदों से किनारा कर लिया है। भाजपा की दोनों सूची में अब तक कुल 85 सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान हो चुका है। अब तक घोषित उम्मीदवारों की सूची देखकर ये साफ पता चलता है कि भाजपा ने टिकट देने के लिए अपने ही बनाये हुए किसी भी अघोषित नियम का पालन नहीं किया है। इस सूची में परिवारवाद, भ्रष्टाचार के आरोप में घिरे, कांग्रेस और जोगी कांग्रेस से आने वाले नेताओं को भी टिकट दी गई है। यही नहीं अपनी ही पार्टी से बगावत कर पिछले चुनाव में अपने ही उम्मीदवारों को हराने वाले, 80 साल के उम्र के करीब पहुंचने वाले नेताओं को भी टिकट देकर भाजपा ने साफ कर दिया है कि उसका लक्ष्य सिर्फ जीत है। तमाम सर्वे की बात कही गई। ये भी कहा गया कि टिकट बंटवारे में सिर्फ आलाकमान की चलेगी और किसी की नहीं। लेकिन दोनों सूची देखकर साफ पता चलता है कि भाजपा हाईकमान के बाद टिकट बंटवारे में पूरी तरह पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की चली है। रमन सिंह के अलावा अन्य नेताओं को भी न पूरी तवज्जो दी गई है और न नजरअंदाज किया गया है।
उम्र का पैमाना नजरअंदाज
बार-बार ये कहा जा रहा था कि 75 साल की उम्र के बाद किसी को टिकट नहीं मिलेगी। लेकिन कद्दावर नेता ननकीराम कंवर पर 77 की उम्र में फिर से पार्टी ने दांव खेला है। ननकीराम कंवर को फिर से रामपुर से मैदान में उतारा है। उनकी जीत सुनिश्चित मान रही भाजपा ने उम्र के अपने अलिखित कायदे को नजरअंदाज कर दिया है।
परिवारवाद के लिए मूंदी आंखें
परिवारवाद के खिलाफ झंडा बुलंद करने वाली भाजपा ने जूदेव परिवार से आने वाले प्रबल प्रताप सिंह जूदेव को कोटा से और संयोगिता सिंह जूदेव को चंद्रपुर से मौका दिया गया है। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के भांजे विक्रम सिंह को खैरागढ से टिकट दिया गया है।
जीत के लिए हारे हुए पर बाज
इसी तरह भाजपा के तमाम नेता ये कहते रहे कि चेहरे नए होंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, पार्टी ने इस बार 42 पुराने प्रत्याशियों को फिर से टिकट दिया है। इसमें से 15 ऐसे प्रत्याशी हैं, जो 2018 में हार चुके हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में पाटन से हारे मोतीलाल साहू को इस बार रायपुर ग्रामीण से टिकट दी गई है। खरसिया में हार का सामना करने वाले ओपी चौधरी को इस बार रायगढ़ से मैदान में उतारा गया है। इसी तरह कटघोरा में चुनाव हारने वाले लखनलाल देवांगन को इस बार कोरबा से टिकट दी गई है। नवागढ़ से दयालदास बघेल, बीजापुर से महेश गागड़ा, अंतागढ़ से विक्रम उसेंडी, रायपुर पश्चिम से राजेश मूणत, बिलासपुर से अमर अग्रवाल, बैकुंठपुर से भैयालाल राजवाड़े, मनेंद्रगढ़ से श्यामलाल जायसवाल, भिलाईनगर से प्रेमप्रकाश पांडेय, नारायणपुर से केदार कश्यप और कोंडागंव से लता उसेंडी को टिकट दी गई है। ये वही उम्मीदवार हैं, जो इन्हीं सीटों पर 2018 में हार का मुंह देख चुके हैं। हालांकि 2018 में भी भाजपा ने 52 पुराने प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतारा था, जिनमें 16 हारे हुए प्रत्याशी मैदान में थे। इससे पहले 2013 में जिन पुराने प्रत्याशियों को पार्टी ने टिकट दिया था, उसमें से 21 जीतकर आए थे।
पार्टी में आते ही मिल गई टिकट
भाजपा ने कुछ दिनों पहले भाजपा का दामन थामने वाले छत्तीसगढ के हीरो पद्मश्री अनुज शर्मा को भाजपा ने घरसीवा से चुनावी मैदान में उतारा है। यहां से ब्राह्मण को साधने की कोशिश की गई है। हालांकि अनुज शर्मा काफी समय से बीजेपी के साथ नजर आ रहे थे। इसी तरह लोरमी से पहले कांग्रेस और फिर जोगी कांग्रेस से विधायक रहे। फिर जोगी कांग्रेस में विधायक दल के नेता रहे धर्मजीत सिंह ने ऐन चुनाव के पहले हाथ में कमल ले लिया। अब पार्टी ने तखतपुर से उन पर दांव लगाया है। अफसरी छोड़कर भाजपा का झंडा उठाने वाले नीलकंठ टेकाम को भी पार्टी ने टिकट से नवाजा है। वहीं रोहित साहू भी कांग्रेस से ही भाजपा में आए हैं और उन्हें टिकट मिल गई है। रायपुर ग्रामीण से मोतीलाल साहू भी कांग्रेस से बीजेपी में आए हैं और पाटन से मुख्यमंत्री के खिलाफ उतारे गए बीजेपी के उम्मीदवार विजय बघेल भी कभी कांग्रेस में थे।
पांच सीटों पर सबकी नजर
भाजपा ने 90 में से 85 सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए हैं। लेकिन 5 सीटों पर उसका पेंच फंस गया है। पार्टी ने पांच सीटों अंबिकापुर, बेलतरा, बेमेतरा, कसडोल और पंडरिया के प्रत्याशी घोषित नहीं किए है। कयास लगाए जा रहे हैं कि टिकट किसे मिलेगी? फार्मूला क्य़ा होगा? लेकिन अब तक की दोनों सूची देखकर साफ है कि बीजेपी का लक्ष्य जीत है, चाहे उसके लिए उसके अपने नियम-कायदे की बलि क्यों न चढ़ानी पड़े? जाहिर है पार्टी की तीसरी सूची में भी सिर्फ जीत का समीकरण काम करेगा।