रायपुर । आचार संहिता में शासकीय प्रचार प्रसार पर रोक के आदेश हैं। ये रोक सिर्फ बैनर-पोस्टर व दीवार पेंटिंग्स तक पर नहीं, बल्कि उन सामिग्रियों पर भी है, जिनका प्रकाशन पहले हो चुका है, लेकिन अभी भी वो प्रचलन में है। मसलन स्कूलों में वितरित की गयी पाठ्य पुस्तक व शैक्षणिक सामिग्रियां।
हालांकि ऐसी सामिग्रियों को हटाने या छुपाने के काम हो रहे हैं, लेकिन कुछ जगहों पर इसे लेकर SCERT पर सवाल खड़ा किया जा रहा है। जबकि हकीकत ये है कि ऐसे प्रचार माध्यमों व सामिग्रियों पर रोक की जिम्मेदारियां पूर्व में ही निर्धारित हैं, लेकिन कई जगहों पर जानकारियों के अभाव में इसके लिए उन विभागों पर ठिकरा फोड़ दिया जाता है, जिनकी वो जिम्मेदारी ही नहीं होती।
सोशल मीडिया में कई जगहों पर ऐसी पोस्ट वायरल की जा रही है कि स्कूलों में वितरित की गयी पाठ्य पुस्तकों में अभी भी शासकीय चित्रण या प्रचार प्रसार है। इसके लिए SCERT को जिम्मेदार बताकर आलोचना की जा रही है, जबकि हकीकत में ये SCERT की ये जिम्मेदारी नही है। SCERT सिर्फ पाठ्य पुस्तक के लिए सामिग्रियां उपलब्ध कराया है। उसके बाद उसके प्रकाशन से लेकर वितरण तक की जिम्मेदारी पाठ्य पुस्तक निगम की हो जाती है।
दरअसल स्कूलों में वितरित की गयी पाठ्य पुस्तकों में शासकीय योजना का जिक्र या सूबे के मुख्यमंत्री व शिक्षामंत्री की तस्वीरें अमूमन दिख जाती है। लेकिन उसे कैसे हटाना है या छुपाना है, वो तय जिला प्रशासन को करना है। हालांकि कई जगहों से जानकारी भी मिल रही है कि स्कूलों को निर्देश दिया गया है कि वो ऐसे पाठ्य पुस्तकों में कवर लगाकर उसे आचार संहिता के मद्देनजर छुपा दे। अगर स्कूल की तरफ से नहीं हटाया जाता है, तो जिला प्रशासन व DPI की तरफ से उसे हटाया जाता है। जहां तक SCERT का सवाल है कि SCERT की तरफ डायट व अपने संस्थानों से पाठ्य पुस्तकों में छपी ऐसी सामिग्री को हटाने का काम करती है।