छत्तीसगढ़

जशपुर के दो माटीपुत्रों ने किया गौरान्वित, मुख्यमंत्री विष्णु देव साय व जैनाचार्य सौरभ सागर ने चुना सेवा का मार्ग

रायपुर, । मुख्यमंत्री विष्णु देव साय और जैन आचार्य श्री सौरभ सागर का कर्म क्षेत्र भले ही अलग-अलग हो लेकिन वे दोनों जशपुर जिले के माटीपुत्र है। एक ने प्रदेश का मुखिया बनकर तो दूसरे ने जैन आचार्य बनकर पूरे अंचल को गौरान्वित किया है। इन दोनों ने माटीपुत्रों ने जनसेवा को अपने जीवन का ध्येय बनाया है। दोनों का उद्देश्य जन कल्याण है। भले ही इनके तरीके अलग-अलग है।

मुख्यमंत्री श्री साय का जन्म जशपुर जिले के एक छोटे से गांव बगिया में और जैनाचार्य श्री सौरभ का जशपुर में हुआ है। जशपुर के घने जंगल प्राकृतिक दृश्य मनोरम झरने आध्यात्मिक वातावरण में पले बढ़े इन दोनों ही माटीपुत्रों ने अपने जीवन के लक्ष्य पाने के लिए पूरे मनोयोग से सतत प्रयास किया। पारिवारिक संस्कार एवं पृष्ठभूमि और लगातार परिश्रम का यह प्रतिफल है कि यह गौरवपूर्ण उपलब्धि उन्हें हासिल हुई। इसी सरलता और सहजता ने उन्हें शीर्ष पर पहुंचाया। एक ने जनसेवा का मार्ग चुना तो दूसरे ने धर्म और आध्यात्म के माध्यम से जनकल्याण को अपने जीवन लक्ष्य बनाया। इन दोनों की गौरवपूर्ण उपलब्धियों से जशपुर अंचल गौरान्वित है।

साय का छत्तीसगढ़ का मुखिया बनने का सफर –

मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय जन्म श्री राम प्रसाद साय के घर में 21 फरवरी 1964 को हुआ था। अल्प अवस्था में पिता के निधन के बाद श्री साय ने संघर्ष करते हुए, मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की और खेती किसानी में जुट गए। ग्राम पंचायत बगिया के 1989 में पंच पद पर निर्वाचित होकर, उन्होंने सार्वजनिक जीवन में पर्दापण किया।

वर्ष 1990 में तपकरा विधानसभा क्षेत्र से विधायक निर्वाचित हुए। वर्ष 1999 से लेकर 2014 तक लगातार 4 बार लोकसभा सासंद के रूप में रायगढ़ का प्रतिनिधित्व किया। वर्तमान में 2023 में कुनकुरी विधानसभा क्षेत्र से विधायक निर्वाचित हुए श्री साय छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के पद पर आसीन हैं।

जैनाचार्य सौरभ सागर का जैन मुनि बनने का सफर –

आचार्य श्री सौरभ सागर महाराज (श्री सुरेन्द्र जैन) का जन्म जशपुर के प्रतिष्ठित व्यवसायी श्री श्रीपाल के घर 22 अक्टूबर 1970 को हुआ था। महज साढ़े 12 साल की उम्र में आचार्य श्री 108 पुष्पदंत सागर जी महाराज से दीक्षा लेकर आध्यात्म की दुनिया में प्रवेश कर गए। 10 अप्रैल 2022 को कठिन साधना के बाद द्रोणगिरी में आचार्य पद पर आसिन हुए।

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