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चाइना की झालरों के आगे दीपावली में फीके पड़े मिट्टी के दिये, बिक्री के लिए तरस रहे कुम्हार…

Diwali 2024: 31अक्टूबर को पूरे देश में दीपावली का त्योहार धूमधाम से मनाया जा रहा है, लेकिन मिट्टी के दीपक बनाने वाले आज बाजार में चीन की रंग बिरंगी झालर और दियों के कारण अपनी आजीविका चलाने में परेशान हैं. आजकल लोग मिट्टी के दीपक से ज्यादा इन रंग बिरंगी झालरों का उपयोग कर रहे हैं।

बाजारों में हुआ झालरों का कब्जा

एक समय हुआ करता था जब दीपावली पर हर घर में दियों की रोशनी से उत्सव मनाया जाता था, लेकिन बदलते समय के साथ चाइना से आयातित होने वाली रंग बिरंगी झालरों और दियों ने अब लोगों के घरों से मिट्टी के दियों की रोशनी को कम कर दिया है. शहरी क्षेत्रों में लोग अब इन मिट्टी के दीपकों को सिर्फ औपचारिकता के लिए खरीदते हैं. बाकि घर की बाहरी दीवारों पर रंग बिरंगी झालरों को ही लगा रहे हैं. मिट्टी के दीपकों की इस रोशनी के पीछे मेहनत छुपी है, उन कारीगरों की जो अपने हाथों से मिट्टी के दीये और बर्तन बनाते हैं. ये दीये न केवल परंपरा को जीवित रखते हैं, बल्कि स्वदेशी कला और संस्कृति का प्रतीक भी हैं।

संकट में हैं मिट्टी के दिये बनाने वाले लोग

निवाड़ी में मिट्टी के दिए बनाने वाले चंद्रभान प्रजापति ने बताया, ”इस साल तो बहुत मुश्किल हो रही है. बाजार में जो रेट मिल रहा है, उससे हमारी लागत भी पूरी नहीं हो रही है. बाहर से आए सस्ते दियों व रंग बिरंगी बिजली की लाइटों ने हमारी मेहनत की कीमत घटा दी है. पहले हम लोग जहां से मिट्टी लाते थे. अब वहां शासकीय कार्यालय बन चुके हैं, इसलिए अब तो मिट्टी भी दूसरे की जमीनों से खरीदनी पड़ती है, जिससे हमारी लागत अब बढ़ गई है और लागत के हिसाब से कीमत नहीं मिल पाती है. हालांकि स्थानीय विधायक अनिल जैन ने प्रजापति समाज के लिए जल्द ही मिट्टी के लिए शासकीय जमीन देने का भी आश्वासन दिया है।

खतरे में है कारीगरों की आजीविका

इन कारीगरों में प्रजापति समाज के लोग शामिल हैं जो पीढ़ियों से इस कला को संजोए हुए हैं, लेकिन इस बार दीपावली के बाजार में इनकी मेहनत का सही मूल्य नहीं मिल पा रहा है. चीन से आयातित सस्ते दिये और बिजली की झालरों के साथ ही सजावट का सामान भारतीय बाजारों में भर चुके हैं. इनकी चमक और कम कीमत ने देशी मिट्टी के दियों पर गहरा असर डाला है, जहां एक ओर ये सस्ते हैं. वहीं दूसरी ओर ये हमारी परंपरा और देश के कारीगरों की आजीविका को खतरे में डाल रहे हैं।

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