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महाकुंभ 2025: शिवजी के वरदान से जुड़ा है महाकुंभ का रहस्य, बेहद रोचक है अदृश्य आशीर्वाद का रहस्य..

Maha Kumbh 2025: हर बार 12 साल के बाद महाकुंभ का भव्य आयोजन किया जाता है. ग्रहों की स्थिति के अनुसार महाकुंभ का मेला कहा लगेगा ये तय होता है. इस बार प्रयागराज में 13 जनवरी 2025 से महाकुंभ मेले की शुरुआत हुई है।

महाकुभ का आयोजन केवल धार्मिक या आध्यात्मिक पर्व ही नहीं है बल्कि यह भगवान शिव, समुद्र मंथन अमृत कुंभ से जुड़े कई पौराणिक घटनाओं की स्मृति भी है. महाकुंभ का संबंध समुद्र मंथन उससे प्राप्त अमृत कुंभ से है. भगवान शिव से जुड़ी महाकुंभ की ये पौराणिक कथा बेहद रोचक है।

महाकुंभ भगवान शिव की पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, देवताओं असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था. इस मंथन से अमृत कलश निकला, जिसे पाने के लिए देवताओं असुरों के बीच भयंकर संघर्ष हुआ. अमृत कुंभ की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लिया अमृत को देवताओं तक पहुंचाया. लेकिन इस दौरान, समुद्र मंथन से हलाहल विष भी निकला, जिसने तीनों लोकों को संकट में डाल दिया. इस विष का प्रभाव इतना भयंकर था कि इसे नष्ट करना आवश्यक था. जब समुद्र से निकले हलाहल विष ने सभी दिशाओं में तबाही मचानी शुरू की, तो सभी देवता भगवान शिव के पास गए. शिवजी ने अपनी करुणा संसार की रक्षा के लिए विष को अपने कंठ में समेट लिया. उन्होंने इस विष को न गले से नीचे जाने दिया न बाहर निकलने दिया, जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया. इसी कारण भगवान शिव को नीलकंठ कहा गया. शिवजी के इस बलिदान ने न केवल देवताओं असुरों को बल्कि समस्त संसार को विनाश से बचा लिया।

महाकुंभ शिवजी का संबंध

ऐसा कहा जाता है कि जब अमृत कलश लेकर गरुड़ उड़ रहे थे तो कलश से चार स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरीं. ये स्थान हैं प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन नासिक. इन चार स्थानों पर हर बारहवें साल महाकुंभ का आयोजन होता है. भगवान शिव को महाकुंभ में विशेष रूप से पूजा जाता है, क्योंकि उन्होंने समुद्र मंथन से निकले हलाहल को अपने कंठ में धारण करके अमृत के महत्व को बनाए रखा. महाकुंभ के स्नान को शिवजी के उस बलिदान के प्रति श्रद्धा का प्रतीक भी माना जाता है. महाकुंभ में भगवान शिव की पूजा गंगा स्नान का महत्व इसी पौराणिक कथा से जुड़ा है, जो हर श्रद्धालु को आध्यात्मिक ऊर्जा शांति प्रदान करता है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

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