रायपुर। नगर निगम के शंकर नगर जोन तीन में हुए 72 लाख के वेतन घोटाले में निगम के कई अफसर शामिल हैं। इसका राज मास्टर माइंस ने खुद खोल दिया है। राज खुलते ही निगम में हड़कंप मच गया है। पूछताछ में कइयों का नाम भी सामने आया है। फिलहाल, पुलिस ने रिमांड पर लेने के बजाय आरोपितों को जेल भेज दिया है।
मास्टर माइंड क्लर्क गंगाराम सिन्हा को ओडिशा की खरियार रोड से पुलिस ने उसके साढ़ू अशोक सिन्हा के साथ्ज्ञ गिरफ्तार कर लिया। पूछताछ में गंगाराम ने वेतन घोटाले में कई अफसरों के शामिल होने का राज खोला है। हालांकि पुलिस ने उन अफसरों के नाम उजागर नहीं किए हैं, लेकिन जल्द ही कुछ और लोगों की गिरफ्तारी के संकेत दिए हैं।
पुलिस अब उन अधिकारियों और कर्मचारियों की भूमिका की जांच कर रही है कि वे वेतन घोटाले में शामिल थे या नहीं।
इधर पुलिस ने दोनों आरोपितों को पुलिस रिमांड पर लिए बगैर आनन-फानन में कोर्ट में पेशकर 14 दिन की न्यायिक रिमांड पर जेल भेज दिया। इससे पुलिस की जांच को लेकर कई सवाल उठने लगे हैं।
नगर निगम के शंकर नगर जोन तीन में पिछले पांच सालों तक करीब 72 लाख 18 हजार 961 रुपये का वेतन घोटाला किया गया था। इस घोटाले में क्लर्क गंगाराम सिन्हा की मुख्य भूमिका थी। साथ ही प्लेसमेंट एजेंसी के कंप्यूटर आपरेटर नेहा परवीन भी इसमें शामिल थी, जो अब तक फरार है।
सिविल लाइन पुलिस थाना प्रभारी आरके मिश्रा ने बताया कि वेतन घोटाला उजागर होने के बाद से ही मुख्य आरोपित गंगाराम सिन्हा फरार हो गया था।
पुलिस की कई टीमें अलग-अलग जगहों में छापामारी कर रही थीं। इसी बीच मुखबिर की सूचना पर महासमुंद जिले से लगे ओडिशा सीमा के खरियार रोड में एक रिश्तेदार के घर छिपे गंगाराम व उसके साढ़ू अशोक को पकड़ा गया। बाकी पांच अन्य फरार आरोपितों में गंगाराम की पत्नी देवकुमारी सिन्हा, बेटा शुभम सिन्हा, नेहा परवीन और उसकी रिश्तेदार खालिदा अख्तर, सरवरी बेगम, निगार परवीन की पतासाजी की जा रही है।
आरोपित गंगाराम सिन्हा जोन के कर्मचारियों के वेतन को आरटीजीएस के दौरान कुछ अतिरिक्त नाम जोड़कर अपने रिश्तेदारों के बैंक खाते में पैसा भेज देता था। जांच में साफ हुआ कि वह साढ़ू अशोक समेत पांच लोगों के खाते में आरटीजीएस के माध्यम से पैसा भेजता था।
जोन में पदस्थ अधिकारियों की मिलीभगत से यह खेल चल रहा था। यही कारण है कि वरिष्ठ अफसरों को इसकी भनक तक नहीं लगी।
गंगारामम जितने लोगों के खाते में आरटीजीएस करता था, उनका एटीएम कार्ड अपने पास रखता था। जिन पांच खाते में पैसा डालता था, उसमें तीन उसके रिश्तेदार और दो कंप्यूटर आपरेटर नेहा परवीन के रिश्तेदार हैं। इसके बदले गंगाराम नेहा परवीन को हर महीने 15 हजार रुपये देता था।
इनके हस्ताक्षर से जारी होता रहा वेतन
नगर निगम से मिली जानकारी के अनुसार जोन तीन में करीब 252 कर्मचारी काम करते थे। सभी कर्मचारियों का वेतन आरटीजीएस के माध्यम से सीधे खाते में जाता था। कर्मचारियों के खाते में पैसा ट्रांसफर करने से पहले स्थापना लिपिक, आडिटर, एकाउंटेंट के बाद जोन कमिश्नर के हस्ताक्षर होने के बाद कर्मचारियों के खाते में वेतन भेजा जाता था।
इस बीच वह एकाउंटेंट से मिलकर 252 की जगह संख्या बढ़ा देता था और किसी को भनक तक नहीं लगती थी। इससे कर्मचारियों के साथ ही आरोपित द्वारा दिए गए खाते में भी पैसा चला जाता था और वह आसानी से पैसा निकाल लेता था। आरोपित पांच सालों से ऐसा करता आ रहा था।
इन अफसरों के कार्यकाल में चला घोटाले का खेल
पुलिस की जांच में यह सामने आया है कि वर्ष 2017-18 में जोन तीन में कमिश्नर के रूप में महेंद्र कुमार पाठक पदस्थ थे। इनके कार्यकाल में आरोपित ने अपनी पत्नी का नाम जोड़कर सबसे पहले एक लाख 16 हजार रुपये निकाले थे। उसके बाद जोन कमिश्नर के रूप में रमेश जायसवाल पदस्थ हुए।
इनके कार्यकाल में बेटे और साले का नाम जोड़ा। तीसरे नंबर पर अरुण साहू जोन कमिश्नर हुए। इनके कार्यकाल में नेहा परवीन की मां और बहन का नाम जोड़कर करीब 21 लाख रुपये निकाले गए। अंत में प्रवीण सिंह गहलोत के कार्यकाल में भी आरोपित का यह खेल जारी रहा।