छत्तीसगढ़ में संक्रमित मां की भांव-भंगिमाएं समझकर दो साल की बेटी ने खुद को अकेले संभालकर बिताए 14 दिन
रायपुर। मां और बच्चे का रिश्ता इतना प्रगाढ़, प्रेम से भरा होता है कि बच्चे को जरा भी तकलीफ होती है तो मां बेचैन हो जाती है। अपने बच्चे के लिए रात-रात भर जागकर बिताने वाली मां के लिए उसका बच्चा सबकुछ होता है। कोरोना काल में राजधानी के पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय परिसर में रहने वाली गृहिणी शीला पटेल और उनके पति मनोज कुमार पटेल को एक साथ कोरोना हो गया था।
दो माह बाद भी कार्रवाई नहीं
ऐसे में उनके घर में उनकी दो साल की बेटी हर्षिता को संभालने के लिए कोई तीसरा नहीं था। ऐसे समय में मां ने अपनी बच्ची को संक्रमण से बचाने के लिए अपनी दुलार और दूर से पुचकार भरी नजरों ने ही संभाला। जो बेटी अपने हाथ से खाना और गिलास से पानी नहीं पी पाती थी उसे मां ने महज दो सप्ताह में स्वावलंबी बनने का पाठ पढ़ा दिया।
इशारे से सबकुछ समझती रही नन्हीं बच्ची
मां शीला कहती हैं कि मैंने सोचा भी नहीं था कि इस संकट काल में मैं अपनी नन्ही सी जान को कैसे संभालूंगी, लेकिन शायद मां और बेटी के बीच जन्म से पहले कोख से ही जो रिश्ता बनना है उसी की ताकत से मैंने इस संकट काल में बेटी को इशारे के जरिए सबकुछ सिखा दिया। जब मैं बेड पर थी तब बेटी दरवाजे के बाहर से आहें भरती थी, जब कहती बेटा कुछ खा लो तो कटोरे रखे चावल-दाल को वह नाजुक हाथों से लेकर खाती थी।
अंदर से मैं बहुत विचलित थी लेकिन खुशी इस बात से थी कि वह नादान भी मेरी मजबूरियों को समझ रही थी। मेरे इशारे और बेटी के मन में शायद सीखने की ललक। इस बीच खुद ही पानी से नहाना, खाना और पीना ऐसे सीख गई जैसे किसी ने उसे प्रशिक्षित कर दिया हो।
पिता कहते हैं वह तो मां की ताकत से बेटी को संभाला
शीला के पति रविवि में लाइफ साइंस डिपार्टमेंट में सहायक प्राध्यापक हैं, वह कहते हैं कि कोरोना वायरस संक्रमण काल एक आपदा से कम नहीं है, ऐसे में जब घर में मैं और मेरी पत्नी बस थीं तब दो साल की बच्ची को संभालना एक चुनौती थी क्योंकि बालिका को भी संक्रमण से बचाना था। मुझे लगता है वह मां की ही ताकत थी जो बेटी को पुचकारते हुए दूर रखी और बेटी के भीतर एक समझ पैदा की और हम अपनी बच्ची को संक्रमित होने से बचा पाए।