विश्व दुग्ध दिवस : जाने छतीसगढ़ के इस को गांव को दूध गांव का दर्जा क्यों दिया गया
रायपुर। सेहत के लिए दूध कितना महत्व है, आज की तारीख में हर कोई इससे वाफिक है। दूध से प्रोटीन समेत कई तरह से शरीर को ऊर्जा मिलती है। इसी कारण विज्ञान भी लोगों को अधिक से अधिक दूध पीने के लिए हामी भरते हैं। विश्व दुग्ध दिवस के मौके पर आज हम आपको छत्तीसगढ़ के एक ऐसे गांव के बारे में जानकारी दे रहे हैं, जिसे अब दूध गांव के नाम से जानने लगे हैं।
इसका कारण यह है कि इस छोटे से गांव में 100 किसान मिलकर दो हजार अधिक लीटर दूध का रोज उत्पादन कर रहे हैं। इस गांव के दूध को विभिन्न कंपनियां खरीद भी रही हैं। हम बात कर रहे है पिथौरा ब्लॉक के गोडबहाल गांव की। इस समय गांव के किसान जितना खेती-बाड़ी को महत्व देते हैं, उतना ही दूध उत्पादन करने में रुचि दिखा रहे हैं।गांव के दूध उत्पादक किसान सादराम पटेल, बली पटेल, ईश्वर ठाकुर, नूर सिंह भागीरथी ध्रुव बताते हैं कि एक समय प्रशासन जब गांव में आकर सभी से कहने लगे कि गाय, भैंस रखें। इससे दूध मिलने से मुनाफा होगा, लेकिन गांव के लोगों ने खेती-बाड़ी को ज्यादा महत्व देते हुए अधिकारियों की बात को नकार दिया। अंत: कुछ जागरूक किसान ने अधिकारियों की बात सुनकर राजी हुए, जो अब आस-पास के क्षेत्र के समेत प्रदेश के लिए प्रेरणा दायक बन गई है।
11 सदस्य ने मिलकर शुरू की दूध उत्पादन-
गोडबहाल के गांव के 11 किसान ने सबसे पहले मिलकर दूध उत्पादन का कार्य करने के लिए 1989 में इसकी नींव रखीं। शुरुआत में मात्र 40 लीटर दूध उत्पादन किया। आज इस गांव में 100 किसान रोज दो हजार लीटर से अधिक दूध का उत्पादन किया जा रहा है। जहां इसकी मांग देश के विभिन्न बड़ी कंपनियों में है।
कई नस्ल के गाय और भैंस किसानों के पास-
दूध के लिए किसान कई नस्ल के गाय और भैंस का पालन कर रहे हैं। इनमें गिर, हास्टम फ्रीजियन, साहीवाल, जर्सी, जर्सी क्रांस समेत कई गोवंश है।
बायोगैस से बनाते घरों में खाना-
गांव में लकड़ी, एलपीजी गैस से खाना नहीं बल्कि घरों में बायो गैस (गोबर) से खाना पकाते हैं। इसके अलावा किसानों के पास चिलिंग जैसी कई तरह की मशीनें हैं, जिन्हें वे दूध को तरोताजा रखने के लिए खरीद चुके हैं।
विश्व दूध दिवस का उद्देश्य मानव जीवन में दुग्ध उत्पादों के महत्व के बारे में लोगों में जागरुक करना है। इसी कारण से एक जून 2001 से यह दिवस को मनाया जाता है।