प्रदेश में किसान समृद्धि की ठोस पहल
रायपुर। राज्य सरकार ने कृषि को लाभकारी बनाकर किसानों को आर्थिक रूप से संपन्न बनाने की दिशा में ठोस पहल की है। इसी कड़ी में धान के साथ ही अन्य फसलों के लिए प्रोत्साहित करना शुरू कर दिया है। अगर यह प्रयास सफल रहा तो वह दिन दूर नहीं, जब राज्य में फसलों का विविधिकरण होगा।
तब यहां के किसान केवल धान उत्पादक नहीं रह जाएंगे। किसानों ने भी सरकार के साथ कदमताल किया तो एक तरफ जहां उनकी भूमि उपजाऊ हो जाएगी और खादों का कम उपयोग होगा, वहीं दूसरी तरफ उनकी आय भी बढ़ जाएगी। इससे किसान आर्थिक रूप से सुदृढ़ होंगे।
सरकार की यह भी कोशिश है कि लाख के उत्पादन को भी प्रोत्साहन मिले। इसके लिए लाख उत्पादक किसानों को शून्य प्रतिशत ब्याज पर ऋण उपलब्ध हो। ऐसे किसानों के क्रेडिट कार्ड भी बनाए जाएं। एक कदम आगे बढ़ाते हुए सरकार ने कृषि को लाभकारी बनाने के लिए अब सुगंधित धान की मार्केटिंग का जिम्मा भी खुद ही संभालने का फैसला किया है।
वह धान की जगह कोदो-कुटकी के उत्पादन और वैल्यू एडिशन में तकनीकी सहयोग और बीजों की उपलब्धता के लिए कृषि अनुसंधान संस्थान (आइआइएमआर) हैदराबाद से भी सहयोग लेने जा रही है। इसके लिए उक्त संस्थान के साथ अनुबंध भी किया गया है। कांकेर में कोदो-कुटकी और रागी के केंद्रीय भंडारण व प्रसंस्करण के लिए भूमि का भी चयन कर लिया गया है।
अच्छी बात यह है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सुगंधित धान की जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए इसके उत्पादक किसान और समूहों को मिनी राइस मिल अनुदान पर देने के निर्देश दिए हैं। सुगंधित धान की मार्केटिंग के लिए कलेक्टरों के माध्यम से कंपनियों के साथ करार भी करने को कहा है।
साथ ही राजीव गांधी न्याय योजना के तहत धान के बदले दूसरी फसल लगाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने और मक्के की खेती को बढ़ावा देने के निर्देश दिए हैं। कोंडागांव में स्थापित मक्का प्रसंस्करण संयंत्र को समय सीमा में पूरा करने को भी कहा है। कृषि और किसानों को मजबूत आधार देने के लिए कृषि, उद्यानिकी व मछलीपालन महाविद्यालय के छात्रों की इंटर्नशिप गांवों में किसानों के साथ कराने की व्यवस्था सुनिश्चित करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
सरकार के इस प्रयास ने साफ कर दिया है कि वह वास्तव में किसान हितैषी है। इसके बावजूद किसानों को आर्थिक रूप से संपन्न बनाने की पूरी कवायद का परिणाम तभी निकलेगा, जब मंत्र के हिसाब से तंत्र चलेगा। अगर तंत्र उदासीन रहा तो अपेक्षित परिणाम की अपेक्षा नहीं की जा सकती है।
तंत्र को ही सरकार के मंत्र को न केवल मूर्त रूप देना है, बल्कि किसानों तक पहुंचाना भी है। किसान भी सरकार के मन की बात को समझेंगे तो योजना की फसल फाइलों से निकलकर जमीन पर लहलहाती नजर आएगी और किसान भी लाभांवित होंगे।