पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाना रेप नहीं, चाहे यह उसकी मर्जी के खिलाफ हो या जबरन : 36गढ़ हाईकोर्ट
रायपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने कानूनी तौर पर विवाहित पत्नी के साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध यौन संबंध को बलात्कार नहीं माना है। वकील वाय सी शर्मा ने बताया कि जस्टिस एन के चंद्रवंशी की सिंगल बेंच ने कानूनी तौर पर विवाहित पत्नी के साथ बलपूर्वक अथवा उसकी इच्छा के विरुद्ध यौन संबंध या यौन क्रिया को बलात्कार नहीं माना है।
शर्मा ने बताया कि राज्य के बेमेतरा जिले के एक प्रकरण में शिकायतकर्ता पत्नी ने अपने पति पर बलात्कार और अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने का आरोप लगाया था जिसे उसके पति ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। वकील ने बताया कि हाई कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक बलात्कार के अलावा अन्य आरोपों में यह प्रकरण जारी रहेगा।शर्मा ने बताया कि बेमेतरा जिले में पति-पत्नी के बीच विवाह के बाद मनमुटाव चल रहा था। पत्नी ने थाने में शिकायत दर्ज कराई थी कि उनका विवाह जून 2017 में हुआ था। शादी के कुछ दिनों बाद उसके पति और ससुराल पक्ष ने दहेज़ के रूप में पैसों की मांग करते हुए उसे प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। उसके पति उसके साथ गाली-गलौज और मारपीट भी किया करते थे।
पत्नी ने यह आरोप भी लगाया कि उसके पति ने कई बार उसके साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध और अप्राकृतिक शारीरिक संबंध बनाया था। वकील ने बताया कि जांच के बाद थाने में पति और अन्य के खिलाफ धारा 498-ए तथा पति के खिलाफ 377, 376 के तहत मामला दर्ज कर लिया गया और स्थानीय अदालत में चालान पेश कर दिया गया। निचली अदालत ने धाराओं के तहत आरोप तय कर दिया था।
शर्मा ने बताया कि महिला के पति ने बलात्कार के मामले में निचली अदालत के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। कोर्ट में आवेदक पति की तरफ से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि कानूनी रूप से विवाहित पत्नी के साथ पति द्वारा यौन संबंध या कोई भी यौन कृत्य बलात्कार नहीं है भले ही वह बलपूर्वक अथवा पत्नी की इच्छा के खिलाफ किया गया हो। इस मामले में गुजरात हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के न्याय दृष्टांत भी प्रस्तुत किए गए।
वकील शर्मा ने बताया कि जस्टिस चंद्रवंशी ने पूरे प्रकरण पर 12 अगस्त को सुनवाई पूरी की थी। उन्होंने 23 अगस्त को इस मामले में फैसला सुनाते हुए कानूनी तौर पर विवाहित पत्नी के साथ बलपूर्वक अथवा उसकी इच्छा के विरुद्ध यौन संबंध या यौन क्रिया को बलात्कार नहीं माना है। शर्मा ने बताया कि कोर्ट में वैवाहिक बलात्कार के अलावा अन्य आरोपों में प्रकरण जारी रहेगा।
रेप लॉ के मुताबिक महिला के शरीर के किसी अंग में पुरुष जबरन प्राइवेट पार्ट डालता है तो वह बलात्कार है। ऐसे में किसी मामले में यह बहस उठ सकती है कि पति को रेप कानून की आड़ में प्रोटेक्शन मिलेगा या फिर अप्राकृतिक संबंधों के मामले में उस पर शिकंजा कसा जाएगा? दूसरी तरफ एडल्टरी केस में सुप्रीम कोर्ट सेक्सुअल स्वायत्तता की बात करता है तो उसका दायरा क्या है? क्या सेक्सुअल स्वायत्तता के तहत पत्नी को हां या ना कहने का अधिकार नहीं होना चाहिए? अब अगर हम पोक्सो (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट 2012) कानून को देखें तो उसके तहत भी जबर्दस्त विरोधाभास है। इस कानून में 18 साल से कम उम्र के तमाम बच्चों को सेक्सुअल ऑफेंस से प्रोटेक्ट करने की बात है। पोक्सो एक्ट के तहत सहमति के कोई मायने नहीं होते। तो क्या 18 साल से कम उम्र की पत्नी पोक्सो के तहत प्रोटेक्टेड नहीं है?
मैरिटल रेप को कानून के दायरे में लाने से परिवार संस्था पर असर पड़ने की बात एक हद तक सही हो सकती है, इसके दुरुपयोग की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन इन आधारों पर मैरिटल रेप को लेकर शुरू हुई बहस की गंभीरता कम नहीं हो जाती।