छत्तीसगढ़

प्रदेश में आदिवासियों को गैर हिंदू बताने की साजिश का विरोध

जगदलपुर। छत्‍तीसगढ़ में आदिवासियों को गैर हिंदू बताने की साजिश का भाजपा ने बस्तर से विरोध शुरू कर दिया है। इसका बीड़ा पूर्व मंत्री और प्रदेश प्रवक्ता केदार कश्यप ने उठाया है। उनकी इस पहल से आदिवासी बहुल बस्तर संभाग में राजनीति गरमा गई है। कश्यप के समर्थन में संभाग के अन्य जिलों से भी भाजपा के आदिवासी नेता उतर गए हैं। बस्तर के ग्रामीण इलाकों में गणेशोत्सव की धूम है। गांव-गांव में गणपति विराजे हैं। यहां आदिवासी अपनी पूजा पद्धति के अनुसार उनकी पूजा कर रहे हैं। गणपति पंडालों में आदिवासियों के पारंपरिक वाद्ययंत्र मोहरी और बाजा की धुन पर युवा समूह में नृत्य कर रहे हैं।

भाजपा नेता कश्यप खुद आदिवासी समुदाय से हैं। वह इससे आहत हैं कि अन्य धर्मावलंबियों की साजिश का शिकार आदिवासी हो रहे हैं। बीते दिनों राजनांदगांव में सर्व आदिवासी समाज की ओर से एसडीएम को ज्ञापन सौंपकर सावर्जनिक जगहों पर गणेशोत्सव और दुर्गोत्सव के आयोजन पर रोक लगाने की मांग की गई।

कोंडागांव में एक शिक्षक ने आदिवासी बच्चों की इसलिए पिटाई कर दी, क्योंकि उन्होंने जन्माष्टमी पर उपवास रखा था। बस्तर के आदिवासी गांवों में वर्षों से गणेशोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। कश्यप कहते हैं कि आदिवासियों की सांस्कृतिक परंपराएं, रीति रिवाज, पूजा पद्धति विशिष्ट हैं। इसका यह मतलब नहीं है कि वह हिंदुओं से अलग हैं। उन्होंने कहा कि देशभर में आदिवासी इलाकों में इसाई मिशनरियां सक्रिय हैं।

झारखंड के आदिवासी इलाकों से मुहिम चलाई गई, जिसमें कहा गया कि आदिवासियों का धर्म हिंदुओं से अलग है। उन्हें सरना धर्म का बताया गया। यह मुद्दा तूल पकड़ रहा है। भाजपा ने प्रदेश स्तर पर मतांतरण के खिलाफ भी मुहिम छेड़ दी है। कश्यप ने कहा कि दवाई, पढ़ाई का प्रलोभन देकर मतांतरण का चक्रव्यूह रचा जा रहा है जिसे सफल नहीं होने देंगे।

दंतेवाड़ा जिले में फरसपाल के पास बैलाडीला पहाड़ पर तीन हजार फीट की ऊंचाई पर ढोलकल चट्टान पर गणेश जी की करीब एक हजार साल पुरानी मूर्ति है। आदिवासी इसकी पूजा करते आए हैं। बैलाडीला पहाड़ पर ही झिरका के पास जंगल में गणेश जी की सदियों पुरानी प्रतिमा पाई गई है। यहां जंगली जानवरों का खतरा है फिर भी गणेशोत्सव पर आदिवासी यहां पूजा करने पहुंच रहे हैं। बारसूर के गणेश जी की सैकड़ों साल पुरानी प्रतिमा छत्तीसगढ़ का गौरव है।

आदिवासी परंपरा में शिवजी को बूढ़ादेव के रूप में पूजा जाता रहा है। केशकाल के पास गोबरहीन में सदियों पुराना शिवलिंग है। मां दंतेश्वरी बस्तर की आराध्य देवी हैं। यहां मानसी माता, शीतला माता, हिंगलाजिन माता, महादेव, आंगादेव आदि देवी देवताओं की पूजा की परंपरा रही है। बूढ़ादेव और आंगादेव को आदिवासी अपना रक्षक मानते हैं।

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