राजधानी में नाट्य मंचन के दौरान बेटी के विवाह न होने पर पिता की दशा ने किया भावुक
रायपुर। कोरोना काल में सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर लगे प्रतिबंध के चलते महीनों बाद महाराष्ट्र मंडल में नाट्य मंचन किया गया। कोरोना नियमों का पालन करते हुए सादगी से आयोजन हुआ। इसमें तीन नाटकों में सामाजिक संदेश दिया गया। नाटक में बेटी के विवाह न करने के फैसले से निराश पिता की मानसिक दशा के मंचन ने मंडल के सदस्यों को भावुक कर दिया।
मराठी नाटक माजघराची माती एकांकिका में प्रस्तुत किया गया कि बेटी विवाह नहीं करना चाहती, वह अपने पिता से इंकार कर रही है। पिता परेशान हैं, क्योंकि बिना विवाह के बेटी इस समाज में कैसे जीवन गुजारेगी। पिता समझाते हैं और बेटी के न मानने पर चिंतित हो जाते हैं। नाटक में दिखाया गया कि बेटी के लिए आए हुए रिश्तों पर उनके पारिवारिक मित्र समझाने की कोशिश करते हैं।
अगले सीन में रेलवे स्टेशन पर युवती का परिचय एक युवक से होता है, और युवती उसकी बातों से प्रभावित होकर सपने देखने लगती है। हकीकत सामने आने पर वह पिता की बात मानने पर राजी होती है। इस नाटक में कुंतल कालेले, चेतन दंडवते, अभिषेक बक्षी, प्रकाश मरकले, किशोरी खंगण ने अपने अभिनय से प्रभावित किया। नाटक में प्रकाश व्यवस्था भगीरथ कालेले, ध्वनि परितोष डोनगांवकर, डायरेक्टर अनिल कालेले, सह निर्देशक प्रसन्ना निमोणकर, रंजन मोडक का योगदान रहा। विशेष अतिथि अरविंद कुलकर्णी एवं आनंद मौखरी वाले रहे। आभार नाटय प्रमुख अभया जोगलेकर ने जताया।
सावधान एक योगायोग नाटक में एक युवा जोड़ा जिन्होंने वर-वधु सूचना केंद्र में नाम दर्ज किया था। परिचय के लिए मंदिर में मिलते हैं, तब युवक को पता चलता है कि युवती की इच्छा के विरुद्ध परिवार वाले बिना पढ़ाई पूरी किए विवाह के लिए दबाव दे रहे हैं, इसलिए वह मंदिर आई हुई है, जबकि युवक भी अपने मित्र के स्थान पर मिलने आया हुआ है। हास्य-परिहास से भरे नाटक ने शिक्षा का संदेश दिया। कीर्ती हिशिकर और प्रशांत देशपांडे ने प्रभावित किया।
नाटय छटा में 12 साल की बालिका ने श्रीगणेशजी से प्रार्थना की कि वे कोरोना बीमारी को अपने साथ ले जाएं। इस बीमारी ने स्कूल बंद करवा दिया। घूमना फिरना सब बंद हो गया। केवल मोबाइल में समय काट रहे हैं। हम बोर हो चुके हैं। इस किरदार को कियारा गुप्ते ने जीवंत कर दिया।