छत्तीसगढ़

प्रेम भक्ति के बिना ज्ञान निरर्थक है, उधव प्रसंगएवं रुक्मणी विवाह से गांधी स्कूल हुआ आलोकित

आरंग। विवार को श्रीमद्भागवत महापुराण के छठवें दिवस पर गांधी इंग्लिश मीडियम स्कूल प्रांगण के व्यास गद्दी से भागवताचार्य गजानंद अवस्थी महाराज ने कहा की श्री कृष्ण भगवान के अद्भुत लीला से प्रेरणा मिलती है की एक तरफ तो वे मुरली की तान से मधुरता लाते है और दूजी तरफ धर्म ध्वजा फहराने के लिए सुदर्शन चक्र उठाते है, उधव प्रसंग के अंतर्गत यशोदा मैया, नंद बाबा, गोप गोपियों ,श्री राधा आदि के विरह का मार्मिक चित्रण किया एवं कहा कि उधव को गोपियों के सत्संग से ज्ञान उत्तर प्रेम लक्ष्णा भक्ति का प्रत्यक्ष दर्शन हुआ और उन्होंने सभी गोपियों की चरण रज अपने मस्तक पर लगाई और सब का वंदन भी किया उन्होंने महसूस किया कि जिस भक्ति को महान मुनि भी तपस्या आदि से नहीं पा सके ऐसे भगवान को इन गोपियों ने अपने दिव्य प्रेम से सहज में ही पा लिया, उद्धव जी ने जान लिया कि वृंदावन के वृक्ष, लता पशु, पक्षी भूमि सभी कृष्ण मय है और यहां अलौकिक आनंद है तथा उनका ज्ञान भक्ति के बिना नीरस और बेजान है अतः ज्ञान भक्ति और वैराग्य एक दूसरे के पूरक है, उन्होंने अपने प्रवचन में वेदांत के सूत्र को अक्षरशः सत्य बताते हुवे कहा सिया राम मैं सब जग जानी, हरि व्यापक सर्वत्र समाना, उन्होंने श्री राधा प्रसंग में कहा की सब सखी कन्हैया के स्वप्न में आने की बात बताई पर श्री राधा जी ने विलक्षण बात कही की जब से कान्हा ब्रज से मथुरा गए तब से मुझे स्वप्न में घनश्याम नही दिखते क्योंकि तब से मुझे नींद ही नहीं आई इस प्रकार गोविंद ,दामोदर, माधव ,श्री कृष्ण ,मुरारी ,अच्युत ,केशव, नारायण,श्री राम आदि नामों से कथा कथा पान कराते हुवे आज के परिवेश में पश्चिम सभ्यता पर भी प्रहार करते हुवे भारतीय संस्कृति का गौरव गान किया ।

 

रुक्मणी विवाह प्रसंग पर महाराज अवस्थी ने कहा कि जो व्यक्ति ईश्वर के साथ संबद्ध जोड़ना चाहता है उसे प्रारंभ में कष्ट बहुत सताते हैं, रुक्मी भी अपनी बहन का विवाह भगवान से होने के विरुद्ध था ।

किंतु जब सद्गुरु की शरण में जीव होता है तो जीवन में आनंद आता है रुक्मणी ने भी गुरु सुदेव की सहायता ली थी, ईश्वर प्राप्ति के लिए जीवन सादा होना चाहिए राजकन्या होते हुए भी रानी रुकमणी माता पार्वती के दर्शन के लिए पैदल ही गई थी यदि रुकमणी को भौतिक सुख की आकांक्षा होती तो वह किसी भी अन्य राजा से विवाह कर लेती किंतु उसने बड़े विवेक से श्री कृष्ण का ही वरन किया जीव जब ईश्वर से बद्ध होता है तो कृतार्थ हो जाता है यह विवाह जीव और ईश्वर के मिलन की परिभाषा है ,रुकमणी भगवान की आद्या शक्ति है और यह प्रसंग दर्शाता है कि सुयोग्य जैसे सद्गुरु की मध्यस्थता के बिना जीव और ईश्वर का मिलन नहीं हो पाता रुकमणी विवाह के अवसर पर आयोजक चतुर्वेदी परिवार के द्वारा श्री कृष्ण और रुक्मणी की सुंदर झांकी प्रस्तुत की गई जिसे देखकर उपस्थित नगरवासी एवं पारिवारिक गण भक्ति भाव से सरोबार होकर मनमोहक छवि को प्रणाम करने लगे तथा सारा पंडाल श्री कृष्ण राधे गोविंदा सीता राधा रुकमणी आदि भजनों से गुंजायमान हो उठा।

महा प्रसादी वितरण के साथ कार्यक्रम का समापन किया गया वही संध्याकालीन बजरंग भजन मंडली के द्वारा संगीत में भजन प्रस्तुत किए गए जिसमें डॉक्टर तेजराम जलक्षत्री, हेमंत गुप्ता, राजेश शर्मा, याद राम मानिकपुरी,रमन जलक्षत्री परमानंद जलक्षत्री ,काशी देवांगन हरीश दीवान अरविंद वैष्णव संदीप शर्मा आदि ने भाग लिया ।*

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