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देवधान के 21 दानों से अनचाहे गर्भ का निदान, कृषि विश्वविद्यालय में रिसर्च शुरू

जगदलपुर: बस्तर के जंगलों में मिलने वाला दुर्लभ देवधान (जंगली चावल की प्रजाति) प्राकृतिक गर्भ निरोधक का काम कर रहा है। देवधान की बुआई नहीं की जाती है, यह बस्तर के जंगलों में अपने आप उगता है। बस्तर क्षेत्र में मान्यता है कि इस चावल के 21 दानों को खाने से महिलाओं को गर्भ नहीं ठहरता है, साथ ही हड्डियां भी मजबूत होती है। इस पर इंदिरा गांधी कृषि विवि के डिपार्टमेंट आफ जेनेटिक्स एंड प्लांट्स ब्रीडिंग विभाग ने रिसर्च शुरू कर दी है। विभागाध्यक्ष डा. दीपक शर्मा ने बताया कि कृषि मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले प्रोटेक्शन आफ प्लांट वैराइटीज एंड फार्मर्स राइट्स अथारिटी की तरफ से शोध करने की अनुमति मिल गई है।

बस्तर के स्थानीय शोधार्थी हेमंत कश्यप ने बताया कि इसी संदर्भ में विश्वविद्यालय को शोध के लिए पत्र लिखा गया था। बस्तर में महिलाएं आज भी इसका सेवन कर रही है। बस्तर के ही कुछ वैद्य और ग्रामीणों का यह मानना है कि इसे खाने से महिलाओं का गर्भ नहीं ठहरता है। बस्तर की बुजुर्ग महिलाएं आज भी अपने परिवार की बहू- बेटियों को देवधान खाने ही सलाह दे रही है।

बस्तर क्षेत्र में अभी भी देवधान का उपयोग हो रहा है। यह जंगली धान की प्रजाति है। बस्तर में माचकोट वन परिक्षेत्र के अंतर्गत कुरंदी वेस्ट वन परिसर के डोंगाबोड़ना नाला और कोलेंग वन परिक्षेत्र में चांदामेटा बस्ती से लगभग दो किमी. दूर मासाझोड़ी नाला प्रक्षेत्र में लुप्तप्राय औषधीय गुण युक्त धान की एक प्रजाति है, जिसे देवधान या बन धान कहा जाता है

आइसीएआर में करवा रहे रजिस्ट्रेशन

इंदिरा गांधी कृषि विवि के डिपार्टमेंट आफ जेनेटिक्स एंड प्लांट्स ब्रीडिंग विभाग के विभागाध्यक्ष डा. दीपक शर्मा ने बताया कि हम इंडियन काउंसिल आफ एग्रीकल्चर रिसर्च (आइसीएआर) और नेशनल ब्यूरो आफ प्लांट जेनेटिक्स रिसोर्सेस को रजिस्ट्रेशन के लिए भेज रहे हैं। जंगल में मिलने वाला देवधान का गुणधर्म बहुत ही यूनिक है। हम लोगों ने इस पर रिसर्च शुरू कर दिया है।

मासिक धर्म से पहले खाने से नहीं ठहरता गर्भ

वैद्य और ग्रामीण महिलाओं के मुताबिक मासिक धर्म से ठीक पहले देवधान को खाना चाहिए। देवधान को छीलकर चावल निकालकर 21 दाना खाना चाहिए। इससे गर्भ नहीं ठहरता है।

40 वर्ष से कर रहे उपयोग

बस्तर के मुण्डापारा कुरंदी के 72 साल के वैद्य कुलनाथ धुर्वा ने बताया कि पिछले 40 सालों से देवधान का उपयोग करवा रहा हूं। आसपास के गांव की महिलाएं इसी का सेवन करती है। इस क्षेत्र के ग्रामीणों को 40 साल से दवा कर रहा हूं।

पूर्वजों के जमाने से उपयोग :

चोकावाड़ा के 65 साल के वैद्य सोना वैद्यराज ने बताया कि पूर्वजों के जमाने से ही हम देवधान का उपयोग करते आ रहे है।

देवधान की लुप्तता के कारण

देवधान पर शोध करने वाले बस्तर के हेमंत कश्यप का कहना है कि देवधान की लुप्तता की प्रमुख वजह वनीय नालों का सूखना और आगजनी है। इस आयुर्वेदिक औषधि का संरक्षण जरूरी है। लगातार वनों की कटाई और जल स्त्रोतों के सूखने से जंगली नालों का प्रवाह थम गया है, वहीं दूसरी ओर जंगलों में आग लगाए जाने से से विभिन्ना झाड़ियों और कंदीय वनीय औषधियों को भारी नुकसान पहुंच रहा है।

यहां औषधि गुण के ये धान भी

महरजी धान : प्रसव के बाद अधिक खून बह जाने के कारण आई कमजोरी दूर करने।

करहनी धान : लकवा के लिए।

बैसूर धान : सिरदर्द व मिर्गी के लिए।

सूलधान : पेट दर्द के लिए।

लायचा और गठवन धान : रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए।

बस्तर में मिलते है औषधीय गुण के धान

बस्तर में धान की ऐसी कई पुरानी और दुर्लभ प्रजातियां है जो औषधि गुण रखती है।प्रसव के बाद अधिक खून बह जाने के कारण महिलाओं के अंदर आई कमजोरी को दूर करने के लिए महरजी धान का उपयोग किया जाता है। वैसे ही लकवा के लिए करहनी धान, सिरदर्द और मिर्गी के लिए बैसूर धान, पेट दर्द के लिए सूलधान, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए लायचा और गठवन धान का उपयोग करते है।

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