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कोरबा की वाॅक ओवर सीट पर सरोज पांडेय की हार का क्या है मतलब ?

कोरबा । छत्तीसगढ़ की जिस कोरबा सीट को बीजेपी अपने लिए वाॅक ओवर मान रही थी, उसी सबसे सुरक्षित सीट से बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा है। जीं हां बीजेपी की राष्ट्रीय नेत्री सरोज पांडेय की हार ने जहां प्रदेश की सभी 11 में से 11 सीटों पर ऐतिहासिक जीत के रिकार्ड पर ब्रेक लगा दिया। वहीं प्रदेश की इकलौती इस सीट में बीजेपी का मिली करारी हार ने पार्टी के नेताओं की नियत और महत्वकांक्षा पर भी सवाल खड़े कर दिये है। जाति समीकरण के साथ ही पार्टी में व्याप्त अंतर्कलह कांग्रेस प्रत्याशी के लिए संजीवनी साबित हुई, और बीजेपी को इस वाॅक ओवर वाली सीट पर ही करारी हार का सामना करना पड़ा।

लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद एक तरफ राजनीतिक दल सरकार बनाने के दांव-पेंच में जुटे हुए है। वहीं दूसरी तरह हार-जीत को लेकर पार्टी में मंथन का दौर भी जारी है। छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों की बात करे तो यहां कोरबा और राजनांदगांव सीट पर सबकी नजरे टिकी थी। परिणाम सामने आये तो दोनों सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी के बड़े नेता को हार का सामना करना पड़ा। बात कोरबा लोकसभा सीट की करे तो कांग्रेस की ज्योत्सना महंत यहां से सांसद रही। घरेलू महिला से सीधे राजनीति में आई ज्योत्सना महंत का पांच साल का कार्यकाल काफी निष्क्रिय रहा। अधिकांश समय उनका रायपुर या भोपाल में ही गुजरा। राजनीतिक जानकारों की माने तो ज्योत्सना महंत की 5 सालों तक क्षेत्र को लेकर निष्क्रियता के बाद भी दोबारा टिकट मिलना बीजेपी के लिए वाॅक ओवर था। बावजूद इसके इस सीट पर केंद्रीय नेतृत्व से लेकर बीजेपी के बड़े नेताओें ने कई बड़ी गलतियां की…..!

जाति समीकरण नही समझ पायी बीजेपी….

कोरबा लोकसभा सीट भले ही सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित है। लेकिन आदिवासी बाहुल्य वाले इस सामान्य सीट में जाति समीकरण अहम मुद्दा रहा है। साल 2008 में गठन के बाद से अब तक इस सीट से बीजेपी ने साल 2009 में करूणा शुक्ला और साल 2019 में ज्योतिनंद दुबे को इस सीट से अपना कैंडिडेट बनाया। लेकिन ब्राम्हण समाज से आने वाले इन दोनों प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा। वहीं साल 2014 में सिर्फ एक बार ओबीसी वर्ग से आने वाले डाॅ.बंशीलाल ने सीट से डाॅ.चरणदास महंत को हराकर जीत दर्ज की थी। इन सारे रिकार्डो के बाद भी बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने जिस तरह से तीसरी बार ब्राम्हण समाज से आने वाली सरोज पांडेय को यहां से प्रत्याशी बनाया, वह पार्टी आलाकमान का सबसे बड़ा गलत फैसला साबित हुआ। जिसकी वजह से बीजेपी के लिए वाॅक ओवर वाली इस सीट पर एक बार फिर हार का सामना करना पड़ा।

मंत्रियों के पाॅवर घटने का डर भी बनी हार की वजह

कोरबा लोकसभा में बीजेपी सरकार के दो-दो मंत्री और 6 विधायक होने के बाद भी सरोज पांडेय को हार का सामना करना पड़ा। चुनाव प्रचार के दौरान देखा गया कि कोरबा से विधायक व उद्योग मंत्री लखनलाल देवांगन और मनेंद्रगढ़ से आने वाले स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल प्रचार में सरोज पांडेय के कमद से कदम तो मिला रहे थे। लेकिन उन्ही के कार्यकर्ता दबी जुबान से ये भी कहते नजर आये कि अगर मैडम सांसद बन गयी और केंद्र में उनको कैबिनेट में स्थान मिला, तो दोनों मंत्रियों की पाॅवर सीज हो जायेगी। ऐसे में लोकसभा चुनाव के बाद कई तरह के सपने संजो कर रखने वाले मंत्रियों के नजदीकी कार्यकर्ताओं के अरमानों पर पानी फिरता दिख रहा था। जिसे लेकर जमीनी स्तर पर अधिकांश कार्यकर्ता महज खानापूर्ति करते ही नजर आये।

स्थानीय नेताओं की उपेक्षा बनी हार की वजह

विधानसभा चुनाव में टिकट से चूके कोरबा जिला के कई नेताओं को लोकसभा चुनाव में टिकट की काफी उम्मींद थी। विधानसभा चुनाव के वक्त ही वो नेता खुद को टिकट की दौड़ से बाहर बताकर लोकसभा की तैयारी का दावा कर रहे थे। लेकिन एका एक केंद्रीय नेतृत्व ने जिस तरह से सरोज पांडेय को कोरबा से अपना कैंडिडेट घोषित किया, वो कोरबा के स्थानीय नेताओं के लिए काफी निराशाजनक था। सियासी जानकारों की माने तो सरोज पांडेय ने इन नाराज नेताओं का भरोसा जीतने के बजाये पैरलर ही एक अलग टीम बनाकर चुनाव प्रचार में जुट गयी। उधर केंद्रीय मंत्री से विधायक तक सीमित रह गयी रेणुका सिंह की नाराजगी भी किसी से छिपी नही। अपने क्षेत्र में रेणुका सिंह चुनाव प्रचार में नजर तो आयी, लेकिन उनके वो तेवर इस चुनाव में कही भी नजर नही आये। प्रदेश प्रभारी नितिन नबीन के हस्तक्षेत्र के बाद भले ही नाराज नेताओं ने मैदान में उतरकर काम करना शुरू किया । लेकिन दुर्ग-भिलाई टीम का नेतृत्व लोकल कार्यकर्ताओं ने एक्सेप्ट नही किया। जिसका नतीजा रहा कि बीजेपी की प्रत्याशी सरोज पांडेय को इस वाॅक ओवर सीट से हार का सामना करना पड़ा।

LED लाइट के ठेका ने पार्टी कार्यकर्ताओं का भरोसा तोड़ा

राज्य सभा सांसद रही सरोज पांडेय कोरबा लोकसभा की पालक सांसद भी थी। लिहाजा तीन सालों से पालक सांसद रही सरोज पांडेय ने इस क्षेत्र में अपने फंड से कोई विशेष काम नही कराये थे। लेकिन टिकट के लिए नाम फाइनल होने पर उन्होने जनवरी 2024 में कोरबा लोकसभा के लिए करीब 14 करोड़ 21 लाख रूपये का सांसद मद से फंड जारी किया गया। इनमें निर्माण कार्यो के साथ ही करीब 80 ग्राम पंचायतो में एलईडी लाइट लगाने का कार्य स्वीकृत किया गया। करीब 4 करोड़ 16 लाख रूपये के इस कार्य का आबंटन होने के बाद कोरबा के स्थानीय पार्टी कार्यकर्ताओं ने एलईडी लाइट का कार्य करने की इच्छा जाहिर की थी। लेकिन ये काम कोरबा के किसी भी एजेंसी को न देकर दुर्ग-भिलाई के एक एजेंसी को पूरा काम एक मुश्त दे दिया गया। बस इस फैसले के बाद से ही ये बात उड़ गयी कि अभी से दुर्ग-भिलाई की एजेंसी को काम दिया जा रहा है, अगर मैडम सांसद बन गयी, तो फिर कोरबा में दुर्ग-भिलाई का ही कब्जा हो जायेगा। सियासी जानकार कहते है कि सरोज पांडेय के सांसद मद से कार्यो का बंटवारा और दुर्ग-भिलाई की एजेंसी को ज्यादा वेटेज देना पार्टी कार्यकर्ताओं को निराश करने के साथ ही उनकी हार की एक बड़ी वजह रही।

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