छत्तीसगढ़बिलासपुर

पुलिस की अवैध शराब जब्ती व दस्तावेजी कार्रवाई पर हाई कोर्ट ने उठाए गंभीर सवाल, आरोपी दोषमुक्त

बिलासपुर। अवैध शराब जब्ती के एक मामले में बिलासपुर हाई कोर्ट ने पुलिस की कार्रवाई पर गंभीर सवाल उठाते हुए आरोपी को दोषमुक्त कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि मामले में पुलिस की जांच और दस्तावेजों में गंभीर खामियां हैं, जिससे संदेह से परे अपराध सिद्ध नहीं हो सका। धमतरी जिले के मगरलोड पुलिस ने अर्जुन देवांगन पर आरोप लगाया था कि वह 40 क्वार्टर देशी शराब (प्रत्येक 180 मि.ली.) अवैध रूप से मोटरसाइकिल में ले जा रहा था। पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर शराब जब्त करने की बात कही और छत्तीसगढ़ आबकारी अधिनियम, 1915 की धारा 34(2) के तहत मामला दर्ज किया।

मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, धमतरी ने 20 जुलाई 2012 को आरोपी को एक साल की सजा और 50 हजार रुपये जुर्माना सुनाया, जिसे बाद में अपर सत्र न्यायालय ने भी बरकरार रखा, हालांकि जुर्माना घटाकर 25 हजार कर दिया गया। इसके बाद अर्जुन ने हाई कोर्ट में आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दाखिल की।

जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल की सिंगल बेंच में हुई सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील संजीव कुमार साहू ने पुलिस की कार्यवाही की खामियां उजागर कीं। उन्होंने बताया कि:जिन दो स्वतंत्र गवाहों के नाम पर पुलिस ने जब्ती दिखाई, उन्होंने खुद पुलिस की कार्रवाई को गलत बताया।जब्ती पत्र में सैंपल सील का उल्लेख नहीं है। मलकाना रजिस्टर में जब्त शराब की सुरक्षित और सील अवस्था में जमा होने का कोई रिकॉर्ड नहीं है।

जब्ती की जगह और समय को लेकर पुलिस और गवाहों के बयान मेल नहीं खाते।

कोर्ट ने माना कि जब्ती की कार्रवाई पुलिस चौकी में ही की गई, और यह आबकारी अधिनियम की धारा 57A का उल्लंघन है। अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर सका कि अपराध संदेह से परे सिद्ध है।

अंततः कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को रद्द कर याचिकाकर्ता को दोषमुक्त कर दिया, और निर्देश दिया कि यदि जुर्माना राशि जमा की गई हो तो उसे लौटाया जाए।

यह फैसला साफ संकेत देता है कि सिर्फ आरोप ही नहीं, सटीक और निष्पक्ष जांच भी उतनी ही जरूरी है। पुलिस की लापरवाही और दस्तावेजी त्रुटियां न सिर्फ न्याय में बाधा बनती हैं, बल्कि निर्दोषों को भी सजा दिला सकती हैं।

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