प्रदेश की इन बेटियों ने कर्ज लेकर लिया प्रशिक्षण, अब इंटरनेशनल स्पर्धा में लहराया परचम
बालोद ।” लहरों को साहिल की दरकार नहीं होती, हौसला बुलंद हो तो कोई दीवार नहीं होती, जलते हुए चिराग ने आँधियों से ये कहा, उजाला देने वालों की कभी हार नहीं होती”
यह पंक्तियों को चरितार्थ किया है डौंडी ब्लॉक के पूसावड़ की दो आदिवासी बेटियों ने । इन्होंने ऐसा कर दिखाया जो अच्छे से अच्छे एकादमी के बच्चे नहीं कर पाए। आर्थिक स्थिति भले ही कमजोर थी लेकिन परिजनों ने कर्ज लेकर बेटियों को आगे बढ़ाया और आज वही बेटियां देश में छत्तीसगढ़ व बालोद की एक अलग पहचान बनाई। बालोद जिले के अंतिम छोर में बसे पुसावाड़ गांव की 23 साल की राधिका हिड़को और 19 साल की ज्योति चक्रधारी ने विशाखापट्टनम में आयोजित दो दिवसीय पांचवी इंटरनेशनल कराते चैंपियनशिप में हिस्सा लिया और सिल्वर मेडल अपने नाम करने में सफलता हासिल की। एज और वेट डिफेंस में खेल गांव के सिल्वर मेडल पर कब्जा कर ये साबित कर दिया कि बेटियां भी बेटों से कम नहीं।
बेहद गरीब परिवार से हैं दोनों
घर मे पैसे नहीं, पिता लाचार, और माँ मज़दूरी कर परिवार चला रही है लेकिन बेटी का सपना था कि वह अपने परिवार के लिए कुछ ऐसा करे कि उसके साथ साथ उसके परिवार को पूरा देश जाने। एक पल के लिए तो परिजनों ने हार मान ली थी। लेकिन बेटियों के जज्बे ने परिजनों का हौसला बढ़ाया । कमजोर आर्थिक स्थिति को देखकर इनकी कभी उम्मीद शासन व प्रशासन से भी हुआ करती थी लेकिन वह उम्मीद की किरण भी कहीं गुम हो गई है । शुरुआत से ही दोनों बेटियों का कराते खेल के प्रति रुझान था बिना संसाधनों के बुलंदियों के शिखर तक पहुंचने लगातार जी तोड़ मेहनत करती रही विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपने मेहनत को विराम नहीं दिया राधिका हिड़को के पिता चलने में असमर्थ है जिसके चलते परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है।
ऐसे में प्रतियोगिता में हिस्सा लेने जाने समाज व अन्य लोगों ने उनकी आर्थिक मदद की तो वही कु. ज्योति के परिजन लोगों से कर्ज लेकर बेटी के सपनों में उड़ान भरने विशाखापट्टनम भेजा। दोनों बेटियों का मानना है कि भले ही अपने सपनों को हासिल करने के लिए उन्हें काफी जद्दोजहद करनी पड़ी पर जब दो सिल्वर मेडल लेकर जैसे ही विशाखापट्टनम से गांव वापस लौटी तो पूरा गांव स्वागत सत्कार के लिए उमड़ पड़ा।