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कवासी लखमा की जीवनी, जानिये कौन हैं बस्तर से लोकसभा प्रत्याशी कवासी लखमा, आज तक कभी नहीं हारा विधानसभा चुनाव

कवासी लखमा बस्तर में कांग्रेस के सबसे लोकप्रिय नेता है। छत्तीसगढ़ के आखिरी छोर आंध्रप्रदेश व छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती विधानसभा कोंटा से लगातार चुनाव जीतते आ रहे कवासी लखमा को 2024 लोकसभा में पार्टी ने बस्तर से प्रत्याशी बनाया है। कवासी लखमा को मौजूदा सांसद दीपक बैज का टिकट काटकर बस्तर से प्रत्याशी बनाया गया है। स्कूल का कभी मुंह नहीं देखने वाले कवासी लखमा छत्तीसगढ़ में कांग्रेस शासनकाल में उद्योग व आबकारी जैसे बड़े विभागों को देख चुके हैं।

कांग्रेस ने शनिवार को कांग्रेस प्रत्याशियों की लिस्ट जारी की, जिसमें बस्तर से कवासी लखमा का नाम था। 6 बार के विधायक कवासी लखमा के सामने बीजेपी ने एक पूर्व सरपंच को उतारा है। भाजपा प्रत्याशी महेश कश्यप का राजनैतिक करियर तो कुछ खास लंबा नही रहा, लेकिन वह पिछले कुछ समय में बस्तर में धर्मांतरण के खिलाफ मोर्चा खोले बैठे हैं। ऐसे में 6 बार के विधायक और एक पूर्व सरपंच के बीच होने वाला यह मुकाबला काफी दिलचस्प होने वाला है।

कांग्रेस ने बस्तर के अपने सबसे दिग्गज नेता कवासी लखमा को अपना प्रत्याशी बनाया है। कवासी 1998 से लगातार विधायक हैं. एक वक्त था जब बस्तर की 12 विधानसभा सीटों में से 11 पर बीजेपी का कब्जा था, उस वक्त भी कवासी लखमा अपनी कोंटा विधानसभा सीट बचाने में कामयाब रहे थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बीच भी बीजेपी को बस्तर लोकसभा सीट गंवानी पड़ी थी। यहां से कांग्रेस के दीपक बैज ने चुनाव जीता था, दीपक वर्तमान में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। इस बार लखमा के बेटे हरीश लखमा और दीपक बैज कांग्रेस की ओर से प्रत्याशी बनने की दौड़ में सबसे आगे चल रहे थे, लेकिन पार्टी ने कवासी लखमा को टिकट दे दिया।

लगातार छह बार जीते विधानसभा

बस्तर में कवासी लखमा की लोकप्रियता चरम पर है। वो आज तक कभी भी विधानसभा चुनाव नहीं हारे हैं। हालांकि लोकसभा उपचुनाव में उन्हें एक बार हार का मुंह देखना पड़ा है। उन्होंने सबसे पहले 1998 में चुनाव जीता था, उसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा, उसके बाद वो फिर 2003, 2008, 2013, 2018 और फिर इस बार 2023 में लागातर विधानसभा चुनाव जीते हैं।

2023 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने बीजेपी के प्रत्याशी सोयम मुका को 1981 वोटों के अंतर से हराया था। इससे पहले कवासी लखमा बस्तर से उपचुनाव में कांग्रेस की तरफ से लोकसभा के प्रत्याशी रह चुके हैं, लेकिन उस वक्त उन्हें दिनेश कश्यप के हाथों हार झेलनी पड़ी थी। उस वक्त बलिराम कश्यप के निधन के बाद सीट खाली हुई थी। 2011 में लोकसभा क्षेत्र के उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार दिनेश कश्यप ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के लखमा कवासी को 85,000 से अधिक मतों से हराया था

बस्तर के सबसे नक्सल प्रभावित सुकमा से आते हैं कवासी

कवासी लखमा बस्तर जिले के सुकमा से आते है। उनका यह जिला प्रदेश में नक्सल प्रभावित इलाका है और नक्सल गतिविधि के चलते अक्सर चर्चा में बना रहता है। यहीं से आने वाले कवासी ने कभी भी स्कूल नहीं गए। हालांकि उन्होंने आदिवासी जीवन से बहुत कुछ सीखा

भले ही उन्होंने कभी भी स्कूल का मुंह नहीं देखा है लेकिन 2018 में भूपेश बघेल की सरकार बनने पर उन्हें मंत्री बनाते हुए आबकारी और उद्योग विभाग दिया गया है। उनकी यादाश्त इतनी अच्छी है कि एक बार सामने वाला उन्हें भाषण पड़कर सुना देता है और वो भाषण उन्हें पूरा याद हो जाता है। वो विधानसभा में भी लंबे-लंबे भाषण देते रहे हैं। इसके अलावा विधानसभा सत्र के दौरान वो विभाग के सवालों का जवाब भी देते थे।

कवाली लखमा की जीवनी

कवासी लखमा 2013 में हुए दरभा घाटी में हुए नक्सली हमले में जीवित बचे लोगों में से एक नेता थे। कवासी लखमा छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के कोंटा तहसील के सोनाकुकनुर पोस्ट के नागरास गांव के रहने वाले हैं। कवासी लखमा, आदिवासी नेता के साथ-साथ को छत्तीसगढ़ राज्य के कोंटा विधानसभा से पहली बार 2003 में चुने गये थे। 2013 में दरभा घाटी में नक्सली हमले के दौरान, 30 से अधिक लोग मारे गए थे , तो वो उस काफिले में शामिल थे। हालांकि उस हमले में कवासी लखमा बच गये थे, जबकि उनके साथ अगवा किये गये नंदकुमार पटेल और उनके बेटे दिनेश पटेल को नक्सलियों ने मार डाला था। उस वक्त कवासी लखमा को लेकर कई तरह के सवाल उठे थे। भाजपा ने तो कवासी लखमा के नार्को टेस्ट की मांग की है, ताकि घातक हमले के दौरान उनके द्वारा नक्सलियों के साथ किए गए संवाद और किसी भी संभावित साजिश का विवरण पता चल सके।

राजनीतिक जीवन

1995 में पहली बार कवासी लखमा को कांग्रेस पार्टी का ब्लाक अध्यक्ष बनाया गया था। कवासी लखमा के लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि साल 2003 में उन्होंने बड़े अंतर यानी 51.54 फीसदी वोट से जीत हासिल की थी. उनका निर्वाचन क्षेत्र नक्सल प्रभावित क्षेत्र है. वे नक्सलियों के साथ उनकी मूल भाषा में बातचीत करने में सक्षम हैं. कवासी लखमा साल 1998 में पहली बार कोंटा निर्वाचन क्षेत्र से विधायक चुने गए थे, जब छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश का हिस्सा था. बाद में वे 2003, 2008, 2013 और 2018 में फिर से निर्वाचित हुए. 2003 में यह पूछे जाने पर कि मंत्री के रूप में वह अपने कार्यकाल के दौरान फाइलों पर हस्ताक्षर कैसे करेंगे? लखमा ने कहा कि भगवान ने उन्हें बुद्धि दी है और वह इसका उपयोग करेंगे.

 

 

 

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