राजधानी में पाेरा आज, दौड़ लगाने के लिए मिट्टी के बैल तैयार, कोरोना के चलते प्रतियोगिता रद्द
रायपुर। प्रदेश में आज पोरा मनाया जाएगा। इस दिन शहर की गलियों में दौड़ लगाने के लिए मिट्टी के बैल तैयार हो गए हैं। वहीं रावणभाठा मैदान में असली बैलों के बीच होने वाली दौड़ प्रतियोगिता इस बार भी रद्द कर दी गई है। तीसरी लहर की आशंका को देखते हुए आयोजन समिति श्रीकृष्ण जन्माष्टमी उत्सव एवं विकास समिति ने यह फैसला लिया है। परंपरा न टूटे इसलिए आज यहां 8 जोड़े बैल की पूजा की जाएगी।
छत्तीसगढ़ में पोरा पर बैलों को सजाने और उनकी दौड़ कराने की परंपरा पुरानी है, लेकिन पिछले कुछ समय से इसका चलन कम हुआ है।
छत्तीगढ़िया संस्कृति को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से ही श्रीकृष्ण जन्माष्टमी उत्सव एवं विकास समिति ने 12 साल पहले रावणभाठा मैदान में बैल दौड़ प्रतियोगिता की शुरुआत की थी। आखिरी बार यहां बैलों की दौड़ 2019 में हुई थी। तब तक पोरा पर आसपास के गांवों से बड़ी संख्या में किसान यहां अपने बैलों के साथ जुटते थे। जीतने वाले बैल और उसके मालिक को इनाम के तौर पर हजारों रुपए दिए जाते थे। 2020 और अब 2021 में भी यह प्रतियोगिता महामारी की भेंट चढ़ गई।
छत्तीसगढ़ी व्यंजन बनाकर खुशियां मनाई जाएगी
पोरा के लिए घरों में ठेठरी-खुर्मी, सुंहारी, बरा और गुड़ चीला जैसे पारंपरिक व्यंजन बनने लगे हैं। सोमवार सुबह नंदिया बइला, जांता पोरा की पूजा के बाद इन्हीं व्यंजनों का भोग लगाया जाएगा। फिर बच्चों और पास-पड़ोस के लोगों में इसे बांटकर त्योहार की खुशियां मनाई जाएंगी।
वहीं किसान परिवारों में सुबह गाय-बैलों का स्नान-श्रृंगार किया जाएगा। सींग और खुर यानी पैरों में महाउर लगाया जाएगा, वहीं गले में घुंघरू, घंटी और कौड़ी के आभूषण पहनाए जाएंगे। मान्यता है कि श्रीकृष्ण को मारने के लिए कंस ने कई असुरों को भेजा था। इन्हीं में से एक था पोलासुर राक्षस जिसका श्रीकृष्ण ने भाद्रपद अमावस्या के दिन वध किया था। पोरा मनाने की कई प्रमुख मान्यताओं में एक यह भी है।
इसलिए मनाते हैं पोरा
पं. मनोज शुक्ला ने बताया कि भाद्रपद मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाने वाला पोला खरीफ की खेती का दूसरा चरण (निंदाई-कोड़ाई) पूरा होने की खुशी में मनाया जाता है। किसान फसल बढ़ने की खुशी में बैलों की पूजा कर उनके प्रति कृतज्ञता जताते हैं।
ऐसा इसलिए क्योंकि बैलों के सहयोग से ही खेती की जाती है। पोरा की पूर्व रात्रि गर्भ पूजन किया जाता है। माना जाता है कि इसी दिन अन्न माता गर्भ धारण करती है।
अर्थात धान के पौधों मे दूध भरता है। इसी कारण पोरा के दिन किसी को भी खेत में जाने की अनुमति नहीं होती। रात मे जब सो जाते है, तब गांव के पुजारी-बैगा, मुखिया व कुछ पुरुष सहयोगी आधी रात को गांव तथा गांव के बाहर सीमा क्षेत्र के कोने-कोने मे प्रतिष्ठित सभी देवी देवताओं के पास जाकर विशेष पूजा आराधना करते हैं। यह पूजा रातभर चलती है।