छत्तीसगढ़

प्रदेश में धान नीलामी प्रक्रिया के चलते भारी नुकसान , सरकार के डूबे 150 करोड़ रु.

रायपुर। गजब नौकरशाही तंत्र के समर्थन मूल्य पर किसानों से खरीदे गये करीब 150 करोड़ रुपये धान सड़ गये। हालात ये है कि इनके रख-रखाव और नीलामी प्रक्रिया में चल रहे खेल के चलते सरकार को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। ऐसे में इसके लिए जिम्मेदार अफसरों पर कहां तक कार्रवाई हो पाती है। ये तो किसी से कुछ छिपा नहीं है। बस जांच और प्रतिवेदनों का दौर चलेगा धीरे-धीरे इस प्रदेश के राजस्व को हाेने वाले प्रकरण की फाइल भी दब जाएगा। वक्त के साथ मामला भी ठंडे बस्ते में चला जाएगा। रघु कुल रीत सदा चली आई वाली विभागीय छवि को सुधार पाना किसी के बस बूते की बात नहीं है। वैसे हर साल करोड़ों रुपये के धान संग्रहण केंद्रों में सड़ जाते हैं।

सरकार का सिस्टम बुरी तरह फेल रहा है-
गौरतलब है कि कोरोना काल में धान खरीदी से जुड़े मामलों में सरकार का सिस्टम बुरी तरह फेल रहा है और जिस प्रकार से धान का निपटारा हो रहा है उससे राज्य शासन को लगभग 150 करोड़ का सीधा नुकसान होगा जो कि छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा नुकसानदेह साबित होगा।

.. लेकिन सरकार की अर्थव्यवस्था बदहाल होती चली जा रही –
वहीं मुद्दे पर पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का कहना है कि राज्य में 2500 रूपए प्रति क्विंटल धान खरीदी का अपना वादा निभाने में तो सरकार सफल रही है और इस वजह से राज्य के किसान भी खुशहाल है लेकिन सरकार की अर्थव्यवस्था बदहाल होती चली जा रही है। हालात इतने बिगड़े हुए है कि सरकार अपने धान की मीलिंग तो करा ही नहीं पा रही है और जो बचा हुआ धान जिसे नीलामी के जरिए बेचने की कोशिश कर रही है वह कोशिश भी इतनी सफल नहीं है क्योंकि बार बार टेंडर करने के बावजूद धान खरीदने के लिए खरीददार नहीं मिल रहे है।

धान के उपार्जन का रिकार्ड-
इस वर्ष सरकार ने मार्कफेड के जरिए 28 जिलों में कुल 92,02,373 टन धान का उपार्जन किया था जो कि अब तक राज्य में हुए धान के उपार्जन का रिकार्ड है। इस धान को सितंबर 2021 तक मिलिंग कराया जाना है क्योंकि इसी अवधि में ही केन्द्र सरकार उपार्जित धान के चावल को क्रय करती है।

विपक्ष का यह भी आरोप है मिलर्स से मिलिंग नहीं करा पा रहे हैं
अधिक धान खरीदी होने और मिलर्स से मिलिंग न करा पाने के कारण सरकार अपने लक्ष्य को खो रही है चूंकि रखरखाव में बदहाली के कारण धान खराब हो रहा था इसलिए सरकार ने निर्णय लिया कि वह अपना धान नीलाम के जरिए बेचेगी। अभी तक कुल 8,30,920 टन धान का ही नीलाम हो सका है।

सरकार को 1200 से 1300 प्रति क्विंटल का हो रहा सीधा नुकसान-
सरकार ने अपना नुकसान कम करने के लिए इस प्रक्रिया को अपनाया था लेकिन सरकार का सिस्टम सरकार को धवस्त है। जो धान नीलाम किया जा रहा है वह मात्र 1200 और 1300 रू. क्विंटल की दर से नीलाम हो रहा है जिसमें सीधे तौर पर सरकार को 1200 से 1300 प्रति क्विंटल का सीधा नुकसान हो रहा है इसके अलावा इस धान के संग्रहण, ट्रांसपोर्टिंग, बोरे, मजदूरी और सिस्टम का वेतन भी इस घाटे में सम्मिलित किया जाए तो यह घाटा कही और बढ़ जाता है।

..फिर धान कम दरों पर नीलाम क्यों हो रहा-
सरकार की एजेंसी मार्कफेड से पूछने पर कि क्या धान खराब हो गया है तो उनका सीधा जवाब है कि धान कही भी खराब नहीं हुआ है और बकायदा कैप कवर लगाकर उसका संग्रहण किया गया है। फिर सवाल यह उठता है कि धान कम दरों पर नीलाम क्यों हो रहा है। इसका जवाब देने से सरकार की सभी एजेंसियां बच रही हैं।

अधिकारी ने ये कहा, जो हैरतभरा है-
खाद्य मंत्रालय में पदस्थ उपसचिव शिकरवार से जब इस बाबत पूछा गया तो उन्होने कहा कि नीलाम मार्कफेड कर रहा है इसलिए दर और क्वालीटी के बारे में वही बता पाएंगे, जबकि मार्कफेड के अधिकारी पैकरा ने बताया कि नीमाल की सारी कार्यवाही मंत्रालय के जरिए हो रही है। नीलाम किए जा रहे धान के पीछे सरकार की मंशा चाहे जो भी रही हो लेकिन राज्य में इस नीलाम से धान और चावल लॉबी की सिस्टम के साथ मिली भगत और बड़ा लाभ कमाने का षडयंत्र साफ नजर आता है जो भी धान नीलाम हो रहा है वह लगभग आधी कीमत पर वे ही राईस मिलर्स खरीद रहे है जो सरकार की कस्टम मिलिंग भी कर रहे है।

मिलर्स बोल रहे, चावल बनाने के लिए धान नहीं बचा-
मिलर्स का कहना है कि यह धान जो नीलाम किया जा रहा है वह खराब हो चुका है और उसकी अधिकांश मात्रा चावल बनाने लायक नहीं है। इसलिए इसकी कीमत नहीं मिल रही है और सरकार जहां है जैसा है के आधार पर एक संग्रहण केन्द्र का पूरा धान एक साथ नीलाम करती है ताकि छटनी का अवसर न मिले। मिलर्स इस तरह का धान उठा तो रहे है लेकिन यह शोध का विषय है कि यदि धान से चावल बन ही नहीं सकता तो वर्षो से चावल का काम कर रहे राईल मिलर्स उस धान को 1200 या 1300 प्रति क्विंटल भी खरीद कर भी क्या करेंगे?

कस्टम में हो रहा बड़ा खेल, जानें कैसे-
वास्तव में नीलाम और कस्टम मिलिंग के बीच बड़ा खेल चल रहा है जो मिलर्स नीलाम में धान खरीद रहे है वे भी कस्टम मीलिंग का सरकारी अनुबंध कर के सुरक्षित रखे हुए धान को भी छांट कर उठा रहे है और जो सड़ा हुआ धान वो नीलाम में खरीदे थे उसका चावल बनाकर सरकारी धान के बदले दिया जा रहा है और जो अच्छी क्वलीटी का धान कस्टम मीलिंग के लिए प्राप्त हुआ था उसका चावल बाजार में खपाया जा रहा है। सरकारी सिस्टम और राईस मिलर्स की मिलीभगत से सरकार को जहां 15 से 20 हजार लाख रूपए का नुकसान होगा वहीं राज्य के राईस मिलर्स के पौ बारह हो जाएंगे।

राज्य में 1960 पंजीकृत राइस मिलर्स, लापरवाही भी नजर अंदाज-
राज्य में 1960 पंजीकृत राईस मिलर्स है जिनके जरिए राज्य अपना उपार्जित किए हुए धान की कस्टम मिलिंग कराता है। कोरोना काल में होते रहे लॉकडाउन और सरकार के सिस्टम की अकर्मण्यता के कारण मीलिंग का काम सुचारू रूप से नहीं हो पा रहा है जिसके कारण धान का निपटान नहीं हो सकता है। एग्रीमेंंट करने के बावजूद अनेक राईस मिलर्स ने या तो धान उठाया नहीं और यदि उठाया तो समय से उसकी मिलिंग नहीं की।

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