125 साल से राजधानी में जगमगा रही गणेश पर्व की अलख
रायपुर। स्वतंत्रता संग्राम में योगदान देने के लिए देश भर के लोगों को एकजुट करने और जन-जन में धार्मिकता के माध्यम से देश भक्ति की लहर फैलाने के लिए स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बाल गंगाधर लोकमान्य तिलक ने 1894 में गणेश पर्व को सार्वजनिक रूप से मनाने का आह्वान किया था। उस वक्त छोटे से कस्बे रायपुर में भी प्रतिमा स्थापित करने की शुरुआत हुई। पुरानी बस्ती, गुढ़ियारी, रामसागरपारा, चौबे कालोनी के महाराष्ट्र मंडल में सालों तक पर्व की धूम मची। 125 साल बाद भी राजधानी में गणेश पर्व की सजावट देखने प्रदेश भर से श्रद्धालु आते हैं। दो साल से कोरोना महामारी के नियमों ने गणेश पर्व का उत्साह फीका कर दिया है, समिति वालों को उम्मीद है कि अगले साल फिर से रौनक लौटेगी।
राधे-राधे की झांकी नहीं भूले
रामायण-महाभारत के प्रसंगों पर आधारित झांकियां पुराने लोग कभी नहीं भूल सकते। ऐसी ही एक झांकी में राधा-कृष्ण की लीलाओं को प्रस्तुत किया गया था। इस झांकी को देखने घंटों तक लाइन में लगना पड़ता था। झांकी देखने के बाद हर किसी की जुबान पर राधे-राधे गूंजता था।
1990 के आसपास ही एक और झांकी चार धाम भी बनी थी, जिसमें द्वारका धाम, पुरी धाम, रामेश्वर धाम, बद्रीनाथ-केदारनाथ धाम की झांकी देखने अन्य शहरों से एक दिन पहले ही श्रद्धालु रायपुर पहुंच जाते थे। स्टेशन पर डेरा डालते थे, रातभर सजावट का दर्शन करके दूसरे दिन वे वापस लौटते थे। झांकी देखने धमतरी, भिलाई, दुर्ग, राजनांदगांव, महासमुंद, कांकेर, बिलासपुर, गोंदिया, खरियार रोड जैसे शहरों से लोग आते थे।
रामसागर पारा में गणेशोत्सव पर्व को ख्याति दिलाने में व्यवसायी सियाराम अग्रवाल, पूरनलाल अग्रवाल, श्याम सुंदर शर्मा, गिरधारी लाल शर्मा, सीताराम खंडेलवाल, शंकरलाल महाराज आदि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।