छत्तीसगढ़

राजधानी में न गरबा, न जगराता, कम हुई माई की प्रतिमा की ऊंचाई

रायपुर। कोरोना महामारी का प्रकोप कम होने से लोग राहत की सांस ले रहे हैं, लेकिन पिछले चार नवरात्र से प्रशासन के नियमों के चलते आम लोगों की कमाई पर खासा असर पड़ा है। गरबा में डीजे संचालक हो या जगराता में भजन गायकों की प्रस्तुति। ज्योति कलश और दीया बनाने वाले कुम्हार हो अथवा दुर्गा माता की भव्य प्रतिमा बनाने वाले मूर्तिकार हों, पूजन सामग्री बेचने वाले छोटे-बड़े दुकानदार हों अथवा गरबा पर म्यूजिक सिस्टम, किराया भंडार संचालक, कपड़ा, थर्माकाेल से पंडाल बनाने वाले कारीगर हों। सभी का व्यवसाय चौपट है। हर साल लाखों रुपए का व्यवसाय होता था, अब हजारों की भी कमाई नहीं हो रही है।

टेंट व्यवसायी रानूलाल लूनिया बताते हैं कि राजधानी में छोटे-बड़े 50 से अधिक किराया भंडार वालों को नवरात्र पर पंडाल निर्माण का काम मिलता है। 70 वार्डों में 500 से अधिक जगहों पर दुर्गा पंडाल सजाए जाते हैं। इनमें से लगभग 50 जगह भव्य मंदिर, महल रूपी पंडाल सजते हैं। जिसकी लागत तीन-चार लाख रुपए आती है। इन्हें बनाने के लिए कोलकाता से कारीगर बुलाए जाते हैं।

स्थानीय कारीगर भी सैकड़ों की संख्या में काम करते हैं। सारे खर्चों को निकालकर एक व्यवसायी प्रत्येक नवरात्र में 25 हजार से लेकर लाखों रुपए तक कमाई करता है। पिछले साल की कमाई कोरोना महामारी की भेंट चढ़ गई। इस साल भी छोटे पंडाल बन रहे हैं, टेंट व्यवसायियों का खर्च निकलना भी मुश्किल है।

मूर्तिकार पीलूराम साहू, रामनारायण यादव, शशि यादव बताते हैं कि दुर्गा मां की 10-12 फीट तक की प्रतिमा 25-30 हजार रुपए में बनाते थे। अब मूर्ति की ऊंचाई कम रखने का आदेश दिया गया है। आठ फीट तक की प्रतिमा की कीमत समिति वाले 10-12 हजार से ज्यादा देने को राजी नहीं हैं।

कम से कम दो महीने की मेहनत के बाद प्रतिमा तैयार होती है। मिट्टी, लकड़ी, रंगरोगन, साज-सज्जा के सामान मिलाकर ही हजारों खर्च होते हैं। ऐसे में हम क्या कमाएंगे। 100 से ज्यादा कलाकार हैं और पांच-सात सौ प्रतिमाएं बनतीं हैं। महीनों काम करने के बाद भी कमाई न के बराबर है।

पूजन सामग्री बेचने वाले सोहन साहू ने बताया कि पिछले साल मार्च-अप्रैल महीने में नवरात्र पर सारे मंदिर बंद रहे। इसके बाद सितंबर-अक्टूबर में भी श्रद्धालु कम पहुंचे। इस साल 2021 में अप्रैल माह की नवरात्र में भी मंदिर बंद रहे। पूजन सामग्री का कारोबार पूरी तरह से चौपट रहा।
प्रत्येक मंदिर के बाहर 25 से ज्यादा दुकानदार फल-फूल, नारियल, चुन्नी, अगरबत्ती बेचकर प्रतिदिन दो-तीन हजार रुपए कमाते थे। पिछले साल एक रुपए की कमाई नहीं हुई। इस साल मंदिर खुलने से उम्मीद है कारोबार अच्छा होगा।

डीजे संचालक विपिन देवांगन बताते हैं कि प्रतिमा लाते-ले जाते समय समिति वाले बैंड बाजा बजाते थे। साथ ही ढोल, धमाल बजता था। गरबा में डीजे की धूम मचती थी। अब गरबा न होने से कमाई नहीं हो रही। शासन प्रतिबंध हटाए तो शायद कमाई हो।

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