छत्तीसगढ़

प्रदेश में क्या काट दिए जाएंगे राज्य में 1 लाख पेड़, हाईकोर्ट हुआ सख्त तो आदिवासियों का आंदोलन जारी

सरगुजा । में परसा कोल ब्लॉक को मंजूरी मिलने के बाद वन विभाग ने पेड़ो की कटाई शुरू कर दी है। स्थानीय ग्रामीण पेड़ो को बचाने के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं ,इधर हाईकोर्ट ने कोयला खनन के लिए 1 लाख से अधिक पेड़ काटे जाने के संबंध में छत्तीसगढ़ सरकार को तलब किया है।

परसा कोल ब्लॉक को मंजूरी देने की प्रक्रिया पर सवाल उठाती दायर अलग अलग पांच याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने तीखे तेवर अपनाए हैं। बिलासपुर हाईकोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार से रिपोर्ट तलब की है। आधी रात को पेड़ कटाई की सूचना मिलने पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान पर बेहद कड़े तेवर अपनाए हैं। माना जा रहा है कि परसा कोल ब्लॉक में अड़ानी कंपनी की तरफ किया जाने वाले उत्खनन से मध्य भारत का सबसे बेहतरीन जंगल खत्म हो जाएगा।

परसा के आदिवासी ग्रामीण अपने इलाक़े में उत्खनन के खिलाफ लगातार आंदोलित रहे हैं। ग्रामीणों का का कहना है कि खनन कराने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने फर्जी ग्रामसभा का सहारा लिया है,जिसकी सबूतों के साथ शिकायत करने के बाद भी कोई जांच नहीं की गई, बल्कि परसा क्षेत्र में सारे नियमों को धता बताकर कोल बेरिंग एक्ट के तहत उत्खनन की अनुमति दे दी गई, जबकि कोल बेरिंग एक्ट यहां प्रभावी नहीं हो सकता था।

बिलासपुर हाईकोर्ट में याचिकाकर्ताओं की तरफ से कहा गया है कि याचिकाओं में कोल बेयरिंग एक्ट को चुनौती दी गई है, फिर भी उस अधिनियम को संवैधानिक भी माना जाये , तो अधिग्रहित जमीन खनन के लिये किसी प्राइवेट कंपनी को नहीं दी जा सकती है । इस प्रकरण में अड़ानी की स्वामित्व वाली कंपनी को राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम के नाम पर भूमि अधिग्रहित करके सौंपी गई है, जो कि यह खुद कोल बेयरिंग एक्ट के प्रावधानों और सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिये गए कोल ब्लॉक पर फैसले के विरूद्ध है। इसलिए परसा कोल ब्लॉक से संबंधित कोई भी कार्य आगे नहीं बढ़ाया जा सकता,इस कारण से पेड़ों की कटाई पर भी तुरंत रोक लगाई जानी चाहिये।

वही याचिकाकर्ताओं की दलील पर राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम और राजस्थान कॉलरी ( अड़ानी ) की तरफ से पक्ष रखते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता निर्मल शुक्ला ने कहा है कि पेड़ों की कटाई कंपनी ने नहीं वन विभाग की तरफ से की गई है,और खदान को सभी प्रकार की वन पर्यावरण अनुमति प्राप्त है।
न्यायमूर्ति गौतम भादुड़ी और एम के चंद्रवंशी की डबल बैंच ने मामले की सुनवाई के दौरान जानना चाहा कि यदि भूमि अधिग्रहण प्राइवेट कंपनी के हाथ जाने की वजह से अवैध है, तो क्या कटे हुए पेड़ों को फिर से जीवित किया जा सकता है।

अदालत ने आगे का कि अधिग्रहण को चुनौती गंभीर मामला है और इसके खत्म होने पर वन्य और पर्यावरण अनुमतियाँ अपने आप प्रभावहीन हो जाएंगी। बहराहल छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने याचिकाओं पर सुनवाई के बाद कटे हुए पेड़ों के विषय पर राज्य सरकार से रिपोर्ट तलब की है। वहीं खनन रोकने संबंधी याचिकाओं पर पर सुनवाई के 4 मई की तारीख तय की है।

इधर सैकड़ों की तादाद में आदिवासी ग्रामीण हसदेव अरण्य क्षेत्र में अपने जल जंगल और जमीन को सुरक्षित रखने के लिए 2 मार्च से सरगुजा जिला के ग्राम हरिहरपुर में अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हैं। ग्रामीणों के इस संघर्ष को मीडिया पर भी लोगों का समर्थन मिलने लगा है। छत्तीसगढ़ के तमाम सामाजिक संगठन के अलावा पत्रकारों और युवाओं की तरफ से हसदेव अरण्य में हो रही पेड़ो की कटाई के खिलाफ गुस्सा देखा जा रहा है। लोग इंस्टाग्राम, फेसबुक और ट्विटर पर सेव हसदेव और स्टॉप अडानी के भी हैशटैग के साथ कटे हुए पेड़ों की तस्वीरें पोस्ट कर रहे हैं।

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