कोरबा

हाईब्रिड नेशनल लोक अदालत में आपसी सुलह से 6361 मुकदमों का हुआ निराकरण

कोरबा/जिले में वर्ष 2023 के पहले हाईब्रिड नेशनल लोक अदालतों का जिला मुख्यालय व तहसील स्तर पर आयोजन किया गया जिनमें आपसी समझौते के आधार पर 6361 प्रकरणों का निराकरण किया गया। न्यायालयों में कुल 10 हजार 924 प्रकरण रखे गये थे। इनमें न्यायालयों में लंबित प्रकरण 2006 एवं प्री-लिटिगेशन के 8918 प्रकरण थे। राजस्व मामलों के 5249 प्रकरण सहित कुल 133 प्री-लिटिगेशन प्रकरण तथा न्यायालयों में लंबित 979 प्रकरण थे।

राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) एवं छत्तीसगढ़ राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण बिलासपुर के निर्देशानुसार जिला विधिक सेवा प्राधिकरण कोरबा द्वारा जिला एवं तहसील स्तर पर 11 फरवरी को सभी मामलों से संबंधित नेशनल लोक अदालत का आयोजन किया गया। जिला एवं सत्र न्यायाधीश,अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकरण डी0एल0 कटकवार,कुटुंब न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश बी. राम,अपर सत्र न्यायाधीश कु.संघपुष्पा भतपहरी, अपर सत्र न्यायाधीश(एफ.टी.सी.) ज्योति अग्रवाल,मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट कृष्ण कुमार सूर्यवंशी, द्वितीय व्यवहार न्यायाधीश वर्ग-एक हरीश चंद्र मिश्र,जिला अधिवक्ता संघ के उपाध्यक्ष सुरेश शर्मा,सचिव नूतन सिंह ठाकुर,राज्य विधिज्ञ परिषद बिलासपुर के सदस्य बीके शुक्ला दीप प्रज्जवलन कार्यक्रम में उपस्थित थे। नालसा थीम सांग न्याय सबके लिये के साथ नेशनल लोक अदालत का शुभारंभ किया गया।

बेसहारा बुजर्ग दंपत्ति को घर बैठे मिला न्याय

9 फरवरी 2020 को आवेदक बुजुर्ग दंपत्ति के जवान पुत्र की मृत्यु मोटर दुर्घटना में हो जाने के कारण आवेदकों ने समस्त मदों में कुल 36 लाख रुपये एवं इस पर 12 प्रतिशत वार्षिक व्याज की दर से क्षति रकम प्राप्त करने के लिए अनावेदक के विरूद्ध मोटर यान अधिनियम 1988 की धारा 166 अंतर्गत न्यायालय के समक्ष आवेदन प्रस्तुत किया गया था। ऐसे में मृतक जो एकमात्र कमाने वाला सदस्य था की मृत्यु के पश्चात् बेसहारा बुजुर्ग दंपत्ति आवेदकों के लिये अत्यंत कठिन हो चला था।प्रकरण में आावेदक एवं अनावेदक बीमा कंपनी ने हाईब्रीड नेशनल लोक अदालत में संयुक्त रूप से समझौता कर आवेदन पत्र प्रस्तुत किया। आवेदकों ने घर बैठे अपने अधिवक्ता के माध्यम से 15 लाख रुपये बिना किसी डर-दबाव के राजीनामा किया। जिसे 60 दिन के भीतर अदा किए जाने का निर्देश दिया गया। इस प्रकार घर बैठे बुजुर्ग आवेदकों को जीवन जीने का एक सहारा नेशनल लोक अदालत ने प्रदान किया।

सालों से चल रहे जमीन विवाद का हुआ समाधा

आवेदक द्वारा अनावेदकगणों के विरूद्ध विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 के अंतर्गत रजिस्ट्री 2 मई 1997 को शून्य घोषित किए जाने एवं कब्जा एवं स्थायी निषेधाज्ञा बाबत वाद न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया था। वादभूमि को आवेदक के पिता ने वर्ष 1986 में क्रय किया था। उसके पश्चात् उक्त वादभूमि को अन्य दो अनावेदकगणों को विक्रय कर दिया गया तथा वाद भूमि अंतिम रूप से अनावेदक के नाम पर दर्ज किया गया था तथा लंबे समय से उक्त भूमि में विवाद की स्थिति आ गई थी। उक्त प्रकरण में आवेदक को न्यायालय के द्वारा प्रदान की गई समझाईश से आज 2 मई 1997 की वाद रजिस्ट्री को शून्य घोषित किए जाने एवं कब्जा एवं स्थाई निषेधाज्ञा बाबत् प्रस्तुत किया गया। चूंकि वर्तमान में अनावेदक वाद भूमि पर काबिज है और समस्त राजस्व दस्तावेजों में उनका नाम दर्ज हो चुका है इसलिए न्यायालय की समझाईश से आज नेशनल लोक अदालत में आपसी समझौता के आधार पर राजीनामा अनुसार अनावेदक ने 30 लाख रुपये प्रदान किया गया। इस प्रकार नेशनल लोक अदालत गरीब आम जनों को न्याय प्रदान कर ‘‘न्याय सबके लिए‘‘ को चरितार्थ किया।

सालों की अनबन हुई दूर, दाम्पत्य जीवन की पुर्नस्थापना

आवेदक एवं अनावेदक का वर्ष 1983 में हिन्दू रिति-रिवाज से विवाह संपन्न हुआ था। विवाह से उन्हें दो संतानों की प्राप्ति हुई। विवाह के लगभग 21 वर्ष बाद आवेदक के व्यवहार में बदलाव आने लगा एवं अनावेदिका के मध्य आपसी सांमजस्य की कमी एवं अविश्वास के चलते आपस में अनबन एवं लड़ाई झगड़े होने शुरू हो गए। अनावेदक ने आवेदिका एवं उसके बच्चों के उचित देख-रेख एवं पालन पोषण करने में उपेक्षा की जाने लगी। कई बार आवेदिका एवं बच्चों को घर से बाहर निकालने प्रयास किया गया तथा कई मध्यस्थों के समझाईश के बाद भी आवेदक के व्यवहार में बदलाव नहीं आया। इस पर आवेदिका ने थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई। अनावेदक के क्रूरतापूर्वक व्यवहार से तंग आकर आवेदिका के द्वारा अनावेदक से मासिक भरण-पोषण भत्ता दिलाए जाने बाबत् धारा 125 सीआरपीसी के तहत आवेदन पेश किया गया। आयोजित हाईब्रीड नेशनल लोक अदालत में आवेदक एवं आवेदिका को साथ रह कर आपसी सामंजस्य के साथ जीवन जीने की समझाईश दी गई। आवेदक एंव अनावेदिका ने समझाईश को स्वीकार कर अपने दोनों बच्चों के भविष्य हेतु राजीनामा के आधार पर सुखपूर्वक एवं खुशहाल जीवन यापन हेतु बिना डर एवं दबाव के समझौता किया। इस प्रकार नेशनल लोक अदालत ने बच्चों को माता-पिता का दुलार प्रदान करने एवं सुखमय जीवन यापन करने में सहायता प्रदान की।

प्रेम ही है सुखी दाम्पत्य जीवन का आधार

आवेदक एवं अनावेदिका का वर्ष 2007 में विवाह संपन्न हुआ था। विवाह से उन्हें दो संतानों की प्राप्ति हुई। विवाह के बाद आवेदक के माता-पिता ने अनावेदिका को पुत्री समान मानकर उसे उच्च शिक्षा प्रदान करने का दायित्व पूर्ण किया परंतु विवाह के लगभग 2 वर्ष बाद बाद 2009 से ही मायके पक्ष के बातों में आकर अनावेदिका के व्यवहार में बदलाव आने लगा एवं आवेदक के मध्य आपसी सांमजस्य की कमी एवं अविश्वास के चलते आपस में अनबन एवं लड़ाई झगड़े होने शुरू हो गए। अनावेदिका आवेदक एवं आवेदक के माता-पिता को झूठे दहेज के प्रकरण में फंसाने की धमकी देने लगी तथा समझाईश करने पर भी न मानकर अपने छोटे बच्चे को लेकर मायके चली गई। इस पर आवेदक ने अपने दाम्पत्य जीवन के पुर्नस्थापना के लिए न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत किया। हाईब्रीड नेशनल लोक अदालत में ऑनलाईन आवेदक एवं अनावेदिका को साथ रह कर आपसी सामंजस्य के साथ जीवन जीने की समझाईश दी गई,इसे स्वीकार कर उन्होंने अपने दोनों बच्चों के भविष्य के लिए राजीनामा किया।

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