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आखिर शवों के साथ शारीरिक संबंध क्यों बनाते हैं अघोरी

 नई दिल्ली। अघोरी बाबा सुनते ही जहन में एक वीभत्स सा रूप आ जाता है। राख से लिपटे, इंसानी मांस खाने वाले, जादू टोना करने वाले साधुओं के रूप में इन्हें जाना जाता है। अघोरी शब्द का संस्कृत भाषा में मतलब होता है ‘उजाले की ओर’। साथ ही इस शब्द को पवित्रता और सभी बुराइयों से मुक्त भी समझा जाता है। लेकिन अघोरियों को रहन-सहन और तरीके इसके बिलकुल विरुद्ध ही दिखते हैं

अघोर पंथ हिन्दू धर्म का एक सम्प्रदाय है। इसका पालन करने वालों को अघोरी कहते हैं। अघोर पंथ की उत्पत्ति की काल के बारे में अभी निश्चित प्रमाण नहीं मिले हैं। परंतु इन्हें कपालिक संप्रदाय के समक्ष मानते हैं। ये भारत के प्राचीनतम धर्म शैव यानि कि शिव-साधक से संबंधित है। अघोरियों को इस पृथ्वी पर भगवान शिव का जीवित रुप भी माना जाता है। शिवजी के पांच रुपों में से एक रुप अघोरी रुप है। अघोरी हमेशा से लोगों की जिज्ञासा का विषय रहे हैं।

अघोरियों का जीवन जितना कठिन होता है उतना ही रहस्यमय भी होता है। अघोरियों की साधना विधि सबसे ज्यादा रहस्यमयी होती है। उनकी अपनी शैली, अपना विधान है, अपनी अलग विधियां हैं। अघोरी उसे कहते हैं जो घोर नहीं हो। यानि बहुत सरल और सहज हो। जिसके मन में कोई भेद-भाव नहीं हो। अघोरी हर चीज में समान भाव रखते हैं। वे सड़ते जीव के मांस को भी उतना ही स्वाद लेकर खाते हैं जितना कि स्वादिष्ट पकवानों को स्वाद लेकर खाया जाता है।

शव के साथ शारीरिक सम्बन्ध

यह बहुत प्रचिलित धारणा है कि अघोरी साधु शवों की साधना के साथ ही उनसे शारीरिक सम्बन्ध भी बनाते हैं। यह बात खुद अघोरी भी मानते हैं। इसके पीछे का कारण वो यह बताते हैं कि शिव और शक्ति की उपासना करने का यह तरीका है। उनका कहना है कि उपासना करने का यह सबसे सरल तरीका है, वीभत्स में भी ईश्वर के प्रति समर्पण। वो मानते हैं कि अगर शव के साथ शरीरित्क क्रिया के दौरान भी मन ईश्वर भक्ति में लगा है तो इससे बढ़कर साधना का स्तर क्या होगा।

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