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कांग्रेस में बदलाव-बीजेपी ने हारे प्रत्याशियों पर लगाया दांव,आखिर क्या है छत्तीसगढ़ का सियासी समीकरण…..

रायपुर छत्तीसगढ़ में सबसे पहले टिकट घोषणा कर भले ही बीजेपी ने बाजी मारी हो, लेकिन 90 विधानसभा सीटों पर सबसे पहले कांग्रेस ने अपने कैंडिडेट के नाम फाइनल कर बीजेपी से एक कदम आगे बढ़ गयी है। कांग्रेस के टिकट वितरण पर गौर करे तो पार्टी ने इस बार बदलाव की रणनीति अपनाते हुए 22 सिटिंग विधायकों के टिकट काट दिये। वहीं बीजेपी अब तक 86 सीटों पर अपने प्रत्याशियों के नाम फाइनल करने के साथ ही करीब 15 हारे हुए कैंडिडेट्स को दोबारा टिकट देकर मैदान में उतारी है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि बदलाव की रणनीति अपनाने वाली कांग्रेस और पुराने हारे हुए कैंडिडेट पर भरोसा जताने वाली बीजेपी में से आखिर जनता किस पर अपना भरोसा जतायेगी ? आखिर क्या है छत्तीसगढ़ का सियासी समीकरण समझते है इस पूरी खबर में……।

छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। चुनावी मैदान में कांग्रेस ने अपने 90 प्रत्याशियों को उतार दिये है। उधर बीजेपी में अब भी 4 सीटों पर मंथन का दौर जारी है। उम्मींद जतायी जा रही है कि कांग्रेस की लिस्ट आने के बाद अब कभी भी बीजेपी अपने कैंडिडेट की लिस्ट डिक्लियर कर सकती है। चुनावी रण में सत्ताधारी कांग्रेस और बीजेपी के साथ ही बीएसपी,आम आदमी पार्टी और क्षेत्रीय पार्टी जनता कांग्रेस (जे) मुख्य रूप से ताल ठोक रही है। लेकिन मतदाता की नजर अभी भी मुख्य रूप से कांग्रेस और बीजेपी के हर एक फैसले और रणनीति पर टिकी हुई है। पिछले एक महीने में कांग्रेस और बीजेपी ने जिस तरह से अपने प्रत्याशियों के चयन को लेकर रणनीति तैयार की है, उससे साफ है कि दोनों ही पार्टियां किसी भी सूरत में सत्ता में वापसी करने के लिए कोई भी रिस्क लेना नही चाहती।

लिहाजा बात करे कांग्रेस की तो कांग्रेस ने रविवार को अपनी तीसरी और अंतिम लिस्ट जारी कर सूबे की 90 विधानसभा सीटों पर प्रत्याशियों को उतार दिया है। कांग्रेस के टिकट वितरण पर गौर करे तो पार्टी ने सर्वे के आधार पर 5 साल में कमजोर परफार्मेंस करने वाले विधायक और मंत्री के टिकट एक झटके में काट दिये। सियासी जानकारों की माने तो साल 2018 विधानसभा चुनाव में कुछ ऐसा ही सर्वे रिपोर्ट बीजेपी के विधायक और मंत्रियों के लिए था। जिसमें सिटिंग विधायक-मंत्रियों के प्रति लोगों में गहरी नाराजगी और असंतोष था। लेकिन पार्टी ने सर्वे रिपोर्ट को नजर अंदाज कर उन्ही नेताओं को दोबारा टिकट दे दिया, जिनके प्रति जनता में गहरी नाराजगी थी। परिणाम ये रहा कि 15 साल तक सूबे पर राज करने वाली बीजेपी को जनता ने एक झटके 15 सीट पर लाकर समेट दिया।

माना जा रहा है कि साल 2018 में जो गलती बीजेपी ने की……कांग्रेस उस गलती को दोहराना नही चाहती। लिहाजा सर्वे में जमीनी स्तर पर जिन विधायकों के प्रति लोगों में नाराजगी के साथ ही कमजोर परफार्मेंस की रिपोर्ट आयी, पार्टी ने सीधे तौर पर उनका टिकट काट दिया। लेकिन दूसरी तरफ बीजेपी को अभी भी पुराने चेहरों पर भरोसा है। भाजपा ने छत्तीसगढ़ के 86 विधानसभा सीटों पर अपने कैंडिडेट फाइनल कर दिये है। इनमें पार्टी ने फिर से एक बार पूर्व मंत्रियों के साथ ही हारे हुए करीब 15 विधायकों को दोबारा मौका दिया है, जिन्हे साल 2018 के चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा था। चुनावी मैदान में उतरे बीजेपी के पूर्व मंत्रियों में अमर अग्रवाल, प्रेम प्रकाश पांडये, केदार कश्यप, राजेश मूणत सहित अन्य नेता शामिल है। जिन पर पार्टी ने दोबारा दांव लगाया है।

ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यहीं है कि आखिर जनता के मूड और नाराजगी को देखते हुए जिस तरह से कांग्रेस ने अपने विधायकों के टिकट काटे है, उससे क्या कांग्रेस जनता का भरोसा जीत पायेगी ? या फिर बीजेपी ने जिस तरह से अपने पुराने हारे हुए विधायक और पूर्व मंत्रियों पर दोबारा भरोसा जताया है….क्या जनता उन पर दोबारा भरोसा जतायेगी ? सवाल कई है, लेकिन जवाब मतगणना के दिन ही साफ हो पायेगा। खैर छत्तीसगढ़ के सियासी समीकरण को समझे तो प्रदेश में जिस पार्टी ने भी जनता का मूंड समझा, जनता ने उसे सत्ता का ताज पहनाया है। ऐसे में सत्ताधारी कांग्रेस जहां जनता का मूड भांपकर पार्टी में बदलाव की रणनीति अपनाते हुए चुनावी मैदान में ताल ठोक रही है। वहीं दूसरी तरफ बीजेपी प्रदेश में भ्रष्टाचार-करप्शन का मुद्दा उठाकर अपने नये चेहरों के साथ ही पुराने चेहरों पर भी दांव लगाकर चुनावी मैदान में है। ऐसे में जनता सत्ता की चाबी किस पार्टी को सौंपती है, ये तो 3 दिसंबर को ही साफ हो जायेगा।

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