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370 को निरस्त करना अवैध या संवैधानिक , आर्टिकल पर आज आएगा सुप्रीम कोर्ट का फैसला…

नई दिल्ली |आर्टिकल-370 को निरस्त करने के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट इस मामले में सोमवार 11 दिसंबर को फैसला देने वाला है। सुप्रीम कोर्ट में किन सवालों का मिलेगा जवाब। क्या होगा असर इस तरह के कई अहम सवाल हैं। आर्टिकल-370 को केंद्र सरकार ने 5 अगस्त 2019 को निरस्त कर दिया था। बाद में इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। मामला 2019 से अदालत में पेंडिंग है। अर्जी में 370 निरस्त करने के फैसले को गैर संवैधानिक घोषित करने की गुहार लगाई गई। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कई अहम सवालों का जवाब मिलेगा और तस्वीरे साफ हो जाएंगी।

याचिकाकर्ताओं ने दिए ये तर्क

दरअसल, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं 2019 में संविधान पीठ को भेजी गईं थीं। इन याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 को शुरू में अस्थायी माना गया था, लेकिन वो जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा के विघटन के बाद स्थायी हो गया था। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि संसद के पास अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के लिए खुद को जम्मू-कश्मीर की विधायिका घोषित करने का अधिकार नहीं है। याचिकाकर्ताओं ने आर्टिकल 370 के क्लौज़ 3 का जिक्र करते हुए कहा कि इसे हटाने के लिए संविधान सभा की सिफारिश महत्वपूर्ण थी। संविधान सभा की मंजूरी के बिना इसे निरस्त नहीं किया जा सकता।

यह सवाल भी अहम है कि 370 स्थायी है या नहीं। सीनियर वकील सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि चूंकि जम्मू-कश्मीर संविधान सभा का कार्यकाल खत्म हो गया था, ऐसे में 1957 के बाद इसे निरस्त नहीं किया जा सकता। यह संवैधानिक कार्रवाई नहीं है। संसद ने खुद को संविधान सभा की शक्ति दे दी और कहा कि लोगों की इच्छा है कि आर्टिकल-370 निरस्त किया जाए। क्या इस तरह से शक्ति का इस्तेमाल हो सकता है? संविधान का जो प्रावधान है, उसके तहत वह ऐसा नहीं कर सकते। उन्हें बेसिक फीचर को मानना होगा। संविधान का मौलिक अधिकार सिर्फ आपातकाल में ही खत्म हो सकता है। कार्यपालिका कानूनी प्रावधान के उलट काम नहीं कर सकती है।

जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट बार एसोसिएशन का रुख

जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि भारत में शामिल होने पर जम्मू कश्मीर के महाराजा ने राज्य पर क्षेत्रीय संप्रभुता बरकरार रखी, लेकिन उनके पास संप्रभुता नहीं थी. हालांकि रक्षा, विदेश मामले और संचार, कानून और शासन के लिए अन्य सभी शक्तियां केंद्र के पास थीं.

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