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पितृ पक्ष के दौरान नदियों में तर्पण करने से होता है इतने कुलों का उद्धार, जानें यह नियम…

नई दिल्ली : इन दिनों पितृ पक्ष का दौर चल रहा है जिसकी शुरुआत 17 सितंबर यानि अनंत चतुर्दशी के दिन से हो गई है। पितृ पक्ष में वंशजों द्वारा पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण की विधि अपनाई जाती है। वैसे तो श्राद्ध के नियम घर में विधि-विधान के साथ संपन्न किए जाते है लेकिन नदियों में तर्पण करने का नियम अलग होता है। भारत में कई पवित्र नदियां है जिनमें तर्पण करने से 101 कुलों का उद्धार हो जाता है। जानते है कि, गंगा आदि पवित्र नदियों में स्नान, दान के साथ पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण, श्राद्ध का महत्व वायु पुराण, शंख स्मृति, देवी पुराण, पद्म पुराण, स्मृति रत्नावलि आदि अनेक प्रमाणित ग्रंथों में वर्णित है।

101 कुलों का कैसे होता है उद्धार
आपको बताते चलें कि, पिता के गोत्र के चौबीस, माता के गोत्र के बीस, पत्नी के गोत्र के सोलह, बहन के गोत्र के बारह, पुत्री के गोत्र के ग्यारह, बुआ के गोत्र में दस तथा मौसी के गोत्र में आठ कुल, इस प्रकार एक सौ एक कुलों का तीर्थ श्राद्ध से उद्धार होता है। कहा जाता है कि, श्राद्ध आदि कार्यों में पितरों का आह्वान करना जरुरी माना जाता है लेकिन तीर्थ में तो पुत्र आदि के आगमन पर पितृगण श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान आदि ग्रहण करने के लिए स्वत: उपस्थित हो जाते हैं।

जानिए संगम में तर्पण करने के नियम
पितृ पक्ष के दौरान पवित्र नदियों में तर्पण करने के नियम होते है जिनका वंशजों को पालन करना चाहिए। चलिए जानते हैं इन नियमों के बारे में..

  • ग्रंथों में कहा गया है, संगम तट पर पितृ तर्पण करते समय व्यक्ति को जलधारा के मध्य में इस तरह खड़ा होना चाहिए ताकि पवित्र नदियों के जल का स्तर नाभि को छू जाए।
  • तर्पण करते समय पितरों का ध्यान करना चाहिए।
  • तर्पण करने के दौरान जल में काले तिल, अक्षत, फूल आदि मिलाने चाहिए।
  • निमित्त अन्न, जल, वस्त्र आदि का दान संगम के अक्षय क्षेत्र में अवश्य करें, ताकि आपको पुण्य फल और पितरों को मुक्ति मिल सके।
  • संगम तट पर किए गए धार्मिक अनुष्ठान से आत्माओं को शांति मिलती है तो वहीं पर अधूरे कर्म जो पूरे नहीं हो पाए वे तृप्त हो जाते है।

गंगा नदी में तर्पण करने के नियम
गंगा नदी पर तर्पण करने के नियम भी खास दिए गए है. गंगा नदी के पवित्र तट पर किए गए श्राद्ध, तर्पण और अन्य पितृ कर्मकांड से पितरों को शांति एवं मुक्ति मिलती है। गंगा को मोक्षदायिनी कहा गया है, इसलिए पितृपक्ष के दौरान गंगा तट पर पूर्वजों के निमित्त अनुष्ठान करने से पितृ तृप्त होते हैं और उनकी आत्मा को मोक्ष मिलता है। महाभारत महाकाव्य में लिखा गया है कि, गंगा जी के पास जाकर उनके जल से देवताओं और पितरों का तर्पण करना अच्छा होता है।

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