रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में आधी रात को घटित एक शर्मनाक घटना ने प्रदेश में कानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। बर्खास्त शिक्षाकर्मियों के आंदोलन के दौरान पुलिस की बर्बरता का शिकार हुईं पांच महिला शिक्षिकाओं को डॉ. भीमराव आंबेडकर अस्पताल में भर्ती कराया गया है। इनमें से तीन की हालत गंभीर बताई जा रही है। यह घटना राजधानी के सिविल लाइंस क्षेत्र की है, जहां शिक्षाकर्मी अपनी बर्खास्तगी के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे।
वहीं छत्तीसगढ़ में बर्खास्त B.Ed डिग्रीधारी सहायक शिक्षकों को लेकर सीएम विष्णुदेव साय का बड़ा बयान सामने आया है। उन्होंने कहा कि हम भी नहीं चाहते की उनकी नौकरी जाए, लेकिन जो भी होगा वह नियम और प्रक्रिया से होगा। सीएस की अध्यक्षता में कमेटी गठित की गई है। उनकी सिफारिश के बाद सरकार निर्णय लेगा।
आपको बता दें बीते रात रविवार लगभग 11 बजे पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प हुई। प्रदर्शन के दौरान पुरुष पुलिसकर्मियों ने महिला शिक्षकों के साथ बदसलूकी की। इस दौरान कई महिलाओं को गंभीर चोटें आईं। लक्ष्मी जुर्री नामक शिक्षिका ने बताया, “चार पुरुष पुलिसकर्मी जबरन हमें उठाने लगे। वे मेरे ऊपर गिर गए, जिससे मुझे गंभीर चोटें आईं। मेरी हालत गंभीर है।”
प्रदेश में शिक्षाकर्मियों की बर्खास्तगी का मुद्दा लंबे समय से विवाद का विषय रहा है। हजारों शिक्षाकर्मी अपनी नौकरियां बचाने के लिए आंदोलित हैं। सरकार द्वारा शिक्षा व्यवस्था में सुधार के नाम पर कई शिक्षाकर्मियों को बर्खास्त किया गया है, लेकिन इनमें से कई लोग इसे अन्यायपूर्ण और पक्षपातपूर्ण मानते हैं।
रायपुर में रविवार को इन शिक्षाकर्मियों ने रातभर धरना प्रदर्शन किया। जब प्रशासन ने प्रदर्शन समाप्त करने के लिए दबाव बनाया, तब यह विवाद हिंसक झड़प में बदल गया। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि उनकी मांगें जायज हैं और वे केवल अपना हक मांग रहे थे।
महिला सुरक्षा पर गंभीर सवाल
इस घटना ने राज्य में महिला सुरक्षा के मुद्दे पर फिर से बहस छेड़ दी है। यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या पुरुष पुलिसकर्मी महिलाओं से इस तरह का व्यवहार कर सकते हैं? कानून व्यवस्था के नाम पर ऐसी घटनाएं न केवल संविधान के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करती हैं, बल्कि यह सामाजिक मूल्यों को भी चोट पहुंचाती हैं।
महिला सुरक्षा और कानूनी प्रावधान:
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 और 21 महिलाओं को समानता और जीवन का अधिकार देता है।
- महिला प्रदर्शनकारियों से निपटने के लिए महिला पुलिसकर्मियों की मौजूदगी अनिवार्य है।
- सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के अनुसार, रात 6 बजे के बाद महिलाओं की गिरफ्तारी के लिए विशेष परिस्थितियों में अनुमति लेनी होती है।
सरकार और पुलिस ने दी सफाई
इस घटना पर पुलिस ने बयान जारी कर कहा कि प्रदर्शनकारियों को बार-बार हटने का आग्रह किया गया था। पुलिस का कहना है कि स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए बल प्रयोग करना पड़ा। वहीं, सरकार का कहना है कि इस मामले की जांच के आदेश दे दिए गए हैं और दोषी पाए जाने पर संबंधित पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई की जाएगी।
विपक्ष का हमला
विपक्ष ने इस घटना पर सरकार को आड़े हाथों लिया है। भाजपा ने कहा कि कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में छत्तीसगढ़ में कानून व्यवस्था चरमरा गई है। पार्टी प्रवक्ता ने कहा, “शिक्षाकर्मियों के साथ ऐसा बर्ताव अस्वीकार्य है। यह घटना सरकार की असंवेदनशीलता को दर्शाती है।”
अस्पताल प्रशासन की प्रतिक्रिया
अस्पताल प्रशासन ने बताया कि शिक्षिकाओं की हालत गंभीर है, लेकिन डॉक्टर उनकी जान बचाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। घटना के बाद अस्पताल के बाहर शिक्षाकर्मियों और उनके परिवार वालों की भीड़ जुटी हुई है।
यह घटना केवल कानून व्यवस्था का मसला नहीं है, बल्कि यह सरकार, प्रशासन और समाज के लिए एक गंभीर चेतावनी है। शिक्षाकर्मी, जो बच्चों को भविष्य का निर्माण करने में मदद करते हैं, आज खुद अपने हक के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इस तरह की घटनाएं न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर करती हैं, बल्कि जनता और सरकार के बीच विश्वास के पुल को भी तोड़ती हैं।
सरकार को चाहिए कि वह इस घटना की निष्पक्ष जांच कराए और दोषियों के खिलाफ सख्त कदम उठाए। साथ ही, शिक्षाकर्मियों की समस्याओं का समाधान बातचीत के माध्यम से किया जाए ताकि ऐसी घटनाएं भविष्य में दोबारा न हों।