छत्तीसगढ़दंतेवाड़ा

दंतेवाड़ा-किरंदुल मार्ग: बन गया रास्ता, बाकी रह गए 39 पुल, कागजों में निर्माण या भ्रष्टाचार की साजिश?

हेमन्त कुमार साहू, 

दंतेवाड़ा-किरंदुल मार्ग: बन गया रास्ता, बाकी रह गए 39 पुल, कागजों में निर्माण या भ्रष्टाचार की साजिश?

दंतेवाड़ा। दंतेवाड़ा से किरंदुल तक 36.20 किलोमीटर लंबा मुख्य मार्ग, जो पिछले 4-5 वर्षों से चर्चा का विषय बना हुआ है, आज फिर सुर्खियों में है। इस मार्ग के निर्माण में हुई लापरवाही, अधूरे कार्य, और संभावित भ्रष्टाचार की कहानी अब आम जनता के सामने आ चुकी है। इस मार्ग पर 71 पुलों का निर्माण होना था, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि मात्र 32 पुल ही बनाए गए हैं। बाकी 39 पुलों का निर्माण क्या सिर्फ कागजों पर होगा? यह सवाल आज हर किसी के मन में है।

मार्ग निर्माण की शुरुआत: उम्मीदों का आलम

दंतेवाड़ा से किरंदुल तक 36.20 किलोमीटर लंबे इस मार्ग का निर्माण कार्य 24 दिसंबर, 2020 को शुरू हुआ था। एन.सी. नाहर कंपनी को इस प्रोजेक्ट के लिए 106.13 करोड़ रुपये (एक सौ छः करोड़ तेरह लाख चौहत्तर हजार) की राशि आवंटित की गई थी। इस मार्ग पर कुल 71 पुलों का निर्माण प्रस्तावित था, जिनमें विभिन्न आकार के पुल शामिल थे

1.5 मीटर के 20 पुल
2.0 मीटर के 31 पुल
3.0 मीटर के 5 पुल
6.0 मीटर के 7 पुल
8.0 मीटर का 1 पुल
2×6.0 मीटर के 2 पुल
2×8.0 मीटर के 3 पुल
3×8.0 मीटर का 1 पुल
4×8.0 मीटर का 1 पुल
इन पुलों के निर्माण की कुल लागत 27.54 करोड़ रुपये थी। लेकिन हमारे दवारा की जांच में सामने आया कि केवल 32 पुल ही बनाए गए हैं, जबकि बाकी 39 पुलों का निर्माण अब तक शुरू नहीं हुआ है।

जनता की परेशानी: धूल, कीचड़ और मौतें

इस मार्ग के निर्माण के दौरान पुराने रास्ते को पूरी तरह तोड़ दिया गया था, जिसके कारण स्थानीय लोगों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा। धूल, कीचड़, और खराब सड़क के कारण यात्रा करना दूभर हो गया था। पिछले 4-5 वर्षों में इस मार्ग की खराब स्थिति के कारण 4-5 लोगों की जान दुर्घटनाओं में चली गई। ग्रामीणों ने कई बार ठेकेदार, जिला प्रशासन, और स्थानीय विधायक से सड़क निर्माण को जल्द पूरा करने की मांग की, लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हुई। आखिरकार, ग्रामीणों ने चक्काजाम जैसे कदम उठाए, जिसके बाद ठेकेदार ने लिखित आश्वासन दिया कि दीपावली के बाद डामरीकरण का काम शुरू होगा।

अधूरी सड़क, टूटे-फूटे पुल

हालांकि सड़क का डामरीकरण अब लगभग पूरा हो चुका है और धूल-कीचड़ से राहत मिली है, लेकिन इस निर्माण की काली सच्चाई सामने आ रही है। दंतेवाड़ा से भांसी तक छोटे-बड़े सभी पुराने पुलों को तोड़कर नए पुल बनाए गए हैं। लेकिन भांसी से आगे, विशेष रूप से 3 किलोमीटर के बाद, किसी भी पुराने पुल या पुलिया का निर्माण नहीं हुआ। कई पुराने पुलों की हालत इतनी जर्जर है कि वे कभी भी बड़े हादसे का कारण बन सकते हैं। उदाहरण के लिए:

1.कुछ पुलों की साइड वॉल पूरी तरह टूट चुकी है, और किनारों पर गहरे गड्ढे साफ दिखाई दे रहे हैं।

2. किरंदुल और बचेली के बीच पाढ़ापुर में एक पुल ऐसा है, जहां हर बारिश में पानी भर जाता है, लेकिन इसे भी अनदेखा कर दिया गया।

ठेकेदार ने इन पुराने पुलों पर ही डामरीकरण कर दिया, जिससे यह भ्रामक स्थिति पैदा हो गई कि सड़क पूरी तरह बन चुकी है। लेकिन जर्जर पुलों की अनदेखी भविष्य में बड़े हादसों को न्योता दे रही है।

लोक निर्माण विभाग का जवाब: वन विभाग पर ठीकरा

जब इस मामले में लोक निर्माण विभाग के अधिकारी शिव कुमार ठाकुर से बात की गई, तो उन्होंने सारा दोष वन विभाग पर डाल दिया। उनका कहना था कि जिन स्थानों पर पुलों का निर्माण नहीं हुआ, वहां वन विभाग की जमीन है। इन पुलों के लिए परिवर्तित मार्ग (डायवर्शन) बनाना जरूरी था, ताकि यातायात बाधित न हो, लेकिन वन विभाग ने अनुमति नहीं दी। ठाकुर ने दावा किया कि ठेकेदार को केवल किए गए कार्य का ही भुगतान किया जाएगा। लेकिन सवाल यह है कि जब सड़क का निर्माण लगभग पूरा हो चुका है, तो क्या अब बने हुए रास्ते को फिर से तोड़कर 39 पुल बनाए जाएंगे?

वन विभाग की भूमिका: जनता की अनदेखी?

वन विभाग की अनुमति की कमी को इस लापरवाही का मुख्य कारण बताया जा रहा है। लेकिन यह सवाल उठता है कि क्या वन विभाग को आम जनता की सुरक्षा और सुविधा की कोई चिंता नहीं है? पुराने और जर्जर पुलों की स्थिति को देखते हुए यह स्पष्ट है कि इनका निर्माण न होना बड़े हादसों को आमंत्रित कर रहा है। यदि वन विभाग ने अनुमति देने में देरी की, तो लोक निर्माण विभाग ने इस मुद्दे को समय रहते क्यों नहीं उठाया? क्या यह लापरवाही जानबूझकर की गई ताकि ठेकेदार को कम काम के लिए पूरा भुगतान किया जा सके?

भ्रष्टाचार की आशंका: 39 पुल कागजों पर ही रह जाएंगे?

इस पूरे प्रोजेक्ट में भ्रष्टाचार की बू साफ तौर पर आ रही है। 106.13 करोड रुपये की लागत से बनने वाले इस मार्ग में 27.54 करोड़ रुपये केवल 71 पुलों के निर्माण के लिए आवंटित थे। लेकिन 39 पुलों का निर्माण न होने के बावजूद सड़क को “पूरा” घोषित कर दिया गया। यह सवाल उठता है कि क्या बाकी राशि का दुरुपयोग हुआ है? क्या ठेकेदार और अधिकारियों की मिलीभगत से यह सुनियोजित लापरवाही की गई है? अगर भविष्य में इन 39 पुलों का निर्माण नहीं हुआ, तो क्या यह राशि कागजों पर ही खर्च दिखाई जाएगी?

ग्रामीणों की नाराजगी: “यह आखिरी मौका है”

ग्रामीणों का गुस्सा अब चरम पर है। उनका कहना है कि ठेकेदार सही तरीके से काम नहीं कर रहा, और जिला प्रशासन व स्थानीय विधायक इस ओर ध्यान नहीं दे रहे। पढ़ापुर जैसे क्षेत्रों में बारिश के दौरान पानी भरने की समस्या को अनदेखा किया गया है। ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि अगर शेष पुलों का निर्माण जल्द शुरू नहीं हुआ, तो वे फिर से चक्काजाम करेंगे। उनकी मांग है कि सड़क और पुलों का निर्माण समयबद्ध तरीके से पूरा हो, ताकि भविष्य में हादसों से बचा जा सके।

आगे की राह: सवाल और चुनौतियां

दंतेवाड़ा-किरंदुल मार्ग का निर्माण भले ही कागजों पर लगभग पूरा हो गया हो, लेकिन हकीकत में यह अधूरा है। 39 पुलों का निर्माण न होना न केवल लापरवाही का सबूत है, बल्कि भ्रष्टाचार की संभावना को भी दर्शाता है। अब सवाल यह है:

1. क्या बने हुए रास्ते को तोड़कर बाकी 39 पुलों का निर्माण होगा?

2. क्या वन विभाग अब अनुमति देगा, या यह बहाना आगे भी चलता रहेगा?

3. क्या इस प्रोजेक्ट की जांच होगी, ताकि भ्रष्टाचार की आशंकाओं का जवाब मिल सके?

4. सबसे बड़ा सवाल: क्या आम जनता को सुरक्षित और सुगम सड़क मिल पाएगी, या यह मार्ग भ्रष्टाचार की एक और मिसाल बनकर रह जाएगा?

निष्कर्ष: समय बताएगा सच्चाईदंतेवाड़ा-किरंदुल मार्ग की यह कहानी न केवल प्रशासनिक लापरवाही की तस्वीर पेश करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि कैसे जनता की सुविधा और सुरक्षा को नजरअंदाज किया जा रहा है। पुराने और जर्जर पुलों पर डामरीकरण कर “सड़क पूरी” दिखाने की कोशिश एक गंभीर सवाल उठाती है—क्या यह सिर्फ कागजों का खेल है, या वास्तव में जनता की भलाई के लिए काम हो रहा है? इस मामले में निष्पक्ष जांच और समयबद्ध कार्रवाई की जरूरत है, ताकि भविष्य में होने वाले हादसों को रोका जा सके और इस मार्ग का निर्माण पूरी तरह से हो सके।

आने वाला समय ही बताएगा कि क्या दंतेवाड़ा-किरंदुल मार्ग एक सफल परियोजना के रूप में जाना जाएगा, या करोड़ों के भ्रष्टाचार की एक और कहानी बनकर रह जाएगा।

स्रोत: छत्तीसगढ़; लोक निर्माण विभाग; स्थानीय ग्रामीणों के बयान

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button