
बच्चों की महत्वाकांक्षाओं को रौंदने का काम कर रही महिला शिक्षिका आकांक्षा मिश्रा
महासमुंद। हम सबके में जिंदगी वो समय आता है कि हमारी आगे की जिंदगी कैसे कटेगी इसके लिए संपूर्ण जीवन की शिक्षा को एकाग्र कर हम अपने लक्ष्य को हासिल करने अपना पूरा ताकत लगा देते है और कोई चीज जब हमको हासिल हो जाती तो उसकी वैल्यू कम हो जाती है। जिसका हम गलत तरीके से फायदा उठाते है। हमको हासिल हो जाने के बाद उसके प्रति हम लापरवाह हो जाते है। इसका ताजा उदाहरण हमको शिक्षा विभाग में देखने को मिला है एक महिला शिक्षिका सालों से बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है और विभाग अपनी चुप्पी साधे बैठी हुई है। आखिर ऐसे लोगों को बल कहा से मिलता है। ना निलंबित होने का खौफ,और ना ही बर्खास्त होने का डर, क्या इस महिला शिक्षिका को किसी बड़े औंधे का संरक्षण मिला है या खुद किसी बड़े औंधे में है जो इस तरह से कृत्य कर रही है।
बता दे कि, कागज़ों में शिक्षा व्यवस्था चमक रही है… लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त..? महासमुंद जिले के बम्बूरडीह ग्राम पंचायत के आश्रित ग्राम रामाडबरी प्राथमिक शाला में हालात ऐसे हैं कि सुनकर किसी भी अभिभावक के दिल में डर और गुस्सा दोनों एक साथ पैदा हो जाएं। जहां शिक्षा विभाग के नक्शे में ही यह स्कूल ‘गायब’ सा है, वहीं हकीकत में 27 मासूम बच्चों के बीच अकेली एक शिक्षिका, पूरी मजबूरी और जिम्मेदारी के साथ मोर्चा संभाले हुए है।
“तीन पद, एक सस्पेंड, एक ‘ग़ायब’, एक अकेली योद्धा”
सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक, यहां दो शिक्षिकाएं और एक शिक्षक पदस्थ हैं। लेकिन सच्चाई यह है, एक शिक्षिका अकांक्षा मिश्रा, जो पिछले 7 वर्षों से महासमुंद के आसपास संलग्निकरण में थीं, युक्तिकरण के बाद मूल पदस्थापना पर रामाडबरी भेजी गईं। उन्होंने 4 जुलाई को जॉइनिंग तो ली, लेकिन लिखित सूचना दिए बिना छुट्टी पर चली गईं। एक शिक्षक, शराब पीने के मामले में निलंबित हैं। अब बची सिर्फ एक शिक्षिका, जो रोज़ बसना से यहां आकर 27 बच्चों को पढ़ाती हैं। गांव के लोग कहते हैं— “हमने कभी आकांक्षा मिश्रा मैडम को स्कूल में देखा ही नहीं।”
“जिला शिक्षा अधिकारी… फोन उठाना भी गंवारा नहीं!”
हमने इस गंभीर स्थिति पर जिला शिक्षा अधिकारी से बात करने की कोशिश की। लेकिन उनका फ़ोन तक नहीं उठाया गया। मिला कारण बताओ नोटिस फिर भी कार्यवाही शून्य

विकासखंड शिक्षा अधिकारी लीलाधर सिन्हा से जब बात हुई, तो उन्होंने बताया कि—अकांक्षा मिश्रा को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया गया हैएक माह का वेतन रोक दिया गया है। लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि केवल नोटिस देने से समस्या हल नहीं होगी। जब तक स्कूल में नियमित स्टाफ नहीं रहेगा, तब तक बच्चों का भविष्य अंधेरे में रहेगा।
“स्कूल की हालत… एक तस्वीर, हज़ार दर्द”
हमारी टीम जब रामाडबरी स्कूल पहुंची, तो नज़ारा किसी सरकारी ‘शिक्षा मंदिर’ का नहीं बल्कि उपेक्षा के खंडहर जैसा था—
पानी की सुविधा— नदारद! बच्चे प्यासे घर जाते हैं या आस-पास के हैंडपंप पर भरोसा करते हैं।
खेल का मैदान— जंगली घास और पेड़ों से घिरा हुआ। सांप-बिच्छू के आने का खतरा हर पल बना रहता है।
मेंटेनेंस— शून्य। चारों ओर गंदगी और लापरवाही का आलम।
गांव के सरपंच और ग्रामीणों ने कई बार जिला शिक्षा अधिकारी को फोन पर शिकायत की, लेकिन जवाब में उन्हें कहा गया— “आप विकासखंड शिक्षा अधिकारी से बात करें।”
“कागज़ों पर स्वर्ग, ज़मीनी स्तर पर नरक”
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि जिला शिक्षा अधिकारी की रिपोर्ट में महासमुंद की शिक्षा व्यवस्था को ‘बेहतरीन’ बताया जाता है। शासन-प्रशासन को जो आंकड़े भेजे जाते हैं, उनमें इन जर्जर स्कूलों की तस्वीर कभी नहीं दिखाई जाती। स्थानीय स्तर पर निरीक्षण भी शायद ही कभी किया जाता है।
“बच्चों का पलायन—भविष्य की हत्या”
स्थिति इतनी खराब हो गई है कि कई अभिभावक अपने बच्चों का टी.सी. कटवाकर पास के बामनकेरा स्कूल भेज चुके हैं।
ग्रामीणों का कहना है—“हम अपने बच्चों को सांपों और बिना पानी वाले स्कूल में कैसे पढ़ाएं? शिक्षा तो तब होगी जब शिक्षक होंगे, माहौल होगा।”
“जिम्मेदारी किसकी?”
कानून और नियम साफ कहते हैं स्कूल का संचालन व निरीक्षण प्राथमिक जिम्मेदारी जिला शिक्षा अधिकारी की है। स्थानीय समस्याओं का समाधान विकासखंड शिक्षा अधिकारी की ड्यूटी है। लेकिन रामाडबरी के मामले में दोनों ही स्तर पर काम से ज्यादा ‘बात टालने’ का खेल चल रहा है। “अगर यही हाल रहा तो…शिक्षा सिर्फ कागज़ी आंकड़ों तक सिमट जाएगी। बच्चे स्कूल छोड़ देंगे। और फिर वही होगा जो हर उपेक्षित गांव में होता है-
• पढ़ाई छूटेगी।
• बच्चों का भविष्य अधूरा रह जाएगा।
• जिम्मेदार अधिकारी, अगले कागज़ी सर्वे में फिर से ‘सफलता’ की कहानी लिख देंगे।
गांव की मांग
रामाडबरी के ग्रामीण, सरपंच और अभिभावक एक सुर में मांग कर रहे हैं—
- तत्काल स्कूल में नियमित और पूर्ण शिक्षक स्टाफ की नियुक्ति।
- पानी, मैदान और सुरक्षा की व्यवस्था।
- जिम्मेदार अधिकारियों का मौके पर दौरा और लिखित कार्यवाही।
रामाडबरी की ये कहानी सिर्फ एक स्कूल की नहीं है… यह पूरे सिस्टम की वो खामोश चीख है, जिसे कागज़ों में दबा दिया जाता है। अगर शासन-प्रशासन ने अब भी आंखें नहीं खोलीं, तो आने वाली पीढ़ी कक्षाओं में नहीं, खेतों और फैक्ट्रियों में भविष्य तलाशने को मजबूर होगी।