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CG ब्रेकिंग: बच्चों की पढ़ाई पर सवाल उठाने पर मिली सस्पेंशन की सजा, WhatsApp स्टेटस लगाना बन गया गुनाह, क्या शिक्षा विभाग आलोचना से डर रहा है?

CG ब्रेकिंग: बच्चों की पढ़ाई पर सवाल उठाने पर मिली सस्पेंशन की सजा, WhatsApp स्टेटस लगाना बन गया गुनाह, क्या शिक्षा विभाग आलोचना से डर रहा है?

धमतरी। धमतरी जिले में बच्चों को समय पर किताबें न मिलने की समस्या उठाना एक सहायक शिक्षक को भारी पड़ गया है। शासकीय नवीन प्राथमिक शाला नारी (विकासखंड कुरूद) के सहायक शिक्षक (एलबी) ढालूराम साहू को जिला शिक्षा अधिकारी (DEO) ने तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। उन पर ‘शिक्षकीय गरिमा के विपरीत टिप्पणी’ करने का आरोप लगा है। 5 नवंबर 2025 को हुई इस कार्रवाई ने अब शिक्षा विभाग की कार्यशैली और छात्रहित की आवाज़ उठाने वाले शिक्षकों के भविष्य पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या शिक्षा विभाग अपनी नाकामियों पर पर्दा डाल रहा है, या शिक्षक ने वाकई लक्ष्मण रेखा पार की थी?

शिक्षक का ‘अपराधी’ स्टेटस: यही बना निलंबन का आधार

सहायक शिक्षक ढालूराम साहू ने अपने व्यक्तिगत मोबाइल के व्हाट्सएप स्टेटस के माध्यम से शिक्षा व्यवस्था की दुर्दशा पर सीधी चोट की थी। उनके इस भावनात्मक पोस्ट में तीन मुख्य बातें थीं, जिन्हें विभाग ने ‘आचरण नियम का उल्लंघन’ माना:

  1. “बच्चों की शिक्षा व्यवस्था ठप्प और हम चले राज्य स्थापना दिवस मनाने, क्या हम राज्योत्सव मनाने लायक हैं।”
  2. “जब तक बच्चों को पूरा पुस्तक नहीं मिल जाता, तब तक सहायक शिक्षक से लेकर बीईओ, डीईओ, कलेक्टर एवं माननीय शिक्षा मंत्री का वेतन रोक देना चाहिए।”
  3. “गांव के नेता गांव का नहीं, सिर्फ पार्टी का विकास चाहते हैं।”

इन टिप्पणियों में, विशेषकर जनप्रतिनिधियों और उच्च अधिकारियों के वेतन रोकने की माँग ने, शिक्षा विभाग की नाराजगी को चरम पर पहुंचा दिया।

डीईओ का निलंबन आदेश: आचरण नियम की दुहाई

शिक्षक की टिप्पणी सामने आते ही जिला शिक्षा अधिकारी अभय कुमार जायसवाल ने सख्त रुख अपनाया। उन्होंने अपने निलंबन आदेश में स्पष्ट किया कि ढालूराम साहू की टिप्पणी छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (आचरण) नियम 1965 के नियम 3 (i)(ii)(iii) का उल्लंघन है। जातिगत टिप्पणी को सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम 1966 के तहत दंडनीय मानते हुए उन्हें तत्काल निलंबित कर दिया गया। निलंबन अवधि के दौरान उनका मुख्यालय विकासखंड शिक्षा अधिकारी कार्यालय, नगरी निर्धारित किया गया है, जहाँ उन्हें जीवन निर्वाह भत्ता (Subsistence Allowance) मिलेगा।

‘भावनाओं में बहकर लिखा, पर सच तो नहीं बदला’

निलंबन के बाद शिक्षक ढालूराम साहू ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि उनका इरादा किसी अधिकारी या जनप्रतिनिधि से निजी दुश्मनी निकालना नहीं था। उन्होंने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि कक्षा चौथी के 22 बच्चों को अब तक हिंदी की पुस्तक नहीं मिली है, और यह सच्चाई देखकर वह भावनाओं में बहकर स्टेटस लगा बैठे। साहू का सबसे तीखा सवाल यह था: “मेरा निलंबन तो हो गया, लेकिन बच्चों को अभी तक किताब नहीं मिली—इसका दोषी कौन?” उनके इस जवाब से साफ है कि विभाग ने ‘आचरण’ पर कार्रवाई की, लेकिन शिक्षा व्यवस्था की असली समस्या यानी किताबों की कमी अब भी वहीं की वहीं बनी हुई है।

 

 

बड़ा सवाल: छवि बचाना या छात्रों की शिक्षा?

 

 

शिक्षक ढालूराम साहू का निलंबन केवल एक कर्मचारी की सजा नहीं है, बल्कि यह पूरे शिक्षा तंत्र के उस रवैये का उदाहरण है जहाँ ‘सिस्टम का सच बोलने वाले’ को दंडित किया जाता है। यह घटना कई तीखे सवाल छोड़ जाती है:

  • क्या सरकारी कर्मचारियों को बच्चों के हित में भी विभाग की खामियों को उजागर करने की अनुमति नहीं है?
  • क्या शिक्षा विभाग की प्राथमिकता समस्या सुलझाना है, या फिर सिस्टम की आलोचना करने वालों को चुप कराना?
  • राज्यभर में हजारों स्कूलों में किताबें समय पर न पहुँचने का मुद्दा गंभीर है। शिक्षकों पर कार्रवाई करके विभाग ने शायद यह संदेश देने की कोशिश की है कि ‘चुप रहो और सिस्टम की कमियां मत दिखाओ’। अब देखना यह होगा कि क्या विभाग बच्चों के हित के वास्तविक मुद्दे पर भी उतनी ही तत्परता से कार्रवाई करेगा, या केवल आवाज उठाने वालों को ही निशाना बनाया जाएगा।

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