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तिल्दा नेवरा में ‘नो-स्टैंड’ जोन में गरीब ऑटो चालक की मजबूरी

तिल्दा नेवरा में ‘नो-स्टैंड’ जोन में गरीब ऑटो चालक की मजबूरी

तिल्दा नेवरा।  तिल्दा नेवरा रेलवे स्टेशन के बाहर का यह नजारा केवल यातायात जाम का नहीं, बल्कि रोजी-रोटी के लिए जूझते सैंकड़ों गरीब ऑटो चालकों की मजबूरी का प्रतीक है। स्टेशन पर यात्रियों को लेकर खड़े होने की जगह न मिलने से ये ऑटो चालक सड़क पर या स्टेशन के किनारे खड़े होने को मजबूर हैं, जहां इन्हें आए दिन पुलिस और GRP (शासकीय रेल पुलिस) के डंडे का सामना करना पड़ता है। रेलवे प्रशासन ने अब तक ऑटो रिक्शा चालकों के लिए कोई व्यवस्थित स्टैंड आवंटित नहीं किया है। नतीजतन, ये चालक रोजगार के लिए जोखिम उठाकर गाड़ियां लगाते हैं।

रोजी-रोटी पर संकट

एक ऑटो चालक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि धंधा नहीं करेंगे तो घर कैसे चलेगा? बच्चों की फीस, बिजली बिल और सबसे बड़ी बात, बैंक व फाइनेंस कंपनियों की किस्त का डर सताता है। एक तरफ रेलवे जगह नहीं देती, तो पुलिस चालान करती है।

यात्रियों को भी परेशानी

अव्यवस्थित ऑटो पार्किंग से स्टेशन के भीषण जाम लगता है, जिसका खामियाजा यात्रियों और आम राहगीरों को भुगतना पड़ता है।

तस्वीर बयां कर रही हकीकतः स्टेशन के बाहर की मौजूदा स्थिति को साफ दर्शाती है, जहां सामान से लदे ट्रक के पास नीले रंग के कई ऑटो खड़े हैं और लोग जल्दबाजी में अपना रास्ता तलाश रहे हैं।

ऑटो चालक बोलेः जाएं तो जाएं कहां?

ऑटो वालो ने कई बार रेलवे और स्थानीय प्रशासन से व्यवस्थित पार्किंग स्टैंड की मांग की है। उनका स्पष्ट कहना है कि वे नियम का पालन करना चाहते हैं, लेकिन जगह की कमी उन्हें सड़क पर आने को मजबूर करती है। रेलवे को यात्री सुविधा की चिंता है, पर उन गरीब ऑटो वालों की नहीं जो इन यात्रियों को घर तक पहुंचाते हैं। हमें व्यवस्थित स्टैंड अलॉट किया जाए, हम एक इंच भी सड़क पर नहीं खड़े होंगे।

प्रशासन को चुनौती

यह मामला केवल यातायात प्रबंधन का नहीं, बल्कि गरीबों के रोजगार और सम्मान से जुड़ा है। अब देखना यह है कि रेलवे प्रशासन और स्थानीय पुलिस इस गंभीर समस्या पर कब तक संवेदनशीलता दिखाते हैं और इन ऑटो चालकों को ‘डंडा’ नहीं, बल्कि ‘स्टैंड’ उपलब्ध कराते हैं।

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