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जानिए प्रत्येक किसान पर सरकार का सालाना खर्च कितना?MSP पर C2+50% के फॉर्मूले से क्यों बचती रही हैं सरकारें

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले किसान एक बार फिर सड़कों पर हैं. दो संगठन- संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा ने मंगलवार को ‘दिल्ली चलो मार्च’ बुलाया था. इसे देखते हुए दिल्ली की सभी सीमाएं सील हैं किसान संगठन बार बार एमएसपी को लेकर आंदोलन प्रदर्शन करते हैं। लेकिन यह मुद्दा नजरअंदाज किया जाता है कि केंद्र सरकार कृषक परिवारों एवं खेती की दशा-दिशा सुधारने के लिए प्रतिवर्ष तीन लाख करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च करती है। इसमें उर्वरकों पर सब्सिडी के अतिरिक्त कृषि मंत्रालय की कई ऐसी योजनाएं हैं, जिनके जरिए किसानों के खाते में सीधे पैसे भेजे जाते हैं।

केवल समग्र कृषि योजनाएं एवं डीबीटी के माध्यम से दी जाने वाली सहायता राशि का अगर औसत आकलन किया जाए तो प्रत्येक किसान पर केंद्र सरकार वर्तमान में कृषि एवं उर्वरक मंत्रालय के तहत प्रति वर्ष लगभग 22 हजार रुपये से ज्यादा खर्च कर रही है। यह राशि पशुपालन, जल शक्ति, ऊर्जा और ग्रामीण विकास मंत्रालय की उन योजनाओं से अलग है, जिसे कृषि से संबद्ध कार्यों पर खर्च किया जाता है।

जानिए प्रत्येक किसान पर सरकार का सालाना खर्च कितना?MSP पर C2+50% के फॉर्मूले से क्यों बचती रही हैं सरकारें

वित्तीय वर्ष 2013- 14 में कृषि मंत्रालय का बजट 27,662.67 करोड़ रुपये था, जो 2023-24 में लगभग पांच गुना से ज्यादा बढ़कर 1,25,035.79 करोड़ रुपये हो गया है। समग्रता में देखें तो वर्ष 2023-24 में कृषि एवं किसान कल्याण पर केंद्र सरकार ने 1.25 लाख करोड़ रुपये और उर्वरकों की सब्सिडी पर 1.75 लाख करोड़ रुपये खर्च किए। इसी तरह खाद्य प्रसंस्करण, पशुपालन एवं मत्स्यपालन आदि पर लगभग दस हजार करोड़ रुपये से अधिक का आवंटन किया था।

खाद्य सुरक्षा बड़ी चुनौती

कुल राशि तीन लाख दस हजार करोड़ रुपये हुई। स्पष्ट है कि यह स्वास्थ्य, शिक्षा एवं अन्य कई सामाजिक विकास के लिए खर्च किए गए पैसे से बहुत ज्यादा है। इसमें जल शक्ति मंत्रालय के तहत ¨सचाई परियोजनाओं पर होने वाला व्यय शामिल नहीं है। पूर्व के वर्षों में केंद्र को उर्वरक सब्सिडी के रूप में ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ते थे। वर्ष 2022-23 में उर्वरक पर सब्सिडी 2.55 लाख करोड़ रुपये थी।

जमीन यथावत है और आबादी बढ़ रही है। ऐसे में खाद्य सुरक्षा बड़ी चुनौती है। कृषि लागत कम करके खेती को लाभकारी बनाने एवं किसान कल्याण के लिए सरकार की ओर से कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। समय पर खेती के लिए किसानों को पूंजीगत राहत देने के उद्देश्य से केंद्र द्वारा प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत 11 करोड़ किसानों के खाते में अभी तक 2.81 लाख करोड़ रुपये ट्रांसफर किए जा चुके हैं। योजना के तहत केंद्र सरकार पर प्रतिवर्ष करीब 66 हजार करोड़ रुपये का बोझ पड़ता है।

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प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना

खेती की क्षति को कम करने के लिए 2016 में शुरू प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत चालू वित्तीय वर्ष में 15 हजार 500 करोड़ का आवंटन किया गया है। इससे 1174.7 लाख किसानों की फसल क्षति की भरपाई करना है। किसानों को यह समझाने की कोशिश हो रही है कि पीएम किसान मानधन योजना के जरिए 2019 से केंद्र ने कमजोर किसान परिवारों के लिए पेंशन की व्यवस्था की है। किसानों के मासिक अंशदान के बराबर केंद्र की ओर से राशि जमा की जाती है। अबतक 23.38 लाख ने इस योजना को अपनाया है।

किसानों के भविष्य की सुरक्षा वाली इस योजना के तहत हजारों करोड़ रुपये केंद्र की ओर से जमा किए जा चुके हैं।किसान सभी उपज को एमएसपी पर खरीदने की मांग कर रहे हैं जिसे मान लिया गया तो यह तय है कि बाकी सारी योजनाएं बंद करनी पड़ेंगी। पिछले दस वर्षों में किसानों ने कृषि कर्ज के रूप में प्रति वर्ष 1.40 लाख करोड़ के औसत से कुल 14 लाख करोड़ रुपये लिए हैं। वर्ष 2013-14 में यह राशि 7.3 लाख करोड़ थी, जो अब करीब 20 लाख करोड़ के पार कर चुकी है।

केसीसी आवेदनों को दी गई मंजूरी

पशुपालन एवं मछली पालकों किसानों को कार्यशील पूंजी के रूप में अब किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) पर चार प्रतिशत वार्षिक ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराया जा रहा है। पीएम किसान के सभी लाभार्थियों को केसीसी के जरिए रियायती ऋण दिया जा रहा है। जनवरी 2024 तक 5.70 लाख करोड़ रुपये ऋण के रूप में दिए जा चुके हैं। साथ ही 465.42 लाख नए केसीसी आवेदनों को मंजूरी दी गई है।

एफपीओ के लिए खुला है कोष

कृषि उपज को बाजार से संबद्ध करने के लिए दस हजार कृषक उत्पादक संगठन (एफपीओ) बनाने हैं। अभी तक 7,774 बन चुके हैं। इन्हें इक्विटी अनुदान एवं ऋण गारंटी कवर के रूप में 357 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं। अगले दो वर्षों के दौरान नमो ड्रोन दीदी योजना के लिए 1261 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है। इससे महिला स्वयं सहायता समूहों को ड्रोन उपलब्ध कराना है। खेती को आसान एवं आधुनिक बनाने के लिए कृषि यंत्रों पर सब्सिडी के रूप में प्रति वर्ष औसतन 640.55 करोड़ रुपये दिए जा रहे हैं।

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एमएसपी पर क्या थीं सिफारिशें?

स्वामीनाथन आयोग ने किसानों को उनकी फसल की लागत का 50% ज्यादा देने की सिफारिश की थी. इसे फसल में लगने वाली लागत को तीन हिस्सों- A2, A2+FL और C2 में बांटा गया था.

A2 की लागत में फसल की पैदावार में हुए सभी तरह के नकदी खर्च शामिल होते हैं. इसमें बीज, खाद और केमिकल से लेकर मजदूरी, ईंधन और सिंचाई में लगने वाली लागत भी शामिल होती है.

A2+FL में फसल की पैदावार में लगने वाली कुल लागत के साथ-साथ परिवार के सदस्यों की मेहनत की अनुमानित लागत को भी जोड़ा जाता है.

जबकि, C2 में पैदावार में लगने वाली नकदी और गैर-नकदी के साथ-साथ जमीन पर लगने वाले लीज रेंट और खेती से जुड़ी दूसरी चीजों पर लगने वाले ब्याज को भी शामिल किया जाता है.

स्वामीनाथन आयोग ने C2 की लागत में ही डेढ़ गुना यानी 50 फीसदी और जोड़कर ही फसल पर एमएसपी देने की सिफारिश की थी.

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