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तिरंगा अभियान के नाम पर केंद्र सरकार कर्मचारियों से वसूली कर रही घर-घर मरकाम

रायपुर। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा कि घर-घर तिरंगा अभियान के लिए मोदी सरकार द्वारा केंद्रीय कर्मचारियों के वेतन से पैसे काटे जा रहे हैं। रकम बहुत मामूली है लेकिन उनकी इजाज़त और जानकारी के बिना ही पैसे काट लिए जा रहे हैं। दूसरा यह पैसा सबके खाते से निकाल कर कहां जमा हो रहा है और किसे दिया जा रहा है? खादी का झंडा बनाने वालों को कितना दिया जा रहा है और सूरत के व्यापारियों को कितना दिया जा रहा है? कौन एजेंसी है जो कई प्रकार के विभागों के कर्मचारियों की सैलरी से पैसे निकाल कर जमा कर रही है और ख़र्च कर रही है? सरकार को जवाब देना चाहिए। तिरंगा का अभियान है। इतनी नैतिकता और पारदर्शिता तो होनी ही चाहिए।’तिरंगा को लेकर अभियान हो और लोग दबी ज़ुबान में बातें करें कि पैसा काट लिया, यह अनुचित है। यह राहजनी हुई कि आपने किसी से पैसे छीन लिए। छिनतई है। व्यापारियों से भी सीएसआर और स्वेच्छा के नाम पर यही हुआ है। उनके चुप हो जाने से कोई बात सही नहीं हो जाती। अगर सरकार सार्वजनिक ऐलान करती और अपील करती तो संदेह समाप्त हो जाते। उनसे झंडे बनवाया जा सकता था। इस देश में लाखों सेल्फ हेल्फ ग्रुप हैं। महिलाओं को लगाया जा सकता है लेकिन इस तरह से इसकी प्लानिंग हुई कि ज़्यादातर आर्डर सूरत पहुंचे।’
मरकाम ने कहा कि ’भारत के लोग हमेशा से पंद्रह अगस्त के लिए अनगिनत जगहों पर तिरंगा फहराते हैं। हर गली मोहल्ले में झंडा फहराया जाता है। झुग्गी और गलियों में लोग फहराते हैं। सार्वजनिक समारोह होते हैं। लोग खरीदते हैं। सरकार ने अगर अभियान तय किया है तो उसकी पारदर्शिता होनी चाहिए। सरकार के हर घर तिरंगा के ऐलान के पहले ही सूरत के मिलों में तिरंगा का निर्माण औद्योगिक स्तर पर कैसे शुरू हो गया था। सरकार के अभियान की जानकारी उनको कैसे लीक हुई।

मरकाम ने कहा कि आजादी की 75वीं वर्षगांठ देश की जनता के लिये भावना और देश प्रेम का विषय है। सरकार को इसके लिये खुद वित्तीय प्रावधान करना चाहिये। यदि केंद्र सरकार के पास फंड की कमी है तो ’कायदे से सरकार को खुलेआम पैसा लेना चाहिए। ऐलान करना चाहिए कि सभी कर्मचारियों से तीस रुपये लिए जाएंगे। या फिर आयकर के साथ बीस रुपये अधिक ले लिए जाते। एक कर्मचारी की सैलरी से तीस रुपया निकाल लिया जाता है, फिर वह अपने लिए स्वयं भी झंडा खरीदता है। तो वह डबल पैसा खर्च कर रहा है। इस अभियान से जिस तरह से सूरत का कपड़ा उद्योग चल पड़ा है वह अच्छा है। लोगों को काम मिल रहा है। लेकिन मामला इतना सरल नहीं है। आने वाले दिनों में गुजरात में चुनाव होने वाले हैं। वहां हज़ारों लाखों लोगों को तीन महीने के लिए अच्छा काम मिला है। क्या तिरंगा अभियान के पीछे गुजरात के ठंडे पड़े कपड़ा उद्योगों में जान डाला गया है ताकि चुनाव के समय लोगों को भ्रम हो कि काम मिलने लगा और कुछ पैसा भी हाथ आ जाए?

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