भूपेश सरकार के प्रति लोगों में कम नाराजगी-सर्वे… सबसे ज्यादा….
नई दिल्ली, आईएएनएस की ओर से सीवोटर ओपिनियन पोल द्वारा किए गए एक सर्वे एंगर इंडेक्स के अनुसार, केंद्र सरकार की तुलना में राज्य सरकारों के खिलाफ सत्ता विरोधी भावनाएं अधिक हैं।
भारत की संघीय संरचना, कई राज्य सरकारों और भाजपा के नेतृत्व वाले केंद्र के बीच लगातार बिगड़ते संबंध 2014 से बहस का विषय रहे हैं। जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद कहा है कि कोविड-19 की हार की बाद संघीय ढांचा दुनिया के लिए मॉडल के रूप में उभरा है। दोनों पक्षों के बीच राजनीतिक खाई बढ़ती जा रही है, और मतदाता इसे स्पष्ट रूप से समझ रहा है।
एंगर इंडेक्स के अनुसार, 46.6 प्रतिशत उत्तरदाता अपनी राज्य सरकार से नाखुश हैं, जबकि 34.8 प्रतिशत लोग केंद्र सरकार से नाराज हैं।
सर्वे में 24.6 फीसदी अपने मुख्यमंत्रियों से सबसे ज्यादा नाराज हैं, वहीं 17.9 फीसदी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से खफा हैं। राज्य (10.7 फीसदी) की तुलना में अधिक भारतीय (11.7 फीसदी) केंद्र सरकार की नीतियों से नाखुश हैं।
भारतीय स्पष्ट रूप से राज्य नेतृत्व से अधिक मंत्रियों के मंत्रिमंडल पर भरोसा करते हैं।
महामारी की पहली लहर के दौरान राज्य और केंद्र सरकारों के बीच सौहार्द की कमी देखने को मिली थी। केंद्र ने राज्य सकार पर व्यवस्था को पर्याप्त रूप से मजबूत नहीं करने के लिए दोषी ठहराया था। इसके बदले, राज्य सरकारों ने केंद्र के खिलाफ लॉकडाउन लागू करने से पहले पर्याप्त नोटिस नहीं दिए जाने पर गुस्सा जाहिर किया था।
इसी तरह की कलह तब देखी गई जब महामारी के बीच प्रवासी पलायन हुआ।
राज्य सरकारें उस समय लोगों की जिम्मेदारियों का भार के लिए तैयार नहीं थी, जो अपने-अपने घर लौट रहे थे। जिसके कारण कई लोग बीच में फंसे रह गए थे और कई लोगों की कोविड-19 के कारण मौत हो गई थी। फिर भी, पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न कारणों से केंद्र-राज्य संबंधों का राजनीतिकरण किया गया है।
2014 के बाद से, गैर-एनडीए दल केंद्र के सुधारों को लेकर तैयार नहीं हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे जैसे नेताओं को ऐतिहासिक रूप से केंद्र का साथ नहीं मिला है। लेकिन इन नंबरों से यह स्पष्ट है कि एनडीए और गैर-एनडीए शासित राज्यों के बीच पक्षपातपूर्ण विभाजन मोदी के कार्यकाल के पहले भाग में प्रचारित सहकारी संघवाद के विजन पर हावी होने लगा है।
सर्वे में 35.4 प्रतिशत उत्तरदाता राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से नाखुश है। गहलोत के बाद लिस्ट में कर्नाटक के बसवराज बोम्मई (33.1 प्रतिशत) और बिहार के नीतीश कुमार (32.0 प्रतिशत) आते है।
दिल्लीवासी अपने स्थानीय शासन से सबसे अधिक खुश हैं। सिर्फ 28.0 प्रतिशत उत्तरदाता ही अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आप सरकार से नाराज है।
उत्तर प्रदेश में 41.8 प्रतिशत उत्तरदाता योगी आदित्यनाथ सरकार से नाखुश हैं।
उत्तरदाता अपने स्थानीय विधायकों या जमीनी स्तर पर शासन करने वालों की तुलना में मुख्यमंत्रियों से अधिक नाराज हैं। दिलचस्प बात यह है कि सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले मुख्यमंत्री अपने मौजूदा विधायकों के खराब प्रदर्शन से जूझ रहे हैं। लगभग सभी टॉप रेटेड मुख्यमंत्रियों ने अपने मौजूदा विधायकों के नामों को मतदाताओं द्वारा खराब प्रदर्शन के तौर पर दर्ज किया है। इसी तरह, जिन राज्यों में पीएम मोदी की रेटिंग बहुत अधिक है, वहां बीजेपी के मौजूदा सांसदों की रेटिंग नीचे है।
तुलनात्मक रूप से हिमाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ में लोग केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री से कम नाराज हैं। हिमाचल में, जहां अगले महीने चुनाव होने हैं। वहां 63 फीसदी लोग राज्य के शासन से नाखुश हैं, जबकि छत्तीसगढ़ में महज 6 फीसदी लोग अपने मुख्यमंत्री से नाराज हैं। पंजाब, तमिलनाडु और केरल क्रमश: 48.4 प्रतिशत, 47.7 प्रतिशत और 46.6 प्रतिशत केंद्रीय शासन से सबसे अधिक नाखुश हैं।
इन राज्यों के केंद्र से नाखुश होने के पीछे दक्षिणी राज्यों में भाजपा विरोधी और मोदी विरोधी भावनाएं हो सकती हैं। जहां तक पंजाब का सवाल है, मोदी और केंद्र सरकार ने कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध के चलते खराब रेटिंग हासिल की है।
तमिलनाडु, केरल और पंजाब पिछले आठ सालों से लगातार प्रधानमंत्री को खराब रेटिंग दे रहे हैं। राजनीतिक ²ष्टि से, इन तीन राज्यों में भाजपा को भारत की डिफॉल्ट शासन की पार्टी बनने की तलाश में चुनावी रूप से पार करने की आवश्यकता होती है। यह एक ऐसा शब्द, जिसे विश्लेषकों ने आजादी के लगभग छह दशकों तक कांग्रेस के लिए आरक्षित रखा था।