कोरोना के चलते छत्तीसगढ़ में निजी स्कूलों की पहल
रायपुर। प्रदेश के निजी स्कूलों के संगठन ने कोरोना संकट काल में अभिभावक खोने वाले बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा सुनिश्चित करने का अहम फैसला लेकर अपेक्षित कर्तव्य का निर्वहन किया है। सभ्य और सुशिक्षित समाज में सभी से इसी तरह के व्यवहार की उम्मीद की जाती है। इस मुश्किल दौर में समाज के सक्षम लोगों का दायित्व है कि जरूरतमंद लोगों की सहायता और सेवा के लिए हाथ आगे बढ़ाएं।
प्रदेश में कोरोना के कारण मौतों का आंकड़ा साढ़े दस हजार की संख्या पार कर चुका है। इसमें सभी आयु और आय वर्ग के लोग हैं। बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग के लोग अपने बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिला दिलाते हैं, ताकि बच्चे पढ़-लिखकर कामयाबी हासिल कर सकें। कोरोना से हुई मौतों में ऐसे परिवार ज्यादा मुश्किल में आ गए हैं, जिनके घर के मुखिया को इस बीमारी ने अपनी चपेट में लिया है।
इन परिवारों के सामने दो वक्त की रोटी का भी संकट आ गया है। निजी स्कूल प्रबंधकों ने सकारात्मक विचार के साथ सामाजिक दायित्व निभाने का निर्णय लिया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकारी संस्थाएं भी ऐसा ही दृष्टिकोण अपनाएंगी, ताकि मुश्किल में फंसे लोगों को फिर संभलने का मौका मिल सके।
स्कूल प्रबंधकों के संगठन ने राज्य सरकार से अपील की है कि अभिभावक, संरक्षक या परिवार का कमाने वाला खो देने वाले बच्चों को शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) के तहत पंजीकृत किया जाए, ताकि स्कूलों को ऐसे बच्चों की पढ़ाई जारी रखने में सुविधा हो। साथ ही यह भी भरोसा दिया गया है कि जब तक पंजीकृत करने की प्रक्रिया पूरी नहीं होती, तब तक स्कूल की तरफ से मुफ्त पढ़ाई सुनिश्चित की जाएगी।
इसमें दो राय नहीं है कि निजी स्कूल भी चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रहे हैं। बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हुए हैं तथा व्यवसायियों का कारोबार भी ठप हो गया है। इसकी वजह से स्कूलों में दाखिल विद्यार्थियों के अभिभावकों के लिए समय से फीस का भुगतान कर पाना मुश्किल बना हुआ है। इसका प्रभाव शिक्षकों और शिक्षकेत्तर कर्मचारियों पर भी पड़ा है।
शिक्षाकर्मियों की भी नौकरी प्रभावित हुई है। कोरोना का प्रभाव खत्म भी हो जाता है तो भी व्यवस्था को सामान्य होने में कुछ वर्ष लगेंगे। यद्यपि तीसरी लहर की बात अभी से डरा रही है। सरकार की तरफ से भी इस दिशा में उचित प्रोत्साहन की उम्मीद की जाती है।
इसमें दो राय नहीं कि शिक्षण संस्थानों का निर्णय अभिभावक खोने वाले बच्चों के साथ उनकी माताओं के लिए भी राहतपूर्ण रहेगा, जो अपने बच्चों के भविष्य के लिए सदैव चिंतित और संघर्षरत रहती हैं। इसी तरह समाज के हर संपन्न व्यक्ति और संस्थान का दायित्व है कि परेशानी में फंसे लोगों को उबारने के लिए आगे आएं। यह समाज के लिए कुछ करने का समय है।