पत्रकारिता के बहाने और उसकी असली पहचान: छोटे भाई पत्रकार केशव पाल…
तिल्दा। पत्रकारिता का तेवर और कलेवर बदल चुका है। हर दो मिनट बाद ब्रेकिंग या बिग न्यूज जैसे शब्द पढ़ने को मिल जाता है। दोस्तों और शिक्षकों ने मुझे शहर में पत्रकारिता करने की सलाह दी। कहा- यहां तुमको अच्छे वेतन के साथ सम्मान भी मिलेगा। बावजूद मैनें बिना वेतन के ग्रामीण क्षेत्रों में पत्रकारिता करने को तवज्जो दी। पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान ग्रामीण पत्रकारिता पर रिसर्च पेपर तैयार करनें पत्रकारिता की बारीकियों पर ध्यान दिया, इस बीच मुफलिसी में जिंदगी गुजारते हुए यही महसूस किया कि, ग्रामीण पत्रकार सिर्फ़ जुनून के कारण ही पत्रकारिता से जुड़े हुए हैं करियर की दृष्टि से नहीं। क्योंकि पत्रकारिता के भरोसे जीवनयापन मुश्किल है। एक नया प्रचलन चल पड़ा है जो व्यक्ति मीडिया संस्थान को ज्यादा पैसा देगा वही उस क्षेत्र का संवाददाता होगा। ग्रामीण क्षेत्रों के पत्रकार अब सिर्फ पत्रकार ही नहीं रहते वह स्थानीय नेता, समाजसेवी, चाय दुकान का मालिक, सब्जी विक्रेता, मजदूर, हिस्ट्रीशीटर कुछ भी हो सकता हैं।
चैनल या अखबार भी ऐसे लोगों को जिम्मेदारी सौंपता है जो उन्हें फायदा दिलाए। ग्रामीण क्षेत्रों में कई चैनल, पोर्टल रोज खुल और बंद हो रहे हैं। संपादक कौन है, कहाँ से खबर उठा रहे हैं, कोई हिसाब किताब नहीं है। कुछ अखबार तो आते ही नहीं, केवल पीडीएफ ही भेज दी जाती है। समाचार का प्रसारण होगा या नहीं यह विज्ञापन पर निर्भर करता है। ग्रामीण संस्करणों में प्रुफ रीडिंग और संपादन का अभाव खटकता है। नए पत्रकारों की नई फौज तैयार हो रही है। उनका अलग संगठन और संघ बन रहा है। पुराने और नए पत्रकारों में खीचातानी बढ़ी है। पहले लोग पत्रकार बनते थे तब बाद में संपादक बनते थे। अब पोर्टलों के आने से छोटी उम्र में ही सीधे संपादक बन रहे है। यहां तो ब्लॉग लिखने वालें भी अपने आप को पत्रकार समझता है। हर गाँव, हर मोहल्लें में पत्रकार है। लिहाजा छोटी सी छोटी घटना भी समाचार बन जा रही है। अब तो पंचायत स्तर पर पत्रकार बनने बायोडाटा मांग रहे हैं, इससे बड़ा मजाक और क्या होगा। कवरेज के दौरान रोज नए नाम के चैनल और व्यक्ति दिख जाते हैं। बंटी-बबली फर्जी पत्रकारों की टोली फायदा वाले जगहों पर मंडरा रहें हैं। पत्रकारिता का चरित्र और चेहरा बदल रहा है। इस बीच हमारा ईमान कभी न बदले इसका ध्यान जरूर रखना होगा।