आदिवासी पारधी समाज का परम्परागत व्यवसाय नष्ट होने की कगार पर : धरम सिंग पारधी
आरंग। वर्तमान समय में छत्तीसगढ़ राज्य के लगभग सभी क्षेत्रों में पारधी जनजाति के लोग निवास करते हैं। ये लोग पूर्व में घुमंतू प्रवत्ती के थे।
जो एक स्थान से दूसरे स्थान जाकर अपना जीविकोपार्जन करते थे। समय के साथ ये लोग गांव में बसते गये। और अपना जीविका शिकार व झाड़ू-चटाई पर निर्भर होते गये।
धरम सिंग पारधी ने बताया की, एक समय था जब इस समाज के लोग आर्थिक विकास के लिए झाड़ू-चटाई के व्यवसाय पर पूर्ण रूप से निर्भर रहते थे।
लेकिन आज के समय में यह व्यवसाय भी नष्ट होते जा रहा है। जिससे इनकी आर्थिक स्थिति इतनी दयनीय हो गई है, की अपनी परिवार का भरण पोषण करना भी मुश्किल हो गया है।
चुंकि इस समाज के 70% से 80% लोगों के पास खेती के लिए जमीन नहीं हैं। वर्तमान समय में अपनी आय के लिए झाड़ू विक्रय पर ही आश्रित है।
जिसमें भी लागत अधिक और आय कम है। (झीन पेड़ के) झाड़ू और चटाई अब विलुप्त होते जा रहे हैं। क्योंकि इनकी जगह अब बाजार में प्लास्टिक चटाई और प्लास्टिक झाड़ू आ चुके हैं।
जो इस समाज के रोजगार व जीविकोपार्जन के लिए मुशिबत बन गया है। अगर भविष्य में इनकी आर्थिक विकास के लिए व्यवसाय संबंधित कोई ठोस नीति नहीं लाया गया, तो आर्थिक विषमता और बेरोजगारी बड़ती ही जायेगी।
सरकार पहल करेगा, तो एक झटके में इनकी आर्थिक स्थिति सुधर सकता है।
आगे धरम सिंग पारधी ने बताया की, जिस प्रकार सरकार कुम्हार, ढीमर, कड़रा और धोबी समाज के आर्थिक विकास के लिए प्रोत्साहित करता। अगर उसी प्रकार इस समाज के लिए किया जाय, तो आर्थिक विकास में सुधार किया जा सकता है।
इस समाज के 60% से 70% लोग झाड़ू व्यवसाय से जुड़े हैं। चुंकि इस राज्य से झीन पेड़ के खड़ी पत्तियों को अन्य राज्यों में वन विभाग के आदेशानुसार बेचा जाता है, जहां इनकी कीमत अधिक है।
इसे प्रतिबंध करके सरकार स्वयं एक निश्चित अनुपात में झाड़ू खरीदे। क्योंकि छत्तीसगढ़ राज्य में प्रति नग झाड़ू की कीमत 5₹ से 6₹ है।
जबकि अन्य प्रदेशों में 40₹ से लेकर 60₹ तक है। अगर सरकार झाड़ू संघ निर्माता का गठन करने में समाज का सहयोग प्रदान करता है, तो समाज का आर्थिक विकास व बेरोजगारी दर कम हो सकता है।