छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ में लघु वनोपजों की संख्या तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि से 13 लाख संग्राहकों को हुई अतिरिक्त आय

रायपुर। राज्य सरकार ने 52 लघु वनोपज प्रजातियों का न्यूनतम समर्थन मूल्य पर क्रय करना प्रारंभ कर दिया गया है। वनवासियों के हित में अहम निर्णय लेते हुए लघु वनोपजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य में भी वृद्धि की गई। वर्ष 2018 में तेंदूपत्ता का संग्रहण दर 2500 रूपए प्रति मानक बोरा था, उसे बढ़ाकर 4000 रूपए प्रति मानक बोरा कर दिया गया। इससे पहले वर्ष 2019 में ही 13 लाख तेंदूपत्ता संग्राहकों को 225 करोड़ रूपए की अतिरिक्त आय हुई।

अन्य लघु वनोपज में जहां वर्ष 2018 में मात्र 7 वनोपजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य पर संग्रहण किया जाता था, उसे बढ़ाकर 52 लघु वनोपज के क्रय की व्यवस्था न्यूनतम समर्थन मूल्य पर की गई, न केवल वनोपजों की संख्या में वृद्धि की गई, बल्कि ग्राम एवं हाटबाजार स्तर पर 3500 महिला स्व-सहायता समूहों का गठन करते हुए और उनके प्रशिक्षण के लिए प्रशिक्षित एवं प्रोत्साहित करते हुए अधिक से अधिक वनोपज क्रय के लिए प्रोत्साहित किया गया। न्यूनतम समर्थन मूल्य में भी वर्ष 2018 की तुलना में वृद्धि की गयी, जिसका प्रत्यक्ष परिणाम यह हुआ है कि लगभग 6 लाख लघु वनोपज संग्राहकों द्वारा बिचौलियों के औने-पौने दाम में लघु वनोपज न बेचते हुए ग्राम एवं हाट बाजार स्तर पर गठित समितियों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर वनोपजों का विक्रय किया गया।

इसी तरह वर्ष 2018 में जहां 1600 करोड़ रूपए का ही कुल वनोपज क्रय किया गया था, उसे बढ़ाकर 2100 करोड़ रूपए का क्रय किया गया, जो कि वर्ष 2018 की तुलना में 32 प्रतिशत की वृद्धि प्रतिवर्ष हुई है। इस तरह राज्य में लघु वनोपजों की संख्या एवं न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि के फलस्वरूप 13 लाख से अधिक गरीब तथा आदिवासी लघु वनोपज संग्राहकों को प्रतिवर्ष 501 करोड़ 70 लाख रूपए की राशि की अतिरिक्त आय हो रही है। दरों में वृद्धि से अतिरिक्त आय होने वाले 17 मुख्य प्रजातियों में तेन्दूपत्ता, महुआ फूल, इमली (बीज सहित), महुआ बीज, चिरौजी गुठली, रंगीनी लाख, कुसुमी लाख, फूल झाड़ृ, गिलोय, चरोटा बीज, धवई फूल, बायबिडिंग, शहद, आंवला (बीज रहित), नागरमोथा, बेल गुदा तथा गम कराया शामिल है।

छत्तीसगढ़ राज्य में लघु वनोपजों का अनुमानित उत्पादन 1200 करोड़ रूपए प्रतिवर्ष से अधिक का है, परंतु अधिकांश लघु वनोपज व्यापारियों द्वारा क्रय कर अन्य राज्यों में प्रसंस्करण के लिए भेज दिया जाता था। इमली, लाख इत्यादि वनोपज का भी न तो प्राथमिक प्रसंस्करण किया जाता था न ही ऐसे अधिक मात्रा में प्रसंस्कृत उत्पाद निर्मित किये जाते थे।

छत्तीसगढ़ सरकार के प्रयासों के फलस्वरूप सिर्फ इमली का प्राथमिक प्रसंस्करण करते हुए इसका डीसिडिंग कार्य राज्य में ही क्षेत्रीय स्तर पर कराया गया, जिसमें 21 हजार 582 हितग्राहियों को 2 करोड़ 69 लाख रूपए की अतिरिक्त आय हुई। इसके अलावा अन्य लघु वनोपजों के प्राथमिक प्रसंस्करण से एक करोड़ 91 लाख रूपए की अतिरिक्त आमदनी संग्राहकों को हो रही है। प्राथमिक प्रसंस्करण के फलस्वरूप वनोपज का मूल्य-संवर्धन भी हुआ है, जिससे लघु वनोपज के विक्रय से वनोपज का उचित मूल्य भी प्राप्त हुआ।

लघु वनोपज के प्राथमिक प्रसंस्करण के साथ-साथ हर्बल उत्पादों का निर्माण भी 50 प्रसंस्करण केंद्रों द्वारा किया जा रहा है, जिसमें 1324 महिला स्व-सहायता समूह शामिल हैं। इन समूहों के अंतर्गत 17 हजार 424 महिला हितग्राही लघु वनोपज के प्रसंस्करण का कार्य कर रही हैं तथा त्रिफला, महुआ लड्डू, च्यवनप्राश, चिरौंजी, सैनिटाइजर, भृगराज तेल, 3 शहद, काजू इत्यादि के हर्बल उत्पाद तैयार किया जा रहा है। वर्ष 2020-21 में 111 प्रकार के हर्बल उत्पादों को तैयार किया गया, जिसका विक्रय मूल्य 7 करोड़ 50 लाख रूपए है।

इन समूहों को प्रतिष्ठित तकनीकी संस्थान जैसे आई.आई.टी कानपुर के माध्यम से उद्यमिता एवं प्रसंस्करण के लिए प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है, जिससे ये स्व-सहायता समूह प्रसंस्करण कार्य हेतु आत्म-निर्भर बन सकें, इन प्रसंस्करण केंद्रों द्वारा तैयार किये गये हर्बल उत्पादों को छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ द्वारा छत्तीसगढ़ हर्बल्स ब्रांड नाम से मार्केटिंग करते हुए विक्रय का कार्य किया जा रहा है। वर्ष 2020-21 में 10 करोड़ रूपए से अधिक राशि के हर्बल उत्पादों के विक्रय का लक्ष्य रखा गया है।

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button