छत्तीसगढ़

नवरात्र पर्व में छत्तीसगढ़ के प्रसिध्द 36 देवी मंदिरों का दर्शन कर अपनी मनोकामना करें पूर्ण

छत्तीसगढ़। नवरात्रि के शुरू होते ही माता के मंदिरों और देवी पंडालों में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। नवरात्रि के नौ दिनों में माता के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं छत्तीसगढ़ के ऐसे प्रसिध्द 36 देवी मंदिरों के बारें में जो प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे देशभर में विख्यात हैं, जिनके दर्शन कर आप अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकते हैं।

1. मां बम्लेश्वरी मंदिर, डोंगरगढ़

छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में पहाड़ों के ऊपर स्थित मां बम्लेश्वरी देवी का मंदिर देशभर में प्रसिध्द हैं। हर साल नवरात्रि के मौके पर यहां मेला लगता है। प्रदेशभर से भक्त यहां माता के दर्शन करने और मनोकामना ज्योति कलश जलाने आते हैं । यहां मां सबकी मनोकामना पूरी करती हैं नवरात्रि पर माता के भक्त यहां पदयात्रा कर भी पहुंचते हैं । मां बम्लेश्वरी देवी छत्तीसगढ़ की सबसे ऊंची चोटी पर विराजमान हैं। जिनका इतिहास काफी पूराना है।

2. दंतेश्वरी मंदिर, दंतेवाड़ा

दंतेवाडा जिले में स्थित मां दंतेश्वरी का मंदिर 51 शक्तिपीठों से एक माना जाता है। मान्यता है कि माता सती का यदांत यहां गिरा था इसलिये देवी को यहां पर दंतेश्वरी का रूप माना जाता है। इसलिये इस जगह का नाम दंतेवाड़ा पड़ा। यहां माता के दर्शन करने दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं। यहां मान्यता है कि आने वाले सभी भक्तों की मनोकामना जल्द पूरी होती है।

दंतेश्वरी मंदिर में स्थापित देवी की पाषाण काल निर्मित प्रतिमा स्थापित है जो काले पत्थर से बनाई गई है, इसके साथ ही मंदिर में भगवान नटराज की मूर्ति भी स्थापित है । मंदिर का निर्माण भव्य तरीके से किया गया है। मंदिर के पास ही पवित्र शंखिनी और डंकिनी नदियां बहती हैं।

3. चंडी माता मंदिर, बागबाहरा

महासमुंद जिले के बागबहरा के पहाड़ पर स्थित है चंड़ी माता का मंदिर जो घुंचापाली के पहाड़ों पर स्थित है। इस मंदिर का इजिहास करीब डेढ़ सौ साल पुराना है। कहा जाता है कि यहां चंडी माता की प्रतिमा स्वयं प्रकट हुई है। चंडी माता का यह मंदिर पहले तंत्र साधना के लिये मशहूर था।

इसके अलावा यह मंदिर और मशहूर है यहां के भालूओं की वजह से यहां मंदिर प्रांगण में रोज आरती के वक्त भालू आते हैं जिन्हे माता का प्रसाद खिलाया जाता है। यहां आने वाले श्रध्दालुाओं के लिये यह भालू आकर्षण का केंद्र होते हैं।

4. महामाया मंदिर, रतनपुर

छत्तीसगढ़ में बिलासपुर से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित आदिशक्ति मां महामाया देवी की पवित्र पौराणिक नगरी रतनपुर का इतिहास प्राचीन एवं गौरवशाली है। त्रिपुरी के कलचुरियों की एक शाखा ने रतनपुर को अपनी राजधानी बनाकर दीर्घकाल तक छत्तीसगढ़ में शासन किया ।

माना जाता है कि सती की मृत्यु से व्यथित भगवान शिव उनके मृत शरीर को लेकर तांडव करते हुये ब्राह्मंड में भटकते रहे। इस समय माता के अंग जहां-जहां गिरे, वहीं शक्तिपीठ बन गए। इन्हीं स्थानों को शक्तिपीठ रूप में मान्यता मिली । महामाया मंदिर में माता का दाहिना स्कंध गिरा था। भगवान शिव ने स्वंय आविर्भूत होकर उसे कौमारी शक्ति पीठ का नाम दिया था। इसलिये इस स्थल को माता के 51 शक्तिपीठों में शमिल किया गया । यहां प्रातः काल से देर रात तक भक्तों की भीड़ लगी रहती है। माना जाता है कि नवरात्र में यहां की गई पूजा निष्फल नहीं जाती है।

5. मां जतमई का मंदिर, जतमई-घटारानी

छत्तीसगढ़ में झरनों के बीज बसा मां जतमई का मंदिर रायपुर से 70 किमी की दूरी पर स्थित है। माता का ये मंदिर जंगल के बीचो बीच बसा हुआ है । मां के चरणों को छुकर बहती जलधाराएं यहां पर लोगों को आकर्षित करती हैं। कथाओं के अनुसार ये जलधाराएं माता की सेविकाएं है।

6. खल्लारी माता का मंदिर, भीमखोज महासमुन्द

महासमुन्द से 25 किमी दक्षिण की ओर खल्लारी गांव की पहाड़ी के शीर्ष पर खल्लारी माता का मंदिर स्थित है।जो भीमखोज रेल्वे स्टेशन से 1किलोमीटर एवं बागबाहरा रेल्वे स्टेशन से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं।
प्रतिवर्ष क्वांर एवं चैत्र नवरात्र के दौरान बड़ी संख्या में भक्तों की भीड़ इस दुर्गम पहाड़ी में दर्शन के लिये आती है। हर साल चैत्र मास की पूर्णिमा के अवसर पर वार्षिक मेले का आयोजन किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि महाभारत युग में पांडव अपनी यात्रा के दौरान इस पहाड़ी की चोटी पर आये थे, जिसका प्रमाण भीम के विशाल पदचिन्ह हैं जो इस पहाड़ी पर स्पष्ट दिख रहे हैं।

7. चंद्रहासिनी देवी मंदिर, जांजगीर चांपा

जांजगीर चांपा तहसील डभरा तहसील मुख्यालय डभरा से 22 कि. मी. पूर्व की ओर महानदी के तट पर चन्द्रहासिनी देवी माता का एक अद्भुत मंदिर है। नवरात्रि के समय यहॉ भव्य मेला का आयोजन किया जाता है। साथ ही यह एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है यहॉ अन्य राज्यों जैसे ओडिसा से भी लोग आते है। यह एक पवित्र स्थान है व पर्यटन स्थल के रूप में दिन ब दिन अपनी ख्याति बना रहा है।

8. मावली माता मंदिर सिंगारपुर

सिंगारपुर छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार जिले में भाटापारा के तहसील में एक गांव है। सिंगारपुर अपने तहसील मुख्य शहर भाटापारा से 11.8 किमी दूर, जिला मुख्यालय बलौदाबाजार से 34.8 किमी दूर है और इसकी राजधानी रायपुर से 75 किमी से दूर है। सिंगारपुर में देवी माउली माता का एक प्रसिद्ध मंदिर है। माना जाता है की शिव, ब्रह्मा और विष्णु की इच्छा से माउली माता यहाँ प्रकट हुई | माता माउली की प्रतिमा की स्थापना अत्यंत प्राचीन समय में की गई थी |

9. सिध्दि माता मंदिर, बेमेतरा

यह मंदिर बेमेतरा जिले के संडी नामक गांव में स्थित है मां सिध्दि भव्य एवं दिव्य मंदिर। इस मंदिर के प्रवेश द्वार में आपको दो सिंह और ऊपर में अर्जुन और कृष्णा की प्रतिमा आपको देखने को मिलेगा। मां सिध्दि को हिंगलाज भवानी के नाम से जाना जाता है। मां सिध्दि माता मंदिर से 100 मी की दूरी पर बबुल पेड़ के नीचे एक चबूतरा का निर्माण किया गया है। जिसके अंदर बलि दी जाती है। बलि हर साल होली के दूसरे दिन से तेरस तक मन्नत पूरी होने पर ही बकरे की बलि दी जाती है। माता के इस मंदिर में चैत नवरात्रि में लगभग 10000 से अधिक ज्योति कलश जलाये जाते हैं।

10. पाताल भैरवी मंदिर, राजनंदगांव

बरफानी धाम छत्तीसगढ़ में राजनंदगांव शहर में एक मंदिर है। मंदिर के शीर्ष पर एक बड़ा शिव लिंग देखा जा सकता है, जबकि इसके सामने एक बड़ी नंदी प्रतिमा खड़ी है। मंदिर तीन स्तरों में बनाया जाता है। नीचे की परत में पाताल भैरवी का मंदिर है, दूसरा नवदुर्गा या त्रिपुर सुंदरी मंदिर है और ऊपरी स्तर में भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों की प्रतिमा है।

11. करेला की पहाड़ी पर विराजमान मां भवानी

छत्तीसगढ़ के पावन धार्मिक स्थल डोंगरगढ़ से लगभग 17 किलोमीटर की दूरी पर करेला नामक ग्राम में बसी है मां करेला भवानी का भव्य मंदिर है। करेला भवानी के मंदिर को भवानी डोंगरी के नाम से जाना जाता है। मंदिर के गर्भ गृह मां करेला भवानी विराजमान है। मां करेला भवानी मंदिर तक पहुंचने के लिये कुल 1100 सीढ़ी पार करनी पड़ती हैं। तब आप मां करेला भवानी मंदिर तक पहुंच सकते हैं।

12. मां अंगार मोती मंदिर धमतरी

छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में गंगरेल बांध के तट पर विराजमान है अंगार मोती माता दिव्य मंदिर। मां अंगार मोती माता को वन की देवी भी कहा जाता है माता अंगार ऋषि अंगीरा की पुत्री मानी जाती है ।

खुले आसमान के नीचे है माता का मंदिर दरअसल अंगार माता का जो मंदिर है इसे कई बार बनाने का प्रयास किया गया मगर माता को बंधन में रहना पसंद नहीं है इसलिये इस मंदिर की कभी छत गिर जाती तो कभी दीवारों मंे दरारें आ जाती थी इसलिये अंगार मोती माता के मंदिर का निर्माण नहीं किया गया ।

13. बंजारी माता मंदिर रायपुर

बंजारी माता मंदिर रायपुर शहर का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। इस मंदिर में बंजारी माता के दर्शन करने के लिए मिलता है। इस मंदिर के बाजू में ही बंजारेश्वर महादेव मंदिर देखने के लिए मिलता है और यहां पर बहुत सारे देवी देवताओं की मूर्तियां के दर्शन करने के लिए मिलते हैं। यहां पर विष्णु भगवान जी के दर्शन करने के लिए मिलते हैं, जो शेष शैया में लेटे हुए हैं और यह प्रतिमा पानी के ऊपर बनाई गई है। यह प्रतिमा बहुत ही सुंदर लगती है। विष्णु भगवान जी के साथ, लक्ष्मी माता और अन्य गणों के दर्शन करने के लिए मिलते हैं। यहां पर श्री कृष्ण जी, कालिया नाग का दमन करते हुए दिखाया गया है। हनुमान जी की एक बहुत बड़ी प्रतिमा के दर्शन करने के लिए मिलते हैं। शिव भगवान जी की एक बहुत बड़ी प्रतिमा के दर्शन करने के लिए मिलते हैं। इस जगह में बहुत सारे देवी देवता है। यहां पर आकर बहुत शांति मिलती है। यह रायपुर में घूमने वाली मुख्य जगह है।

14. श्री महामाया मंदिर रायपुर

श्री महामाया मंदिर रायपुर शहर का सबसे पुराना मंदिर है। यह रायपुर शहर का धार्मिक स्थल है। यह मंदिर रायपुर शहर में पुरानी बस्ती में स्थित है। मंदिर परिसर बहुत बड़ा है। यह मंदिर मुख्य रूप से मां महामाया देवी को समर्पित है। यहां पर आपको बहुत सारे देवी के स्वरूप देखने के लिए मिलते हैं। गर्भ गृह में मां महामाया की बहुत सुंदर प्रतिमा देखने के लिए मिलती है। यहां पर नवरात्रि के समय बहुत भीड़ लगती है। लोग मां के दर्शन करने के लिए आते हैं। यह मंदिर परिसर में आपको बहुत सारे देवी देवताओं की मूर्तियां और तस्वीरें देखने के लिए मिलती है। यहां पर मां दुर्गा जी का भव्य स्वरूप देखने के लिए मिलता है। श्री कृष्ण जी का विराट स्वरूप देखने के लिए मिलता है और महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती की प्रतिमाएं भी देखने के लिए मिलती हैं। यहां पर आकर आपको बहुत शांति मिलेगी। आप यहां पर अपना अच्छा समय बिता सकते हैं।

15. कुदरगढ़ी देवी, सूरजपुर

छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले में ओड़गी ब्लाक मुख्यालय से लगभग 06 किलो मीटर की दूरी पर स्थित कुदरगढ़ वन में शक्ति पीठ मां बागेश्वरी बाल रूप में कुदरगढ़ी देवी का निवास स्थान है जिसे लोग कुदरगढ़ मंदिर के नाम से जानते हैं। यह मंदिर घने जंगलों के बीच 1500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इस मंदिर में विराजमान कुदरगढ़ी देवी का महत्व सरगुजा अंचल में काफी ज्यादा है। इस मंदिर संबंधित मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु भक्त सच्चे मन से जो कुछ भी मांगते हैं सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।

कुदरगढ़ी देवी के दर्शन करने के लिए आपको लगभग 750-800 सीढ़ियां चढ़ना पड़ता है जिसके बाद ही आप माँ कुदरगढ़ी के दर्शन कर सकते हैं। आसपास हरियाली और अठखेलियां करते बंदर और खूबसूरत झरना सीढ़ियां चढ़ने के लिए आपको प्रेरित करेंगे। सीढ़ियां चढ़ने के दौरान आपको बीच में सूरज झरना देखने को मिलेगा जो आसपास के वातावरण और भी खुश नुमा बना देते हैं कई सारे भक्त कुदरगढ़ी देवी के दर्शन करने से पहले स्नान करते हैं।

कुदरगढ़ मेला का आयोजन हर वर्ष चैत्र नवरात्र में किया जाता है, बड़ी संख्या में लोग माँ कुदरगढ़ी के दर्शन करने आते हैं। घने जंगल के बीच मंदिर के आसपास चहल कदमी और मेले में लगे झूले और आसपास की हरियाली का संगम देखने लायक होता है। माँ बाघेश्वरी के दर्शन करने सरगुजा अंचल के अलावा अन्य क्षेत्रों से भी आते हैं लोगों में मान्यता है की देवी के दर्शन करने से हर प्रकार के दुःख दर्द से छुटकारा मिल जाता है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। यहाँ पर लोगों की मनोकामनाएं पूरी होने पर लोग बकरे का बलि देते हैं, इस जगह पर वर्षभर में हजारों बकरे बलि चढ़ते हैं।

16. सियादेवी मंदिर बालोद

सियादेवी मंदिर छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में है। यह स्थान प्राकृतिक जंगल की हरियाली के बीच स्थित सीता मैया के मंदिर के लिए प्रसिद्ध हैमंदिर बहुत पुराना है और एक प्राकृतिक झरना है।यह बताया गया है कि, भगवान राम ने अपने निर्वासन के दौरान लक्ष्मण और सीता के साथ इस स्थान का दौरा किया था।इसके पास का झरना कई पर्यटकों को आकर्षित करता है जो भारत के तीर्थयात्रियों के बीच इसके महत्व को बढ़ाता है।यह छत्तीसगढ़ के सबसे अच्छे पर्यटन स्थलों में से एक है|

17. गंगा मैया मंदिर

गंगा मैया मंदिर छत्तीसगढ़ की बालोद तहसील में बालोद-दुर्ग रोड के पास झलमला में स्थित है| यह ऐतिहासिक महत्व वाला धार्मिक स्थल है। इस मंदिर का एक गौरवशाली आनंद और बहुत ही करामाती इतिहास है। मूल रूप से, गंगा मैया मंदिर का निर्माण एक स्थानीय मछुआरे द्वारा एक छोटी सी झोपड़ी के रूप में किया गया था। बालोद की एक स्थानीय धार्मिक मान्यता गंगा मैया मंदिर की उत्पत्ति से संबंधित है। प्रारंभ में, मंदिर एक छोटी सी झोपड़ी के रूप में बनाया गया था। कई भक्तों ने अच्छी मात्रा में धनराशि दान की जिससे इसे एक उचित मंदिर परिसर में बनाने में मदद मिली।चूँकि यह बालोद – दुर्ग मार्ग पर स्थित है, इसलिए छत्तीसगढ़ के किसी भी जिले से मंदिर तक पहुँचना बिलकुल सुविधाजनक है

18. खुड़िया रानी जशपुर

खुड़िया रानी मंदिर छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में छिछली ग्राम के अंतर्गत आता है। यह मंदिर हजारों वर्षों से लगातार पानी की धार से कटकर बने गुफा में देवी खुड़िया रानी विराजमान है। गुफा के मुख्य द्वारा पर आपको अन्य देवी देवताओं जैसे शिव, नंदी, माँ काली, माँ शिरंगी, भैरव बाबा की प्रतिमाएँ देखने को मिलेंगे।
गुफा के अन्दर प्रवेश करते ही आप एक अलग दुनिया में आ जायेंगे, अन्दर जाने के लिए और हजारों साल पुराने चट्टानों की ख़ूबसूरती देखने के लिए अपने साथ टॉर्च लेना न भूलें। गुफा में प्रवेश करने के बाद आपको कुछ दूर पैदल जाना होगा जिसके बाद ही आप देवी खुड़िया रानी की प्रतिमा तक पहुंच सकते हैं।
लोगों का मानना है की यहाँ आकर पूजा अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है इसलिए रोज़ाना दूर दूर से भक्त पूजा अर्चना के लिए जाते हैं और जब मनोकामना पूर्ण होने पर बकरे की बलि देने जाते हैं।

19. बुढी माई मंदिर रायगढ़

बुढी माई मंदिर को रायगढ़ की माता के नाम से भी जाता है | बुढी माई का मंदिर 100 वर्ष से अधिक पुराना मंदिर है | माँ बुढी माई मंदिर में हर साल 18-19 हजार ज्योतिकलश जलाया जाता है और हर दिन 500 सेअधिक भक्तो का आना जाना लगा रहता है बुढी माई मंदिर में भक्त पहले आशीर्वाद और निमंत्रण के साथ हर नया काम शुरू किया जाता है , लेकिन मंगलवार, शनिवार, दशहरा और दीपावली में यह भक्तो की संख्या हजारो से लेकर लाखो तक भरा होता है। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले से मात्र 1 कि.मी. की दुरी पर माँ बुढी माई देवी का मंदिर विराजित है इस मंदिर के सामने एक विशाल करबाला तालाब स्थित है | तालाब की पानी को भक्त माँ बुढी माई में अर्पित करते है

20. सर्वमंगला माता मंदिर, कोरबा

सर्वमंगला कोरबा जिले के प्रसिद्ध मंदिर में से एक है। इस मंदिर की देवी दुर्गा है। यह मंदिर कोरेश के जमींदार में से एक राजेश्वर दयाल के पूर्वजों द्वारा बनाया गया था। मंदिर त्रिलोकिननाथ मंदिर, काली मंदिर और ज्योति कलाश भवन से घिरा हुआ है। वहाँ भी एक गुफा है, जो नदी के नीचे जाता है और दूसरी तरफ निकलता है। रानी धनराज कुंवर देवी को मंदिर में अपनी दैनिक यात्रा के लिए इस गुफा के लिए इस्तेमाल किया गया था।

21. चैतुरगढ़ मां महिषासुर मर्दिनी मंदिर

चैतुरगढ़ (लाफागढ़) कोरबा शहर से करीब 70 किलोमीटर दूर स्थित है। यह पाली से 25 किलोमीटर उत्तर की ओर 3060 मीटर की ऊंचाई पर पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है, यह राजा पृथ्वीदेव प्रथम द्वारा बनाया गया था। पुरातत्वविदों ने इसे मजबूत प्राकृतिक किलो में शामिल किया गया है, चूंकि यह चारों ओर से मजबूत प्राकृतिक दीवारों से संरक्षित है केवल कुछ स्थानों पर उच्च दीवारों का निर्माण किया गया है।किले के तीन मुख्य प्रवेश द्वार हैं जो मेनका, हुमकारा और सिम्हाद्वार नाम से जाना जाता है।

पहाड़ी के शीर्ष पर 5 वर्ग मीटर का एक समतल क्षेत्र है, जहां पांच तालाब हैं इनमें से तीन तालाब में पानी भरा है। यहां प्रसिद्ध महिषासुर मर्दिनी मंदिर स्थित है। महिषासुर मर्दिनी की मूर्ति, 12 हाथों की मूर्ति, गर्भगृह में स्थापित होती है। मंदिर से 3 किमी दूर शंकर की गुफा स्थित है। यह गुफा जो एक सुरंग की तरह है, 25 फीट लंबा है। कोई गुफा के अंदर ही जा सकता है क्योंकि यह व्यास में बहुत कम है।

चित्तौड़गढ़ की पहाड़ी अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध हैं और यह रोमांचक एह्साह का अनुभव प्रदान करती है। कई प्रकार के जंगली जानवर और पक्षी यहां पाए जाते हैं।एसईसीएल ने यहां देखने आने वाले पर्यटनो के लिए एक आराम घर का निर्माण किया है।मंदिर के ट्रस्ट ने पर्यटकों के लिए कुछ कमरे भी बनाये। नवरात्रि के दौरान यहाँ विशेष पूजा आयोजित की जाती है।

 

22. मुंगई माता मंदिर महासमुंद

यह मंदिर बावनकेरा नामक गांव के समीप स्थित है इसलिए इस मंदिर को मुंगई माता मंदिर बावनकेरा के नाम से भी जाना जाता है।यह मंदिर नेशनल हाईवे 53 पर पटेवा से केवल 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।आपको बता दें कि यह मंदिर पहाड़ियों पर स्थित है और जिस प्रकार बागबाहरा के चंडी मंदिर में भालू का आना जाना लगा रहता है। ठीक उसी प्रकार इस मंदिर पर भी भालू की आने की बात कही जाती है।

ऐसा माना जाता है कि यहां पर भालू आकर प्रसाद ग्रहण करते हैं और प्रसाद ग्रहण करने के पश्चात वापस जंगल में चले जाते हैं। भले ही यह मंदिर छत्तीसगढ़ में ज्यादा प्रतिष्ठित नहीं है। लेकिन इस मंदिर का स्थानीय मान्यता काफी ज्यादा है। यहां पर दूर की तुलना में स्थानीय लोग ज्यादा आते है। यहां पर स्थानीय लोग पूजा के लिए निरंतर आते ही रहते हैं और जो लोग इस मंदिर की महिमा को जानते हैं वह लोग भी इस मंदिर के दर्शन करने आते हैं।

यह मंदिर पहाड़ियों पर स्थित है जिसके कारण यहां पर रोमांच प्रेमी काफी मात्रा में आते हैं और पहाड़ की चोटी में चढ़कर आसपास के पूरे इलाके को अपनी आंखो में कैद करके रोमांच महसूस करते हैं। मुंगई माता को माता दुर्गा का ही एक अवतार माना जाता है। शायद यही एक कारण है कि यहां पर साल के दोनों नवरात्रों में भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है। जिस प्रकार सभी माता के मंदिर में मनोकामना पूर्ति के लिए ज्योति कलश की स्थापना की जाती ठीक उसी प्रकार यहां पर माता के भक्त अपनी मनोकामना को पूरी करने के लिए ज्योति कलश की स्थापना कराते हैं। कई भक्त अपनी मनोकामना को पूरी करने के लिए तो कई भक्त अपनी मनोकामना के पूरी हो जाने पर खुशी के तौर पर यहां पर ज्योति कलश की स्थापना करवाते हैं।

23. कंकाली माता मंदिर रायपुर

रायपुर स्थित कंकाली माता मंदिर वैसे तो घनी आबादी के बीचो बीच बसा है लेकिन इसकी ख्याति तांत्रिक पीठ के रूप में है। मंदिर को लेकर कई किवदंतियां है।कहा जाता है कि कंकाली मठ के पहले महंत कृपालु गिरी को देवी ने सपने में दर्शन देकर कहा था कि मुझे मठ से हटाकर तालाब के किनारे स्थापित करो देवी की बात मानकर ही महंत ने तालाब के किनारे देवी की अष्टभुजी प्रतिमा को प्रतिष्ठित करवाया।कंकाली माता मंदिर आने वाला हर शख्स देवी से जुड़े चमत्कारों को मानता है। नवरात्रि के दौरान यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। मंदिर में प्रवेश करते ही सबसे पहले भगवान भैरवनाथ के दर्शन होंगे जो अस्त्र-शस्त्र के साथ देवी के गर्भगृह की रखवाली कर रहे हैं। भारत में अखाड़ा और नागा साधुओं की दुनिया हमेशा से रहस्यमयी रही है। नागा साधुओं के तंत्र-मंत्र, इनकी सिद्धी और उपासना हमेशा रहस्यों से भरी हुई होती है। रायपुर के कंकाली माता मंदिर और कंकाली मठ का इतिहास भी नागा साधुओं की साधना से जुड़ा हुआ है। नागा साधुओं ने ही शमशान घाट पर देवी के इस मंदिर की स्थापना की थी। 13 वीं शताब्दी में दक्षिण भारत से कुछ नागा साधुओं की टोली यहां से गुजरी। तब इस जगह पर शमशान घाट हुआ करता था। नागा साधुओं ने अपने सिद्धि और तप के लिए यहां मठ की स्थापना की।

24. मड़वारानी कोरबा

जिला मुख्यालय से 22 किमी दूर मडवारानी मन्दिर कोरबा से चापा रोड पर स्थित है, पहाड़ी की चोटी पर माता मडवारानी का मंदिर है।नवरात्री के मौसम में इस मंदिर के पीछे कलमी पेड़ों के नीचे किंवदंती है जो बढ़ रहा था प्रत्येक वर्ष के नवरात्रि सीजन (सितंबर अक्टूबर) के दौरान स्थानीय लोगों द्वारा त्यौहार मनाया जाता है।

25. मरही माता मंदिर बिलासपुर (भनवारटंक)

मरही माता का मंदिर घनघोर जंगल के बीच में स्थित है मरही माता का मंदिर की स्थापना ब्रिटिश शासन में किया गया था सन 17 जुलाई 1981 मे मंदिर का निर्माण किया गया है माता का मुर्ति नीम पेड के नीम स्थित है मरही माता के दर्शन के लिए प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में भक्त आते हैं और पूजा अर्चना करके अपनी मनोकामना मानते हैं और चैत्र नवरात्रि तथा रामनवमी नवरात्रि के समय हजारों की संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते हैं और चुनरी नारियल तथा कागज में अपनी मनोकामना को लिखकर पेडो पर लाटकाते है | माँ मरही के दरबार में आने वाले सभी भक्तो की मनोकामनाओं को मरही मातापूरा करती है इस लिए छत्तीसगढ़ के सभी जगहों और अनेक राज्यों से लोग माता के दर्शन के लिए आते है | भक्तो की मनोकामना पूरी हो जाने पर भक्त ज्योति कलश और बकरे की बलि देने की प्रथा है बताया जाता है की भक्तो की मनोकामना पूरी होने पर चुनरी बंधे नारियल को फोड़ के प्रसाद के रूप में सभी को दिया जाता है |

26. बिलाई माता मंदिर

धमतरी में स्थित बिलाई माता मंदिर जिसे विंध्यवासिनी मंदिर भी कहा जाता है, यह एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है जो देवी दुर्गा को समर्पित है। यह एक प्राचीन मंदिर है जो नवरात्रि और दिवाली जैसे त्योहारों के दौरान भक्तों को भारी संख्या में अपनी ओर आकर्षित करता है। इस मंदिर को राज्य के पाँच शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। मंदिर की दीवारों पर की गई नक्काशी पहले के समय की स्थापत्य कला को दर्शाती है। पौराणिक कथा के अनुसार, मां विंध्यवासिनी की मूर्ति जमीन से निकली है जो धीरे-धीरे अभी भी उठ रही है।

धमतरी में बिलई माता मंदिर छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में नए बस स्टैंड से 2 किलोमीटर दूर माता विंध्यवासिनी देवी को समर्पित एक मंदिर है। इसे स्वयं-भू विंध्यवासिनी माता कहते हैं स्थानीय लोगों की मान्यता है की मंदिर में स्थित मूर्ति धरती चीरकर निकली है जो अभी भी लगातार उपर की और आ रही है। बिलई माता मंदिर में केवल एक घी की ज्योत जलाई जाती है। नवरात्रि के दौरान गर्भगृह में दो ज्योत जलाई जाती हैं। मंदिर की प्रसिद्धि दूर दूर तक विदशों में भी फैली हुई है, यहां दूसरे देश के लोग भी ज्योत जलाने के लिए पहुंचते हैं।

माता के दरबार में हमेशा ही भक्तों की भीड़ लगी रहती है, लेकिन नवरात्रि के दौरान लाखों की संख्या में भक्त माता का आशीर्वाद लेने के लिए मंदिर जाते हैं। ऐसा माना जाता है की सच्चे मन से की गई कोई भी मनोकामना माँ अवश्य पूर्ण करती है।

27. मां डिडनेश्वरी माता मंदिर बिलासपुर

बिलासपुर से 40 किलो मीटर दूर, जोधरा मार्ग पर छत्तीसगढ़ के प्राचीनतम शहर मल्हार कौशांबी पर मां डिडनेश्वरी देवी विराजमान हैं। उत्खनन से प्राप्त अवशेषों से ज्ञात हुआ, कि ईसा से लगभग हजार वर्ष पूर्व से लेकर, मराठा काल तक इस मंदिर की उपस्थिति रहीं है। ईसा पूर्व 1000 में मौर्य काल, द्वितीय सातवाहन , कुषाण काल, तृतिय शरभपुरीय,तथा सोमवंशी काल चौथा और पांचवा कल्चुरी काल । कल्चुरी के बाद मराठा एवम् अंग्रेजों का शासन क्रमशः रहा है। मल्हार डिडनेश्वरी प्रतिमा के साथ ही अपनी सुक्ष्म एवम् भव्य शिल्प कला के लिए प्रसिद्ध है। इसके साथ ही शैव, शाक्त, जैन और बौद्ध शिल्प कला एवम् भगवान विष्णु की प्राचीन चतुर्भुजी प्रतिमा भी अत्यंत प्रसिद्ध है। मौर्य कालीन ब्राह्मी लिपि मे लेखानुसार, इस विष्णु मूर्ति की स्थापना ईसा पूर्व 200 है । साथ ही कार्तिकेय एवम् गणेशजी की प्रतिमा भी प्राप्त हुई है। जो 5वी एवम् 7वी शताब्दी की है। इसके अलावा भी इस क्षेत्र में पुरातात्विक महत्व की कई सामग्री एवं मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं। चैत्र नवरात्रि में गांव में भक्ति का माहौल रहता है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। मंदिर में भी विशेष पूजा-अर्चना व धार्मिक आयोजन होते हैं। डिडनेश्वरी के रंग में रंग जाते है। मल्हार की विशेषता एवम् पुरातात्विक महत्व के बारे में, जितना भी वर्णन किया जाए कम है । घर – घर में प्राचीन संपदा बिखरी हुई है । जिसे अधिक जागरूकता के साथ व्यवस्थित करने की आवश्यकता है

28. समलेश्विरी माता मंदिर चाँपा-जांजगीर

समलेश्वारी मंदिर लगभग 16 वीं सदी में बनवाया गया एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण मंदिर है। यह श्री श्री समलेश्वारी देवी को समर्पित एक हिंदू मंदिर है। यहां देवी की पूजा की जाती है और उनके अनुयायी उन्हेंश प्यादर से “मां” कहते हैं। संबलपुर में ही नहीं बल्कि ओडिशा और छत्तीसगढ़ में भी उत्साह के साथ देवी की पूजा की जाती है।

मां समलेश्वमरी की मूर्ति उलटे रखे हुए ग्रेनाइट के पत्थसर की बनी हुई है, जिनकी एक सूढ़ निकली हुई है, जो नीचे तक जाती है। पत्थर की यह मूर्ति मानव हाथों द्वारा निर्मित नहीं है और माना जाता है कि यह मूर्ति वैसी ही अवस्थाम में पायी गई थी, जैसी है। सोने के गहनों से देवी चेहरे और शरीर को सजाया गया है। नवरात्रि और नौखई के त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाये जाते हैं। त्यो हार का समय मंदिर की यात्रा करने के लिए सबसे अच्छाौ समय है, जब पूरा क्षेत्र चमक उठता है। नौखई महोत्सव के दौरान स्थानीय मार्शल आर्ट विशेषज्ञ श्रद्धालुओं एवं लोगों के समक्ष अपने कौशल का प्रदर्शन करते हैं

29. चम्पई माता मंदिर महासमुंद

महासमुंद से लगभग 11 किमी की दूरी पर मोहन्दी ग्राम पर घनघोर पहाड़ी के ऊपर चम्पई माता विराजमान है पहाड़ी तक जाने के लिये उत्तम सड़क मार्ग है । 7वीं शताब्दी के चीनी पर्यटक व्हेनात संघ के यात्रा-आलेख के अनुसार छत्तीसगढ़ के 36 मृतित्का गढ़ में से एक गढ़ ‘‘चंपापुर’’ हुआ । ऐतिहासिक जानकारी के अनुसार कलचुरी वंशज राजा भीमसेन द्वीतीय कि राजधानी चंपापुर के नाम से विख्यात था चंपापुर की नगर देवी चम्पेश्वरी देवी थी चम्पेश्वरी देवी आज भी ब्रम्हागिरी पर्वत कि महादेव पठार नामक स्थान के एक गुफा में विराजमान है।

30. कौशल्या माता मंदिर रायपुर

126 तालाबों के लिए मशहूर रायपुर जिले के चंदखुरी गांव में जलसेन तालाब के बीच में माता कौशल्या का मंदिर है जो दुनिया में भगवान राम की मां का इकलौता मंदिर है. माता कौशल्या के जन्म स्थल के कारण ही इसे रामलला का ननिहाल कहा जाता है. यही कारण है कि दीपावली के अवसर पर चंदखुरी में भी उत्सव होता है. दिये जलाए जाते हैं और लोग राम की विजय और अयोध्या वापसी का जश्न मनाते हैं. और मनाएं भी क्यों नहीं, राम का इस स्थान से अमिट नाता रहा है और कहा जाता है कि उनके बचपन का एक बड़ा हिस्सा यहां बीता है.

31. माँ अष्टभुजी अड़भार देवी मंदिर, जांजगीर –चांपा

प्राचीन नगर अड़भार में माँ अष्टभुजी देवी की दक्षिण मुखी प्रतिमा विराजमान है | पुरातत्व विभाग द्वारा सरक्षित है | पांचवी – छटवी शताब्दी के पूरा अवशेष मिलते है | इतिहास में अड़भार का उल्लेख अष्द्वार के रूप में मिलता है|
अड़भार की मां अष्टभुजी आठ भुजाओं वाली है, ये बात तो अधिकांश लोग जानते हैं लेकिन देवी के दक्षिणमुखी होने की जानकारी कम लोगों को ही है। जांजगीर चांपा जिले में मुंबई हावड़ा रेल मार्ग पर सक्ती स्टेशन से दक्षिण पूर्व की ओर 11 किमी की दूरी पर स्थित अड़भार अष्टभुजी माता के मंदिर के नाम पर प्रसिद्ध है। मंदिर में मां अष्टभुजी की ग्रेनाइट पत्थर की आदमकद मूर्ति है। हर साल यहां चैत और चंर में नवरात्रि पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ सहित अन्य प्रदेशों से भी दर्शनार्थी यहां पहुंचते हैं। भक्त अनेक प्रकार की मन्नतें मांगते है । मन्नतें पूरी होने पर ‘योत ‘वारा जलवाते हैं। इस बार चैत नवरात्रि में यहां 771 तेल ‘योति और 291 घृत ज्योति प्रज्वलित हो रहे हैं।

32. महामाया मंदिर महासमुंद

महासमुंद नगर में कभी सोमवंशीय राजाओं का शासन हुआ करता था उस समय महामाया माता को कुल देवी के रूप में पूजा जाता था वह परम्परा आज भी जीवित है इसलिए माता प्रथम पूजनीय है माता के दर्शन के लिये मंदिर में श्रध्दालुओं की भारी भीड़ लगी रहती है। यहां पर साल के दो नवरात्रि में भक्तो के द्वारा भारी मात्रा में मनोकामना ज्योति जलाई जाती है। यहां पर लाखों की संख्या में लोग माता के दरबार में आते हैं । यह मंदिर अपनी बनावट के कारण अदभुद लगती है। जिससे लोग सहज ही माता के दरबार में खीचे चले आते हैं।

33. शीतला मंदिर रायपुर

रायपुर के पुरानी बस्ती के प्रसिद्ध महामाया देवी मंदिर से कुछ ही कदम पहले मां शीतला का 200 साल से अधिक पुराना शीतला मंदिर है। प्राय: हर मंदिर में देवी प्रतिमा का कोई न कोई आकार, स्वरूप होता है लेकिन शीतला माता का कोई रूप नहीं है, बल्कि माता की पूजा पत्थर के पिंड के रूप में की जाती है। ऐसी मान्यता है कि यह पत्थर किसी ने लाकर नहीं रखा, धरती से ही प्रकट हुआ।

माता ने एक महिला को स्वप्न में दर्शन देकर उसी जगह पर ही स्थापित करने का आदेश दिया। राजरानी श्रीमाली नाम की महिला ने उस पत्थर के चारों ओर छोटा सा मंदिर बनवाया। आज भी गर्भगृह उसी स्वरूप में है, बाद में मंदिर के सामने सिंह की विशाल प्रतिमा स्थापित की गई जो मुख्य द्वार पर है। मंदिर में प्रवेश से पहले सिंह को प्रणाम करके भक्त भीतर पहुंचते हैं।

34. गंडई माता मंदिर राजनांदगांव

राजनांदगांव में स्थित विभिन्न प्रसिध्द पुरातात्‍विक मंदिरों में से एक है गंगई माता मंदिर, कहा जाता है इस नगर गंडई का नामकरण गंगई माता के कारण हुआ है गंगई माता यहां के लोगो की रक्षा करती है और लोग उनके श्रद्धा भक्तिक से पुजा अर्चना करते हैं नवरालत्रि में यहां काफी रौनक होती है। जहां श्रध्दालु दूर-दूर से माता के दर्शन के लिये मंदिर में खीचे चले आते हैं।

35. चंडी मंदिर अभनपुर

चंडी माता का यह भव्य मंदिर अभनपुर विकासखंड के कोलर गांव में स्थित है । जहां मां के दर्शन के लिये भक्तों की भीड लगी रहती है। नवरात्रि के मौके पर भक्तों की संख्या बहुत अधिक हो जाती है दूर-दूर से भक्त माता के दर्शन के लिये मदिर पहुंचते हैं।

36. शीतला माता मंदिर रायपुर


रायपुर के नहरपार में शीतला माता का भव्य मंदिर है । शीतला माता के दर्शन के लिये लोग भीड़ मंदिर में लगी रहती है। शीतला माता एक प्रसिद्ध हिन्दू देवी हैं। इनका प्राचीनकाल से ही बहुत अधिक माहात्म्य रहा है। स्कंद पुराण में शीतला देवी का वाहन गर्दभ बताया गया है। ये हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण करती हैं। इन्हें चेचक आदि कई रोगों की देवी बताया गया है।

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